News

भारत-पाकिस्तान युद्धविराम पर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का स्वागत: स्थायी शांति और कूटनीतिक संवाद की अपील

मुस्लिम नाउ,नई दिल्ली


भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में घोषित युद्धविराम समझौते को लेकर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने न सिर्फ खुले दिल से स्वागत किया है, बल्कि इस ऐतिहासिक क्षण को स्थायी शांति की दिशा में निर्णायक मोड़ के रूप में देखा है। संगठन के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने शनिवार को जारी एक बयान में इस समझौते को “एक सकारात्मक और अत्यंत आवश्यक प्रगति” बताया, जो उपमहाद्वीप में दशकों से व्याप्त तनाव के बीच “शांति और स्थिरता की आशा की किरण” बनकर उभरी है।

शांति प्रयासों के पक्ष में आवाज़ें बनीं उम्मीद की मशाल

अपने बयान में सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने उन सभी व्यक्तियों, नागरिक समाज समूहों, तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति गहरा आभार व्यक्त किया, जिन्होंने मुश्किल समय में संयम और संवाद की वकालत की।
उन्होंने कहा, “आवेशपूर्ण माहौल में इन आवाज़ों ने मानवीय गरिमा को बनाए रखने और जीवन को संरक्षित करने के महत्व की शक्तिशाली याद दिलाई है।”
यह टिप्पणी उस समय आई है जब दोनों देशों की सीमाओं पर हाल के वर्षों में तनाव चरम पर रहा है और युद्ध जैसे हालात की आशंका बार-बार व्यक्त की गई है।

संघर्ष के शिकार लोगों के प्रति संवेदना

जमाअत अध्यक्ष ने युद्ध और संघर्ष की चपेट में आकर अपनी जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों के प्रति भी गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह मृतकों के परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान करे और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की आजीविका, संपत्ति और मानसिक स्वास्थ्य को हुए नुकसान की भरपाई सुनिश्चित करे।
उन्होंने कहा कि, “सीमावर्ती गांवों में लोगों ने दशकों से लगातार खौफ और विस्थापन की त्रासदी झेली है। अब वक्त है कि उनकी पीड़ा को ठोस राहत में बदला जाए।”

संवाद और कूटनीति की संस्थागत प्रक्रिया पर ज़ोर

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि यह युद्धविराम केवल एक अस्थायी राहत नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे स्थायी शांति और परस्पर विश्वास की ओर बढ़ने का अवसर बनाना चाहिए।
सैयद हुसैनी ने कहा, “स्थायी शांति केवल तब मुमकिन है जब संवाद और कूटनीति को संस्थागत रूप दिया जाए। भारत और पाकिस्तान को अब उस राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा जो इस संघर्ष विराम को एक नई शुरुआत में बदल सके।”
उन्होंने दोनों देशों से अपील की कि वे आपसी सहयोग, सम्मान और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में ठोस क़दम उठाएं, और इस क्षेत्र को आतंकवाद से मुक्त करने के लिए मिलकर कार्रवाई करें।

जमाअत की ओर से शांति और न्याय के प्रति पुनः प्रतिबद्धता

बयान के अंत में सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद शांति, न्याय और सौहार्द के सिद्धांतों पर अडिग है। संगठन यह मानता है कि पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष से केवल आमजन को पीड़ा होती है और इसका सबसे अधिक असर सीमावर्ती मुस्लिम, दलित, किसान और मेहनतकश समुदायों पर पड़ता है।
उन्होंने दोनों सरकारों से यह भी अपील की कि वे “संयुक्त मानवीय एजेंडे” के तहत ऐसे कदम उठाएं जो न केवल सुरक्षा का माहौल बनाएं बल्कि संस्कृति, व्यापार, शिक्षा और जनसंपर्क के ज़रिए लोगों को जोड़ें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर उपमहाद्वीप सुनिश्चित करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *