जामिया मिलिया के तीन शोधार्थियों ने अमेरिका में हासिल की प्रतिष्ठित पोस्टडॉक्टरल फेलोशिप, वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के लिए यह गौरवपूर्ण क्षण है कि उसके मल्टीडिसिप्लिनरी सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड स्टडीज़ (MCARS) से पीएचडी कर चुके तीन होनहार शोधार्थियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिष्ठित शोध संस्थानों में पोस्टडॉक्टरल फेलोशिप प्राप्त कर भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है।
जामिया के ये तीन शोधार्थी हैं:
- डॉ. मुहम्मद इकबाल आज़मी
- डॉ. सलीम अनवर
- डॉ. खुर्शीदुल इस्लाम
इन तीनों ने अपना शोध कार्य डॉ. जावेद इकबाल के निर्देशन में पूर्ण किया, जो एमसीएआरएस के प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक हैं। ये उपलब्धियां न केवल विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्तर को दर्शाती हैं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता को भी प्रमाणित करती हैं।
डॉ. मुहम्मद इकबाल आज़मी: क्रिस्पर तकनीक के विशेषज्ञ, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में फेलो
डॉ. आज़मी को उनकी सीआरआईएसपीआर तकनीक आधारित कोविड-19 डिटेक्शन किट के विकास के लिए पहले ही वैज्ञानिक जगत में पहचान मिल चुकी है। उन्हें ICMR-SRF फेलोशिप और प्रतिष्ठित TNQ साइंस अवार्ड 2022 से भी नवाजा गया था। वर्तमान में वे अमेरिका के रोचेस्टर विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च फेलो के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ. सलीम अनवर: एमोरी यूनिवर्सिटी, अटलांटा में शोध आरंभ
ICMR से रिसर्च फेलोशिप प्राप्त करने वाले डॉ. सलीम अनवर को जामिया मिलिया इस्लामिया के बायोसाइंसेज़ विभाग द्वारा आयोजित सम्मेलन में ‘सर्वश्रेष्ठ मौखिक प्रस्तुति पुरस्कार’ भी मिल चुका है। उन्होंने हाल ही में एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन, अटलांटा, जॉर्जिया में पोस्टडॉक्टरल फेलो के रूप में अपनी सेवाएं शुरू की हैं।
डॉ. खुर्शीदुल इस्लाम: रोचेस्टर विश्वविद्यालय में जारी है उन्नत शोध
डॉ. खुर्शीदुल इस्लाम भी अमेरिका के रोचेस्टर विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च में जुटे हैं। उल्लेखनीय है कि तीनों विद्वानों को अपनी पीएचडी पूरी करने के तुरंत बाद ही पोस्टडॉक्टोरल ऑफर प्राप्त हुआ और वे तीन महीने के भीतर अमेरिका पहुंच गए।
डॉ. जावेद इकबाल का मार्गदर्शन: सफलता की आधारशिला
इन तीनों विद्वानों की सफलता का श्रेय डॉ. जावेद इकबाल के उत्कृष्ट मार्गदर्शन को भी जाता है। उन्होंने न केवल इन शोधार्थियों को तैयार किया, बल्कि अपने अनुसंधान प्रयोगशाला को देश की अग्रणी प्रयोगशालाओं में से एक बनाया।
डॉ. इकबाल जुलाई 2017 में एमसीएआरएस से जुड़े और तब से केंद्र के विकास और अकादमिक गुणवत्ता में अहम योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कई स्नातकोत्तर छात्रों को भी सफलता की ओर मार्गदर्शित किया है। उदाहरणस्वरूप:
- फातिमा रिजवी (M.Sc. वायरोलॉजी) को रिलायंस फाउंडेशन पोस्टग्रेजुएट स्कॉलरशिप प्राप्त हुई।
- सुश्री अदीला खानम को प्रिंसटन फाउंडेशन यूएसए की स्कॉलरशिप प्रदान की गई।
विज्ञान में क्रांति: कोविड-19 और हेपेटाइटिस के लिए नई तकनीकों का विकास
डॉ. इकबाल की प्रयोगशाला में चल रहे अनुसंधान को DBT, SERB और DST जैसे तीन प्रमुख राष्ट्रीय शोध फंडिंग एजेंसियों से कुल 23.6 मिलियन रुपये का अनुदान मिला है। इस निधि से:
- कोविड-19 डिटेक्शन किट
- एचसीवी और एचबीवी के लिए CRISPR-आधारित डॉल डायग्नोस्टिक सिस्टम
जैसी उच्च स्तरीय तकनीकों का सफलतापूर्वक विकास किया गया है। इस शोध में डॉ. तनवीर अहमद, डॉ. मोहन जोशी और अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों ने भी सहयोग किया।
प्रशासन और संस्थान का सहयोग सराहनीय
डॉ. जावेद इकबाल ने अपने शोध कार्य के लिए रामलिंगस्वामी फेलोशिप और DBT के सहयोग की प्रशंसा की। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया प्रशासन, प्रोफेसर मुहम्मद हुसैन (मानद निदेशक), प्रोफेसर जाहिद अशरफ (डीन), और कुलपति को धन्यवाद दिया, जिनके सहयोग से यह अनुसंधान बाधारहित रूप से चलता रहा।
निष्कर्ष: वैश्विक मंच पर जामिया की धमक
तीनों शोधार्थियों की यह सफलता सिर्फ जामिया मिलिया इस्लामिया की नहीं, बल्कि भारत के युवा वैज्ञानिक समुदाय की वैश्विक स्वीकार्यता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि यदि सही मार्गदर्शन और शोध संसाधन उपलब्ध कराए जाएं तो भारतीय छात्र वैज्ञानिक नवाचार के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेतृत्व कर सकते हैं।