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गुलाम नबी आजाद की ‘डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’ क्या बीजेपी की एक और ‘बी टीम’ है ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,जम्मू

जिंदगी का बड़ा हिस्सा कांग्रेस और इसके द्वारा शासित सरकारों में बिताने के बाद गुलाम नबी आजाद ने अपनी अलग पार्टी ‘डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’ बना ली है. इसे सोमवार को लांच किया गया. इसके साथ ही सवाल उठने लगा है कि आजाद की यह पार्टी क्या आने वाले समय में बीजेपी की एक और बी टीम साबित होगी ?अब तक इस तरह का तमगा ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम पर चिपकाया जाता रहा है. इसके अलावा महाराष्ट्र की शिंदे ग्रुप की शिवसेना को भी बीजेपी की बी टीम की श्रेणी में रखा जाता है.

दरअसल, देश की कुछ पार्टियां जिस तरह की सियासत करती हैं. उससे बीजेपी को सीधा लाभ पहुंचता है. आरोप है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय अधिकांश मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर ओवैसी के अचानक सक्रिय होने से दोनों ही प्रदेशों में विपक्षी दल को भारी नुकसान पहुंचा. दोनों ही प्रमुख पार्टियों राजद और सपा सत्ता के करीब आते-आते रह गईं.

उत्तर प्रदेश में मतदान से पहले ओवैसा का हिजाब नशीं के प्रधानमंत्री बनने वाला बयान आते ही अगले दिन हिंदू वोटर्स बीजेपी के पक्ष में गोलबंद हो गए. जबकि दोनों प्रदेशों के चुनाव में विपक्षी पार्टियां शुरू से बेहतर स्थिति मंे दिख रही थीं.

आरोप है कि ओवैसी चुनाव में उतरते ही इसलिए हैं ताकि उनके बयानों से ध्रुवीकरण हो और इसका सीधा लाभ बीजेपी तक पहुंचे. गुजरात और राजस्थान में कांग्रेस और मुसलमान मतदाता अच्छी स्थिति में हैं. इन दोनों ही प्रदेशों में जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं. इसे देखते हुए ओवैसी की पार्टी दोनों प्रदेशों में सरगर्म हो गई है. मजे की बात यह है कि हाल में पंजाब और उत्तराखंड में भी चुनाव हुए थे. मगर ओवैसी की पार्टी ने इन दोनों प्रदेशों से दूरी बनाए रखी. इसी तरह शिंदे खेमे की शिवसेना सीधे बीजेपी के गोद में बैठ गई. उद्धव ठाकरे को सत्ता से हटाकर अभी शिंदे का शिव सेना गु्रप और बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार चला रही है.

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद बीजेपी की टीम साबित होंगे. अभी महबूबा की पीडीपी और फारूक-उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर की मजबूत सियासी पार्टियां मानी जाती है. यही वजह है कि ज्यादातर इन दो दलों का ही जम्मू-कश्मीर में राज रहा है.

आज की तारीख में भी टीडीपी और नेशनल कान्फेंस को चुनौती देना राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर है. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद तो कश्मीर के लोग बीजेपी से खासा नाराज हैं. हालांकि खेल और पर्यटन के बहाने एलजी सिन्हा वोटरों को खुश करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं, मगर पिछले दो वर्षों में विकास के ठोस कार्य नहीं किए जाने से आम जन में बीजेपी को लेकर खास हलचल नहीं है.

गुलाम नबी आजाद नरेंद्र मोदी के पसंदीदा रहे हैं. इनकी आपस में पटती भी है. राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद की विदाई के समय मोदी बेहद भावुक हो गए थे. ऐसे में गुलाम नबी बीजेपी केलिए मूफीद साबित हो सकते हैं.

वैसे गुलाम नबी आजाद की कश्मीर में खास पकड़ नहीं हैं. जब वह हरियाणा के प्रभारी थे जब भी कांग्रेसियों की खेमेबाजी दूर करने में असफल रहे थे.राज्यसभा में दोबारा नहीं भेजे जाने और कथित तौर पर बगैर उनकी सहमति के जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का गठन से नाराज चल रहे आजाद ने कांग्रेस से पचास वाला पुराना रिश्ता तोड़ लिया था. इसके बाद सूबे के कांग्रेसियों में फूट डालकर एक खेमे को अपने साथ मिला लिया.

कहते हैं कि गुलाम नबी आजाद भी अपनी क्षमताओं को पहचानते हैं कि चुनाव में वह अब्दुल्ला और महबूबा से पार नहीं पाएंगे. गुलाम नबी आजाद दोनों पार्टियों के वोट में सेंध तो लगा सकते हैं, पर सरकार नहीं बना सकते. अभी परिसीमन में जम्मू-कश्मीर की सीटों में उलटफेर का आरोप लगाया गया है. ऐसी हालत में यदि कश्मीर के वोटर आपस में बंट जाते हैं तो इसका सीध लाभ बीजेपी को मिल सकता है. इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि जम्मू पर बीजेपी का खासा असर है. कश्मीर से कम सीटें लाने वाली पार्टियों से सांठगांठ का बीजेपी सरकार में आ सकती है. यदि ऐसा हुआ तो यह किसी आश्चर्य से कम नहीं होगा कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में कोई हिंदू या महबूबा की तरह बीजेपी समर्थित कोई मुसलमान मुख्यमंत्री बन जाएगा.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में अपनी या अपनी समर्थित सरकार देखना चाहती है. चूंकि मौजूदा दौर में यहां संभव नहीं है, इसलिए उन पार्टियों को अपने साथ मिलाया जा सकता है, जो अपनी पसंद की सरकार बनाने में मददगार साबित हों.

इन्ही अटकलों और कयास अराइयों के बीच कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सोमवार को अपनी नई राजनीतिक पार्टी का शुभारंभ किया. इसका नाम डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी रखा. आजाद ने यहां मीडियाकर्मियों से कहा कि उन्हें उर्दू, हिंदी और संस्कृत में करीब 1500 नाम सुझाए गए थे.

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उन्होंने कहा, हिंदी और उर्दू का मिश्रण हिंदुस्तानी है. हम चाहते थे कि नाम लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण और स्वतंत्र हो.उन्होंने कहा, मेरी पार्टी पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने, भूमि के अधिकार और मूल निवासियों को रोजगार देने पर ध्यान देगी.उन्होंने अपनी नई पार्टी का झंडा भी प्रदर्शित किया जिसमें नीला, सफेद और पीला रंग हैं.

आजाद पांच दशक बाद कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में आलाकमान स्तर पर कोई भी उनकी बात नहीं सुनता, जबकि पार्टी को मजबूत करने के लिए उन्होंने पचास साल काम किया.कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद जम्मू-कश्मीर के दो दर्जन से अधिक प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने आजाद के समर्थन में इस्तीफा दे दिया था.

आजाद अब केंद्र शासित प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने के लिए तैयार हैं. वह फिलहाल भाजपा और जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय मुख्यधारा की पार्टियों दोनों से दूरी बना चाहते हैं.

इनपुट: आईएएनएस