बलात्कार की घटनाएं रोकने के लिए भारत में क्या शरिया जैसे सख्त कानून की जरूरत है ?
-फ़िरदौस ख़ान
देश की राजधानी दिल्ली के फ़तेहपुर बेरी थाना इलाक़े में तीन साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने का मामला सामने आया है. शुक्रवार को बच्ची की मां की शिकायत पर पुलिस ने दोनों लोगों को गिरफ़्तार किया है. बच्ची को इलाज के लिए एम्स में दाख़िल करवाया गया है. यह बेहद चिंता की बात है कि देश में बच्चियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों में दिनोदिन इज़ाफ़ा हो रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में साल 2021 में बलात्कार के कुल 31,677 मामले दर्ज किए गए. इससे पहले साल 2020 में बलात्कार के 28,046 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि साल 2019 में यह तादाद 32,033 थी.
यह बेहद अफ़सोस की बात है कि तमाम दावों के बावजूद समाज महिलाओं को सुरक्षित माहौल तक मुहैया नहीं करवा पा रहा है. हालत यह है कि अनेक क़ानून होने के बाद भी महिलाओं को इंसाफ़ नहीं मिल पाता. क़ानून में इतने झोल रहते हैं कि उनका फ़ायदा उठाकर अपराधी आसानी से बच निकलते हैं. इसलिए अब भारत में भी बलात्कारी को शरीअत क़ानून की तर्ज़ पर खौफ़नाक सज़ा दिए जाने की वकालत की जाने लगी है, ताकि बलात्कार जैसे संगीन अपराधों पर रोक लग सके. इस्लाम में बलात्कार के लिए सख़्त सज़ा का प्रावधान है. इस्लामी देशों में बलात्कार या यौन उत्पीड़न के लिए अपराधी को सरेआम मौत की सज़ा दी जाती है. कहीं अपराधी का सर क़लम कर दिया जाता है, तो कहीं उसे फांसी पर लटका दिया जाता है.
इस्लाम के मुताबिक़ विवाह से पहले यौनाचार को गुनाह माना गया गया है, जो जुर्म से भी बढ़कर है. यह अल्लाह और उसके रसूल पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाफ़रमानी है. इसके लिए उसे परलोक में सख़्त सज़ा दी जाएगी. क़ुरआन में कहा गया है- “बदकार औरत और बदकार मर्द की बदकारी साबित हो जाए, तो दोनों में से हर एक को सौ-सौ कोड़े मारो. और अगर तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो, तो अल्लाह का हुक्म नाफ़िज़ करने में उन पर तरस मत खाओ. और उन दोनों की सज़ा के वक़्त मोमिनों के एक तबक़े को मौजूद रहना चाहिए.” (24:2)
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है- “वासनावश जिसने किसी पराई औरत के जिस्म को छुआ, तो जहन्नुम में उसके जिस्म का गोश्त आग के कंघों से नोचा और भंभोड़ा जाएगा.” इस दुनिया में भी उसे सख्त सज़ा देने का प्रावधान है. इस्लाम के मुताबिक़ बलात्कारी को पत्थर मार-मार कर मौत की सज़ा दी जाती है. अगर मामला बदकारी यानी व्याभिचार का है और दोनों दोषी हैं और विवाहित हैं, तो उन दोनों को भी यही सज़ा दी जाती है. अगर दोनों, या कोई एक, अविवाहित हो तो सौ कोड़े मारने की सज़ा तय की गई है. इन सज़ाओं में कोई कमीबेशी नहीं की जा सकती है. मुआफ़ी की भी कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि यह शरीअत का क़ानून है, जो अल्लाह ने बनाया है. इसका ज़िक्र अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किया है. इस क़ानून को इस्लामी क़ानून भी कहा जाता है, जो इस्लामी देशों में लागू है.
शरीअत क़ानून में सज़ाएं सरेआम देने का हुक्म है, ताकि लोगों में ख़ौफ़ पैदा हो और वे ऐसे गुनाह और जुर्म करने से पहले सौ बार सोचें. हालांकि सेक्युलर क़ानून में सहमति से किए गए यौनाचार को अपराध नहीं माना गया है, लेकिन इस्लाम में इसे भी बराबर का अपराध माना गया है. सेक्युलर क़ानून इस तरह के यौनाचार को व्यक्तिगत मानव अधिकार की श्रेणी में रखता है और इससे क़ानून को कोई सरोकार नहीं होता. इस्लामी क़ानून में इसे सामाजिक अपराध की श्रेणी में रखकर सज़ा का प्रावधान है.
इस्लाम में बदकारी से बचने के लिए सख़्त क़ायदे बनाए गए हैं. क़ुरआन और हदीस में अपनी नफ़्स की हिफ़ाज़त के अनेक आदेश और शिक्षाएं दी गई हैं. हर साल रमज़ान के लगातार एक महीने के रोज़े अनिवार्य करके खाने-पीने के साथ-साथ पति-पत्नी के मिलन को भी सुबह से शाम तक हराम क़रार दिया गया है. इसका मक़सद मर्द-औरत को अपनी नफ़्स पर क़ाबू रखने के लायक़ बनाना है. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है- “अगर तुम दो चीज़ों की हिफ़ाज़त की ज़मानत दो, तो मैं तुम्हारे लिए जन्नत की ज़मानत देता हूं. एक वह जो तुम्हारे दो जबड़ों के बीच है यानी ज़बान, और दो वह जो तुम्हारी रानों के बीच है यानी शर्मगाह.” इसका मतलब यह है कि इंसान दूसरों की बुराई करने और बदकारी से परहेज़ करे. एक हदीस में यह भी कहा गया है कि “जो औरत पारदर्शी लिबास पहने वह जन्नत में जाना तो बहुत दूर की बात, जन्नत की ख़ुशबू भी नहीं पाएगी.”
इस्लाम में मर्दों को भी पाकीज़गी इख़्तियार करने का हुक्म दिया गया है. क़ुरआन में अल्लाह ने हुक्म दिया है- “ईमान वाले मर्दों से कह दो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें. यह उनके लिए पाकीज़ा बात है.” (24:30)
“और ईमान वाली औरतों से भी कह दो कि वे भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी अस्मत की हिफ़ाज़त करें. और अपनी ज़ीनत का इज़हार न करें, सिवाय उसके जो ख़ुद ब ख़ुद ज़ाहिर हो जाए. और सर पर ओढ़े दुपट्टे अपने सीने पर डाले रहा करें.” (24:31)
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अचानक निगाह पड़ सकती है, निगाह हटा लो. दोबारा-तिबारा निगाह मत डालो. पहली निगाह तुम्हारी अपनी थी, बाद की निगाहें शैतान की होंगी यानी यहां से तुम्हें ग़लत रास्ते पर डालने के लिए शैतान का काम शुरू हो जाता है.” आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी फ़रमाया- “मर्द-औरत अकेले में न रहें. जब वे अकेले में होते हैं तो वे केवल ‘दो’ ही नहीं होते, बल्कि उनके बीच एक ‘तीसरा’ भी होता है, वह है ‘शैतान’ यानी शैतान दोनों की भावनाओं को उकसाकर बदकारी की तरफ़ खींचने में लग जाता है.”
इस्लाम की नज़र में चरित्र-हनन और किसी को नाहक़ बदनाम करना बहुत बड़ा गुनाह है. ख़ासकर पाक दामन औरतों और मर्दों पर बदकारी या बलात्कार का झूठा इल्ज़ाम लगाना बहुत बड़ा गुनाह है. यह क़ानूनन जुर्म भी है. इस बारे में क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है- “और जो लोग पाक दामन औरतों पर तोहमत लगाएं. फिर वे चार गवाह पेश न करें, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो. और फिर कभी उनकी गवाही क़ुबूल न करो और ये लोग ख़ुद ही बदकार हैं. लेकिन जिन लोगों ने तोहमत लगाने के बाद तौबा कर ली और अपनी इस्लाह की, तो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला बड़ा मेहरबान है. (24:4-5)
क़ुरआन में यह भी कहा गया है- “बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर मोमिन औरतों पर तोहमत लगाते हैं, उन पर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह की लानत है और उनके लिए बड़ा सख़्त अज़ाब है.” (24:23)
इस्लाम में चरित्र पर ख़ास ज़ोर दिया गया है. क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है- “और यह बेहयाई मोमिनों पर हराम है.” (24:3)
इस्लाम में बेहयाई से रोका गया है. क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है- “बेशक जो लोग यह चाहते हैं कि मोमिनों में बेहयाई फैले, तो उनके लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है. और अल्लाह सबकुछ जानता है और तुम नहीं जानते.” (24:19)
क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है- “और तुम अपनी क़ौम की ग़ैर शादीशुदा औरतों और अपने नेक बख़्त ग़ुलामों और कनीज़ों का निकाह करवा दिया करो.” (24:32)
“और जिन लोगों को निकाह का मौक़ा मयस्सर नहीं हुआ, तो उन्हें पाक दामिनी इख़्तियार करनी चाहिए, यहां तक कि अल्लाह अपने फ़ज़ल से उन्हें ग़नी कर दे.” (24:33)
वरिष्ठ अधिवक्ता रफ़ीक़ चौहान कहते हैं कि दुष्कर्म के दोषियों को सख़्त से सख़्त सज़ा मिलनी ही चाहिए. हमारे देश में भी बलात्कार के मामलों में कठोर क़ानून बनाए गए हैं. भारतीय दंड संहिता धारा 375 में बलात्कार के मामलों को परिभाषित किया गया है. इसमें दोषी के ख़िलाफ़ कड़ी सज़ा का प्रावधान है. भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दोषी को सात साल की सज़ा से लेकर मौत की सज़ा तक का प्रावधान है. इसके अलावा बच्चों के संरक्षण के लिए बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 बनाया गया है. इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे या बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी को फांसी की सज़ा का प्रावधान है.
दरअसल, यौन अपराधों की शुरुआत बदकारी से ही होती है. कोई भी अच्छा इंसान बलात्कार जैसा संगीन जुर्म नहीं कर सकता. यह घृणित कार्य चरित्रहीन व्यक्ति ही करता है. इसलिए यौन उत्पीड़न के मामलों पर रोक लगाने के लिए लोगों में नैतिकता को बढ़ावा देना होगा. हमारे समाज की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि यहां नसीहतें सिर्फ़ लड़कियों के लिए ही होती हैं, जैसे यह मत करो, वह मत करो वग़ैरह- वग़ैरह. लेकिन लड़कों पर कभी कोई रोक-टोक नहीं लगाई जाती. नतीजतन लड़के उद्दंड हो जाते हैं और समाज ख़ासकर बच्चियों और महिलाओं के लिए ख़तरा बन जाते हैं. लोगों को चाहिए कि वे अपनी बेटियों के साथ-साथ अपने बेटों को भी अच्छे संस्कार दें, ताकि यह समाज इंसानों के रहने लायक़ बना रहे.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है. यह लेखक के अपने विचार हैं)