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ईरान-इज़रायल युद्ध: ज़ायोनी नीति ने मानवता को फिर शर्मसार किया

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,वॉशिंगटन/तेहरान/नई दिल्ली

मध्य पूर्व की धरती एक बार फिर बारूद की तपिश में झुलस रही है। शुक्रवार रात इज़रायल द्वारा तेहरान, नतान्ज़ और हमदान सहित ईरान के कई इलाकों पर किए गए भीषण हमलों ने वैश्विक समुदाय को चौंका दिया। जवाब में ईरान ने तेल अवीव और येरुशलम पर दर्जनों बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। यह घटनाक्रम महज़ दो देशों का सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि इज़रायल की आक्रामक नीति और उसके ‘पहले मारो, फिर सफाई दो’ रवैये का त्रासद प्रमाण है।

जंग नहीं, इज़रायली साज़िश

विश्लेषक साफ कह रहे हैं कि यह संघर्ष अचानक नहीं फूटा। पिछले कुछ महीनों से इज़रायल ग़ाज़ा, सीरिया और अब ईरान की सीमाओं पर उत्तेजना फैला रहा था। नतान्ज़ स्थित ईरान के भूमिगत परमाणु संयंत्र पर हमला—जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण कार्यक्रम माना जाता रहा है—इज़रायली सैन्य विस्तारवाद का ताज़ा उदाहरण है।

इज़रायल का तर्क है कि वह ईरान के परमाणु खतरे से खुद को बचा रहा है, परंतु वास्तविकता यह है कि खुद इज़रायल एक अस्वीकारे गए परमाणु शस्त्रागार का मालिक है, और उसका यह हमला अंतरराष्ट्रीय कानूनों, खासकर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) का खुला उल्लंघन है।

महिलाएं, बच्चे, वैज्ञानिक—कोई नहीं बख्शा गया

ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने कहा कि इज़रायल ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि ज़ायोनी शासन की बुनियाद ही निर्दोषों के ख़ून पर टिकी है। तेहरान, क़ुम, हमदान और तबरीज़ में इज़रायली मिसाइलों ने दर्जनों रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया। मरने वालों में महिलाएं, बच्चे, वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और छह परमाणु वैज्ञानिक शामिल हैं। ईरान के संयुक्त राष्ट्र दूत के अनुसार, कुल 78 लोग मारे गए और 320 से ज़्यादा घायल हुए।

ईरान का जवाब—प्रतिरोध नहीं, आत्मसम्मान की रक्षा

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने ज़ायोनी शासन को “दुष्ट, खूनी और आक्रामक” करार देते हुए स्पष्ट किया कि “इस बार जवाब ऐसा होगा जो आने वाली पीढ़ियों को याद रहेगा।” उन्होंने कहा कि ईरान की सेना और जनता इस अपराध के सामने न तो झुकेगी, न रुकेगी।

इज़रायल की रणनीति: पहले हमला, फिर सफाई

नेतन्याहू सरकार इस समय आंतरिक विरोध, भ्रष्टाचार के आरोपों और ग़ाज़ा युद्ध की विफलता से जूझ रही है। ऐसे में ईरान पर हमला, एक बार फिर ज़ायोनी सियासत का वह पुराना हथकंडा है—बाहरी दुश्मन गढ़ो, ताकि अंदर की आवाज़ें दब जाएं। किंतु इस बार हालात अलग हैं। ईरान के प्रतिरोध ने इज़रायल की रणनीतिक गणना को उलझा दिया है।

मोसाद की साज़िशें और गुप्त ऑपरेशन

सूत्रों के मुताबिक, हमले से पहले मोसाद के कमांडो ने ईरान के मिसाइल और ड्रोन बेस पर गुप्त अभियानों को अंजाम दिया। यहां तक कि तेहरान के बाहर एक गुप्त ड्रोन बेस से ईरान की वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय किया गया। यह सीधे तौर पर एक सार्वभौम राष्ट्र की संप्रभुता का हनन है।

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की चुप्पी

पश्चिमी ताक़तें, विशेषकर अमेरिका, फिलहाल केवल “शांति की अपील” जैसे बेजान वक्तव्यों तक सीमित हैं। ट्रंप ने मध्यस्थता की बात की, पर ईरान ने उसे ठुकरा दिया। ईरान ने साफ चेतावनी दी है—जो भी देश इज़रायल को सैन्य मदद देगा, वह भी हमारे निशाने पर होगा। यह बयान सऊदी, तुर्किये और अमेरिकी भागीदारी के प्रति सीधा संकेत है।

क्या दुनिया एक और युद्ध को तैयार है?

तेहरान के बाजार में काम करने वाले रेज़ा कहते हैं, “लोग हथियार उठा रहे हैं या देश छोड़ने की सोच रहे हैं। हम खुद को अकेला नहीं मानते, लेकिन हमला हमारी आत्मा पर है।” वहीं क़ुम में बसीज मिलिशिया के सदस्य अली कहते हैं, “हम अपने परमाणु अधिकारों की रक्षा के लिए जान दे देंगे।”

दूसरी ओर, इज़रायल का दावा है कि वह ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा को ‘समाप्त’ किए बिना नहीं रुकेगा।

निष्कर्ष: ज़ायोनी आक्रामकता बनाम वैश्विक न्याय

यह संघर्ष केवल बमों, मिसाइलों और राडार का नहीं है—यह न्याय, संप्रभुता और मानवता का भी है। यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इज़रायल की इस रणनीति—पहले हमला, फिर सफाई—को चुनौती नहीं दी, तो आने वाले समय में यह नीति पूरी दुनिया को युद्धों की आग में झोंक सकती है।

अब समय है कि दुनिया दो टूक शब्दों में ज़ायोनी शासन की सैन्य नीतियों की निंदा करे, ईरान और क्षेत्र के निर्दोष नागरिकों को सुरक्षा दे, और मध्य पूर्व में स्थायी शांति के लिए एक निष्पक्ष समाधान की पहल करे।

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