Religion

गाजा युद्ध में फिलिस्तीनी महिलाओं की आबरू बचाने का एकमात्र सहारा है isdal

अल-फुखारी, गाजा पट्टी

इस्लाम में पर्देदारी का हुक्म है. इसके तरीके को लेकर कहीं कुछ विवाद हो सकता है, पर सभी फिरके एकमत हैं कि इस्लाम मानने वाली महिलाओं के लिए पर्दा जरूरी है. मगर गाजा पर इजरायली हमले के बीच फिलिस्तीनी महिलाओं को अपने शरीर की गोपनीयता बनाए रखने में भारी दिक्कत आ रही है.

ले-देकर बेघर फिलिस्तीनी महिलाओं के पास ‘इसदल‘ ( isdal) या ‘toub salah’ है, जिससे वो न केवल अपना तन ढकती हैं, बल्कि उनकी इबादत का भी यही एकमात्र सहारा है.‘इसदल’ एक ऐसा परिधान है जिसे दुनिया गाजा में फिलिस्तीनी महिलाओं को पहनते हुए देखने की आदी हो गई है. जब वो अपनी जान बचाने के लिए भागती हैं, अपने मारे गए बच्चों या प्रियजनों को अंतिम अलविदा कहने निकलती हैं या अस्पताल के गलियारों में पागलों की तरह दौड़ती हैं, तो उन्हें इसी लिबास में देखा जा सकता है.

आम मुस्लिम महिलाएं इसे इबादत के आवरण के तौर पर पहचानती हैं. इसदल या टौब सलाह पहने मुस्लिम महिलाएं आपको हर देश में मिल जाएंगी. महिलाओं का तन ढकने वाला यह ड्रेस अब दुनियाभर में प्रचलित है. मगर यह वही ड्रेस है जिसे फिलिस्तीनी महिलाओं और लड़कियों ने गाजा पर इजरायली युद्ध के सबसे कठिन क्षणों में अपना सुख-दुख का साथी बना रखा है.

दरअसल, इसदल एक तरह का ड्रेस है जो चेहरे को छोड़कर पूरे शरीर को ढके रहता है. यह स्कर्ट और उपर के हिस्से के साथ दो भागों में बंटा होते हैं जो पहनने वाले को कूल्हों से आगे तक ढके रखता है. रोजा-नमाज करने वाली प्रत्येक मुस्लिम महिलाएं अपने घर पर एक अदद इसदल रखना चाहती हैं.

नमाज के समय के अलावा, जब पुरुष मेहमान बिना किसी पूर्व सूचना के आते हैं, तो पर्दा करने वाली महिला इसे तुरंत-फुरंत पहन लेती है. फिलिस्तीनी महिलाएं बाजार जाएं या किसी काम से घर से बाहर निकलें या फिर किसी पड़ोसने से बातचीत करने निकलें तो इसे अपने शरीर पर अवश्य डाल लेती हैं.

कैसा होता है isdal

  • इसके दो हिस्से होते हैं
  • उपरी हिस्सा स्काॅर्फ जैसा होता है
  • निचला हिस्सा कंधे से नीचे तक का होता है
  • देखने में ऐसा लगता है कि किसी ने कंधे से नीचे तक मैक्सी पहन रखी हो
  • इस्लाम के नजरिए से पर्दादारी मंे यह अहम रोल अदा करता है
  • मुस्लिम देशों के साथ-साथ अब यह भारत में भी मुस्लिम महिलाओं के बीच काफी पसंद किया जाने लगा है

युद्धकालीन साथी

अगर किसी महिला को जल्दी में घर छोड़ना होता है. संयमित रहना होता है तो इसदल पहनना एक आरामदायक वस्तु माना जाता है. युद्ध के दौरान, फिलिस्तीनी महिलाएं इसे चैबीसों घंटे पहनती हैं. घर हो या बाहर, सोती हों या जागती, हर दम उनके शरीर पर यह परिधान रहता है. उन्हें पता नहीं होता कि कब उनके घर पर बम से हमला होगा और उन्हें भागना पड़ेगा या इससे भी बदतर स्थिति से गुजरना होगा.

44 वर्षीय सारा असद कहती हैं,“अगर हमारे घर पर बमबारी होने पर हम मर जाते हैं, तो हम अपनी गरिमा और शीलनता चाहते हैं. हमें जब मलबे से निकाला जाए तो हमरा तन ढका हो. सारा पूर्वी गाजा शहर के जिटौन में रहती हैं. अपनी तीन बेटियों और दो बेटों के साथ अल-फुखरी के स्कूल में विस्थापित होकर आई हैं. सभी बच्चे किशोर हैं.वह आगे कहती हैं,विस्थापित लोगों से भरे स्कूल में डरी हुई महिलाएं और लड़कियां चैबीसों घंटे इसदल पहने रहती हैं.

खान यूनुस की 56 वर्षीय राएदा हसन का कहती हैं,“मेरे पास तीन हैं. मेरी बेटियों में से प्रत्येक के पास कम से कम एक है. पिछले 17 वर्षों में विभिन्न इजरायली हमलों के दौरान हम इसके आदी हो गए. जब पहली मिसाइल गाजा पर गिरती है, हम अपने उपर इसदल डाल लते हैं.राएदा हसन का कहना है कि गाजा में कई युद्धों के दौरान उन्होंने अपने इसदल को करीब रखा. वह आगे कहती हैं, उन्हें कभी-कभी इसे देखना पसंद नहीं. यह हिंसा की याद दिलाता है.’’

युद्ध के बाद पहली चीज जो मैं करना चाहती हूं वह है इससे छुटकारा पाना. इससे कुछ अलग खरीदना चाहती हूं ताकि मुझे युद्ध की पीड़ा की याद न आए. वह अपने इसदल की ओर इशारा करते हुए यह बात कहती हंै.वह अपनी बेटियों और बहुओं के साथ स्कूल में है. सभी ने अपने-अपने कपड़े के उपर इसदल पहन रखा था.

सारा कहती हैं, इसदल इतना सर्वव्यापी है कि जो लड़कियां इबादत करने या घूंघट लेने के लिए बहुत छोटी हैं, वो भी इसकी मांग करने लगी हैं. ऐसे में उनकी माओं को इसदल का इंतजमाम करना पड़ रहा है.सहर अकार की बेटियां चार और पांच साल की हैं, लेकिन वे इसदल चाहती हैं ताकि वो अपने चचेरे भाई-बहनों और अपने आस-पास देखी गई बड़ी लड़कियों की तरह दिख सकतें.28 वर्षीय सहर अपने परिवार के साथ गाजा शहर से गाजा पट्टी के दक्षिण में पनाह लिए हुए हैं.

राएदा एक पल सोच कर कहती हंैं,आपको पता नहीं होता कि क्या हो सकता है.मुझे नहीं पता कि हर किसी को यह विचार कहां से आते हैं कि हम किसी तरह बमबारी के लिए तैयार हैं.सबसे पहले, इसका क्या मतलब है? क्या आप अपने घर, इतिहास, यादों को नष्ट करने के लिए तैयार हैं? दुनिया में कौन कह सकता है कि आपको इसके लिए तैयार रहना चाहिए ?

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isdal और नकाब

  • भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश की अधिकतर महिलाएं नकाब पहनती हैं़.
  • नकाब को बुर्का भी कहा जाता है.
  • नकाब के दो हिस्से होते हैं.
  • नकाब दो तरह के होते हैं.
  • एक हिस्सा कमर से नीचे का होता है और दूसरा सिर से कमर तक
  • कुछ एक तरह का नकाब सिर पर डालने के बाद नीचे तक ढक जाता है.
  • ऐसे नकाब में आंखों के पास देखने के लिए जालीदार कपड़ा लगा होता है.
  • इस तरह के नकाब अफगानिस्तान की महिलाएं अक्सर पहनती हैं.
  • पहले ऐसे नकाब भारत के ग्रामी इलाके की महिलाएं भी पहनती थीं.
  • फिलिस्तीन की महिलाओं की तरह भारत में भी कई महिलाएं इसदल पहनती हैं

इन सवालों के जवाब में वह कहती हैं,“वैसे भी, हम नहीं जानते कि बम कहां गिरेंगे या कौन सा घर नष्ट होगा. हम इसदल को रेडी रखते हैं ताकि अगर हमारे बच्चे बहुत दूर भटक जाएं तो हम बाहर भाग कर उन्हें ढूंढ सकें. हम इसे तब भी पहनते हैं, जब हमें अपने पड़ोसियों के यहां यह देखने के लिए दौड़ना होता है कि बमबारी के बाद वे ठीक हैं या नहीं.

वह कहती हैं, अगर मैं अपनी बेटियों या परिवार की किसी महिला को बिना इस ड्रेस के देखती हूं, तो मैं उन्हें इसे पहनने की सलाह देती हूं. आप कभी नहीं जानते कि क्या हो सकता है. पास बैठी राएदा की 16 वर्षीय बेटी सलमा भी जोर-जोर से सिर हिला अपनी मां की कही बातों की तस्दीक करती है. साथ ही अपना इसदल भी दिखाती रहती है, जो उस वक्त उसने पहन रखे थे. उसे सितंबर की शुरुआत का वह दिन याद है जब वह और उसकी मां ने शुजाया बाजार से इसके लिए एक प्यारा सा इसदल खरीदा था.

वह आगे कहती हैं, मुझे यह बहुत पसंद है. मैं इसे पहनना पसंद करती हूं. यह मुझे उस दिन की याद दिलाता है जब हम बाजार में घूमे थे. खूब मस्ती की थी.वह बताती हैं, बमबारी पर जब हम भागे तो मैंने पतलून और शर्ट पहनी हुई थी. मैं अपना इसदल अपने साथ ले गई ताकि मैं नमाज पढ़ सकूं. एक बार जब हम यहां पहुंचे और मैंने देखा कि यहां कितनी भीड़ है और हर एक महिला ने इसदल पहना हुआ है, तो मैंने सोचा कि मुझे इसे हर समय पहनने रहना चाहिए.

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सलमा फलसफाना अंदाज में आगे कहती है,यह दुख की बात है. नमाज कवर में खुश संगति भी होती है. ईद की नमाज के लिए एक कुरकुरा, नया, रंगीन हिजाब, यहां तक ​​कि आपके बच्चों के स्कूल बस से कूदने और आपको उनके दिन के बारे में बताने के लिए जल्दबाजी में खींचा गया एक इसदल भी. वह सब बर्बाद हो गया है.

मीडिया से बात करने वाली कई अन्य महिलाओं के लिए, इसदल सड़क पर घबराहट के प्रतीक के साथ अबादत और प्रतिबिंब के शांत क्षणों के रूप में मिश्रित भावनाओं को वहन करता है. युद्धकाल में यह ड्रेस सिर ढकने के साधारण कार्य के साथ गहरे दुःख का चिन्ह भी बन गया है.

-अज-जजीरा से साभार