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संशोधित वक्फ अधिनियम पर नाराज़ जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, बताया मुस्लिम विरोधी,मदनी ने जताई चिंता

मुस्लिम नाउ,नई दिल्ली

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले संशोधित वक्फ विधेयक की आलोचना करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के लिए अस्वीकार्य बताया है.उन्होंने एक बयान में कहा, “हम वक्फ अधिनियम, 1995 में प्रस्तावित संशोधनों का विरोध करते हैं, जो सरकार द्वारा नए यूडब्ल्यूएमईईडी अधिनियम (UWMEED Act) के माध्यम से लाए जा रहे हैं. भले ही इसके आद्याक्षर सकारात्मक प्रतीत होते हों, लेकिन इन संशोधनों का उद्देश्य सेवा प्रदान करने वाले समुदायों और वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता और अखंडता को कम करना है. यह मुस्लिम समुदाय के लिए स्वीकार्य नहीं है.”

सैयद सआदतुल्लाह ने कहा, “यह विधेयक वक्फ के कानूनी ढांचे को कमजोर करने का प्रयास करता है, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर खतरा पैदा होता है. संविधान उन्हें अपनी धार्मिक प्रथाओं और संपत्तियों का संरक्षण और संचालन करने की अनुमति देता है, लेकिन प्रस्तावित विधेयक ‘कलेक्टर राज’ को बढ़ावा देता है, जो कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों पर अप्रत्याशित अधिकार प्रदान करता है. यह बदलाव न केवल वक्फ के अंतिम अधिकार को कमजोर करता है, बल्कि वक्फ की अवधारणा को भी समाप्त करता है.”

उन्होंने यह भी बताया कि इस विधेयक को बिना प्रमुख हितधारकों से परामर्श किए तैयार किया गया है. उन्होंने कहा, “यदि वक्फ धर्मशास्त्र के विशेषज्ञों के साथ उचित परामर्श किया गया होता, तो यह स्पष्ट हो जाता कि वक्फ को पुनर्परिभाषित करना विधायी क्षेत्राधिकार से परे है.”

विधेयक पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “संशोधन पुराने औपनिवेशिक कानूनों से प्रेरित है, जो कलेक्टर को अंतिम प्राधिकारी के रूप में स्थापित करता है, जिससे मुसलमानों के अपने धार्मिक दान का प्रबंधन करने के अधिकारों का हनन होता है.”

सैयद सआदतुल्लाह ने यह भी कहा कि इस विधेयक का निर्माण बिना मुस्लिम समुदाय के किसी भी सदस्य या सांसद से परामर्श के किया गया है. उन्होंने सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की अपील की और कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जाएंगे.

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि संसद में जो संशोधन प्रस्तुत किए गए हैं, वह वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं. इससे सरकारी एजेंसियों को अनावश्यक हस्तक्षेप का अवसर मिलेगा, जिससे वक्फ की मूल स्थिति और खुदा के स्वामित्व की अवधारणा का हनन होगा.

मौलाना मदनी ने कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 40 को निरस्त करना और वक्फ ट्रिब्यूनल के बजाय जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व और कब्जे से संबंधित मुद्दों और विवादों को राजस्व कानूनों के अनुसार हल करने का अधिकार दिया जाना एक तरह से वक्फ बोर्ड को खत्म करने के समान है.

उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक बात यह है कि जब किसी भूमि पर सरकार का कब्जा हो, तो उसके स्वामित्व का निर्णय भी कलेक्टर द्वारा किया जाएगा. ऐसी स्थिति में न्याय करने वाला और वादी दोनों सरकार ही होंगे. ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ सांप्रदायिक तत्वों ने वक्फ अधिनियम को रद्द करने का जो अभियान शुरू किया था, वर्तमान सरकार उन लोगों के नापाक विचारों से प्रभावित है. मौलाना मदनी ने कहा कि इस तरह का कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए निर्देशों और भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है.

मौलाना मदनी ने लिमिटेशन एक्ट 1963, से वक्फ संपत्तियों को प्राप्त संरक्षण के समाप्त करने, वक्फ बाई यूजर और वक्फ अलल-औलाद को समाप्त करने के प्रस्ताव को भी दुर्भावनापूर्ण बताया.

मौलाना मदनी ने वक्फ संपत्तियों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि वक्फ संपत्तियों पर ईश्वर का स्वामित्व है. इन्हें किसी सरकार या शासन के अधीन अथवा कब्जे में नहीं लाया जा सकता. इसके साथ ही इनके उद्देश्य भी तय हैं, जिनके निर्देश इस्लामी शिक्षाओं में दिए गए हैं. इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और अधिकार वक्फ बोर्ड के पास ही रहे और इसमें मुस्लिम विद्वानों का प्रतिनिधित्व भी बना रहे ताकि वक्फ की प्रासंगिकता और उद्देश्य बरकरार बना रहे.

मौलाना मदनी ने सरकार से अपील की है कि वह प्रस्तावित संशोधनों को वापस ले और धार्मिक नेताओं और वक्फ प्रबंधन की संस्थाओं सहित सभी हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्श करे. उन्होंने कहा कि कानून में संशोधन या बदलाव कोई प्रतिबंधित बात नहीं है, लेकिन प्रस्तावित संशोधनों के कुछ पहलू वक्फ के उद्देश्यों के विरुद्ध हैं, इसलिए वक्फ़ संपत्तियों की संप्रभुता को संरक्षित रखा जाए और किसी भी परिवर्तन को धार्मिक वर्गों और मुस्लिम संस्थानों की सहमति से किया जाए. मौलाना मदनी ने राजनीतिक दलों और सभी संबंधित नागरिकों से अपील की कि वह इन प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ आवाज उठाएं और धार्मिक अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए एकजुटता का प्रदर्शन करे.