Islamophobia : कश्मीर फाइल्स और केरल स्टोरी के बाद मुसलमानों की छवि खराब करने को अब ‘72 हूरें’ और ‘अजमेर 92’
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
बाॅलीवुड के नाकाम निर्माता-निर्देशों और कलाकरों ने खुद को हिट साबित करने के लिए नया फामूर्ला इजाद किया है. मुसलमानों की छवि खराब करने वाली फिल्में बनाकर ऐसे लोग खूब पैसे बटोर रहे हैं.
इनकी फिल्मों की बुनियाद दो-एक छोटी घटना पर होती है, पर इसमें असत्य का मसाला इस कदर भर दिया जाता है कि इस्लाम और मुसलमानों की छवि धूमिल करने वालों को ऐसी ‘एजेंडा’ फिल्में खूब भाती हैं. हद तो यह है कि ऐसी फिल्मों की प्रधानमंत्री तक तारीफ कर मार्केटिंग करते हैं. हालांकि कोई उनसे पूछ सकता है कि यदि केवल केरल से 32 हजार हिंदू, ईसाई महिलाओं का धर्म परिवर्तन कर दूसरे देश में आतंकवादी संगठनों में भर्ती करने के लिए भेज दिया गया तब आपकी सरकार कहां थीं ? खुफिया विभाग क्या कर रहा था ?
इसी तरह कश्मीर फाइल्म नामक फिल्म में झूठी सच्ची बातें दिखाई गई हैं, जिसकी आलोचना इरायल की एक फिल्म हस्ती खुले मंच से कर चुकी है. हद तो यह है कि उस शख्स को नीचा दिखाने के लिए विदेश मंत्रालय तक सक्रिय हो गया था.
इसी कड़ी अब दो फिल्में हैं, ‘72 हूरें’ और ‘अजमेर 92’.
फिल्म 72 हूरें का फर्स्ट लुक रविवार को जारी किया गया, जिससे सोशल मीडिया पर विवाद खड़ा हो गया है.टीजर पर नजर डालें तो इसमें अल कायदा के पूर्व प्रमुख ओसामा बिन लादेन, अजमल कसाब की तस्वीर दिखाई गई है और फिर याकूब मेमन की तस्वीर को मिला दिया गया है. इससे स्पष्ट संकेत है कि फिल्म मुसलमानों पर केंद्रित है और कहीं न कहीं इसके निर्माता-निर्देश की नियत साफ नहीं.
याकूब मेनन 1993 के बॉम्बे विस्फोटों का एक आरोपी था. ट्रेलर में मसूद अजहर और हाफिज सईद की तस्वीर भी दिखाई है, जिसे गृह मंत्रालय ने आतंकवादी घोषित कर रखा है.
बॉलीवुड फिल्म का ट्रेलर फिल्म के सह-निर्देशक एशोक पंडित, जो एक कश्मीरी पंडित हैं ने जारी किया है. उनके अनुसार,जैसा कि वादा किया गया था, हमारी फिल्म 72 हूरें का फर्स्ट लुक आपके सामने पेश कर रहा हूं. मुझे यकीन है कि आपको यह पसंद आएगा. उन्होंने यह भी कहा है- क्या होगा यदि आप आतंकवादी आकाओं द्वारा आश्वासन के अनुसार 72 हूरों से मिलने के बजाय एक क्रूर मौत मर रहे हैं? पेश है मेरी आने वाली फिल्म 72 हूरें का फर्स्ट लुक. फिल्म 7 जुलाई, 2023 को रिलीज होने वाली है.
As promised presenting to you the first look of our film #72Hoorain .
— Ashoke Pandit (@ashokepandit) June 4, 2023
I am sure you will like it .
What if you end up dying a brutal death instead of meeting 72 virgins, as assured by terrorist mentors? Presenting the first look of my upcoming film “72 Hoorain”. The film is… pic.twitter.com/hsbGkIxrhb
यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संजय पूरन सिंह द्वारा निर्देशित और गुलाब सिंह तंवर द्वारा निर्मित है. आमिर बशीर और पवन मल्होत्रा स्टार 72 हूरें 7 जुलाई 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.
फिल्म के डायरेक्टर ने ट्रेलर रिलीज करते हुए कहा, ये लोग अपने दिमाग में जहर भर लेते हैं और आम लोगों को सुसाइड बॉम्बर बना देते हैं. हमें याद रखना चाहिए कि हमलावर हमारे जैसे परिवारों से हैं जो आतंकवादी नेताओं द्वारा विकृत मान्यताओं और ब्रेनवॉश के शिकार हैं और उन्हें विनाश के रास्ते पर ले जाते हैं. इसके अलावा 72 हूरों के मायाजाल में आम लोग फंस जाते हैं.
वैसे, बता दें कि अशोक पंडित पहले ही अपने बयानों और नियत के कारण पहचाने जाते हैं. उनके सोशल मीडिया हैंडल देखने से पता चल जाएगा कि वह कितने बड़े मुस्लिम विरोधी हैं. फिल्म का टीजर जारी करते समय जितनी बातें कहीं गईं, वह मात्र दिखावा और मुसलमानों से बनावटी हमदर्दी है. दरअसल, इसके पीछे उनकी इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करने की बदनियती है.
बहरहाला, विशेष रूप से, 72 हूरें दो साल से भी कम समय में तीसरी हिंदी फिल्म है जो दावा करती है कि यह इस्लामी चरमपंथ के विषय पर केंद्रित है. इससे पहले दो और फिल्में द कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी इसी टैगलाइन के साथ रिलीज हुई थी.
कश्मीर की एक मीडिया आउट लेट की एक खबर में कहा गया है-इन फिल्मों को सत्तारूढ़ दल द्वारा प्रचारित किया गया और कई राज्यों में कर मुक्त किया गया. उन्होंने भारत के कुछ हिस्सों में मुस्लिम समुदाय पर कई हमले किए.
फिल्मों को मुसलमानों और समाज के अन्य वर्गों से व्यापक निंदा मिली है. कई विपक्षी नेताओं ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी अपने चुनावी लाभ के लिए फिल्मों का उपयोग कर रही है.
कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माताओं ने द कश्मीर फाइल्स को प्रचार के रूप में संदर्भित किया क्योंकि फिल्म ने कई घटनाओं को चित्रित किया था जिनका वास्तविकता से कोई दूर का संबंध नहीं था.
दरगाह अजमेर शरीफ को बदनाम को फिल्म अजमेर 92
इसी तरह एक और फिल्म आई है अजमेर 92. इसे लेकर भी भारत का मुस्लिम तबका और सूफी समाज खासा नाराज है. जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने रिलीज हुई फिल्म अजमेर 92 को समाज में दरार पैदा करने की कोशिश बताया है. उन्होंने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक और लोगों के दिलों पर राज करने वाले सच्चे सुल्तान थे. एक हजार साल से आप इस देश की पहचान रहे हैं. आपका व्यक्तित्व एक शांतिप्रिय के रूप में जाना जाता है. उनके व्यक्तित्व का अपमान या अनादर करने वाले स्वयं उनका अपमान कर रहे हैं.
मौलाना मदनी ने कहा कि वर्तमान में समाज को बांटने के बहाने खोजे जा रहे हैं. आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने के लिए फिल्मों और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है, जो निश्चित रूप से निराशाजनक और हमारी साझी विरासत के लिए गंभीर है.
मौलाना मदनी ने कहा कि अजमेर में जो घटना हुई है, उसकी प्रकृति बताई जा रही है, यह पूरे समाज के लिए बेहद दुखद और घृणित कार्य है. इसके खिलाफ बिना किसी धर्म या संप्रदाय के सामूहिक संघर्ष की जरूरत है, लेकिन यहां समाज को बांटने और इस दुखद घटना की गंभीरता को खत्म करने की कोशिश की जा रही है.
मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि ऐसी फिल्म पर बैन लगाएं और जो लोग समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें हतोत्साहित करें.
मौलाना मदनी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत बड़ा आशीर्वाद और किसी भी लोकतंत्र की मुख्य ताकत है, लेकिन इसकी आड़ में देश को तोड़ने वाले विचारों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है और न ही यह हमारे देश के लिए फायदेमंद है. विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को निशाना बनाने के लिए जिस तरह से फिल्मों और वृत्तचित्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह पूरी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है और एक स्थिर राज्य के निर्धारण को कमजोर करता है.