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भारतीय ज्ञान प्रणाली पर शोध को अंतरराष्ट्रीय मान्यता: जामिया की टीम को अमेरिका से प्रतिष्ठित शोध पुरस्कार

विशेष संवाददाता – मुस्लिम नाउ,नई दिल्ली

भारतीय वास्तुशास्त्र और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली के क्षेत्र में कार्यरत जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) के शोधकर्ताओं ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के आर्किटेक्चर विभाग से जुड़े प्रोफेसर निसार खान, प्रोफेसर हिना जिया, और उनके शोधार्थी रिपु दमन सिंह को संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित कॉमन ग्राउंड रिसर्च नेटवर्क द्वारा वर्ष 2025 का प्रतिष्ठित “Constructed Environment International Award for Excellence” प्रदान किया गया है।

यह पुरस्कार निर्मित पर्यावरण (Constructed Environment) के क्षेत्र में विशिष्ट शोध कार्यों को प्रोत्साहित करने हेतु हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदान किया जाता है। खास बात यह है कि पिछले 15 वर्षों के इतिहास में पहली बार किसी भारतीय शोध टीम को यह सम्मान मिला है।


🔍 शोध का केंद्र: खालसा कॉलेज, अमृतसर की वास्तुकला में भारतीय तत्वों की खोज

प्रो. निसार खान और प्रो. हिना जिया के निर्देशन में पीएचडी शोधार्थी रिपु दमन सिंह द्वारा किया गया यह शोध, अमृतसर स्थित ऐतिहासिक खालसा कॉलेज की वास्तुकला पर केंद्रित है। यह अध्ययन इस बात की पड़ताल करता है कि इस प्रतिष्ठित इमारत के डिज़ाइन में जो प्रोपोर्शनिंग सिस्टम इस्तेमाल हुआ था, वह पश्चिमी नहीं बल्कि पारंपरिक भारतीय बढ़ईगीरी (carpentry) की प्रणाली पर आधारित था।

शोधकर्ताओं ने प्राथमिक स्थलीय अध्ययन, स्थापत्य संबंधी दस्तावेज़ीकरण, और ऐतिहासिक रेखांकन के आधार पर सिद्ध किया कि खालसा कॉलेज की वास्तुकला में निहित अनुपात और संरचनात्मक सौंदर्य भारतीय ज्ञान परंपराओं का ही प्रतिबिंब है।


🧱 भाई राम सिंह: एक विस्मृत भारतीय वास्तुकार को दिया गया न्याय

इस शोध का एक महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि इसमें ब्रिटिश भारत काल में सक्रिय भारतीय मूल के वास्तुकार भाई राम सिंह के योगदान को गंभीरता से रेखांकित किया गया। भाई राम सिंह एक कुशल बढ़ई से अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वास्तुकार बने, जिनका वास्तुशिल्पीय दृष्टिकोण पूरी तरह भारतीय परंपराओं में निहित था।

शोध में यह भी उल्लेख किया गया कि भाई राम सिंह न केवल इमारतों का डिज़ाइन करते थे, बल्कि वे फर्नीचर, आंतरिक सज्जा, हार्डवेयर और साइनेज तक के डिज़ाइन में भी दक्ष थे। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण ही उन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान यूनाइटेड किंगडम में कई प्रोजेक्ट डिज़ाइन करने का अवसर मिला।

यह शोध न केवल औपनिवेशिक युग में भारतीय वास्तुकारों की अनदेखी विरासत को सामने लाता है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि उस कालखंड में भारतीय वास्तु शास्त्रियों की मौलिकता और रचनात्मकता पश्चिमी प्रभाव के बावजूद जीवित रही।


🏆 शोध को मिली अंतरराष्ट्रीय मान्यता

कॉमन ग्राउंड रिसर्च नेटवर्क द्वारा प्रस्तुत यह पुरस्कार उन शोध कार्यों को प्रदान किया जाता है जो वैश्विक स्तर पर निर्मित वातावरण की समझ, व्याख्या और रचनात्मक हस्तक्षेप में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। जामिया की शोध टीम का कार्य इस बात का प्रमाण है कि कैसे भारतीय पारंपरिक ज्ञान प्रणालियाँ आज भी आधुनिक अनुसंधान के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं।

इस पुरस्कार ने न केवल जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रतिष्ठा को अंतरराष्ट्रीय अकादमिक मंच पर और मजबूत किया है, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य परंपराओं को वैश्विक शोध विमर्श में एक केंद्रीय स्थान देने की दिशा में एक अहम कदम भी है।

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