वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची जमीअत उलमा-ए-हिंद,बताया – मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली
जमीअत उलमा-ए-हिंद, जो भारत की सबसे पुरानी मुस्लिम सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं में से एक है, ने हाल ही में लागू किए गए वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को भारतीय संविधान के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। संस्था के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी द्वारा दायर की गई जनहित याचिका (PIL) में इस अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए का उल्लंघन बताया गया है।
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⚖️ क्या है मामला?
8 अप्रैल 2025 से लागू वक्फ (संशोधन) अधिनियम को जमीअत उलमा-ए-हिंद ने मुस्लिम समुदाय की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान पर सीधा हमला बताया है। संस्था का आरोप है कि यह कानून:
- धार्मिक संपत्तियों के अधिकार छीनता है
- वक्फ संपत्तियों की परिभाषा व स्वामित्व को मनमाने ढंग से बदलता है
- और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों के प्रशासनिक अधिकार को कमजोर करता है।
🧑⚖️ याचिका में क्या-क्या कहा गया है?
मौलाना मदनी द्वारा दाखिल याचिका में प्रमुख आपत्तियाँ:
1. प्रैक्टिसिंग मुस्लिम की शर्त
अब वक्फ (दान) करने वाले को यह साबित करना होगा कि वह पिछले पाँच वर्षों से प्रैक्टिसिंग मुस्लिम है।
➡️ यह न केवल संविधान की भावना के खिलाफ है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन है।
2. वक्फ में षड्यंत्र की जांच की शर्त
वक्फ दान देने वाले को साबित करना होगा कि उसका दान किसी षड्यंत्र या राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित नहीं है।
➡️ यह एक असंवैधानिक और अपमानजनक धारणा है।
3. वक्फ बाई-यूजर की समाप्ति
ऐसे धार्मिक स्थल जो वर्षों के जन उपयोग से वक्फ घोषित हुए हैं, अब कानूनी दर्जा खो सकते हैं।
➡️ इससे लगभग चार लाख वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण की आशंका बढ़ गई है।
4. गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति
राज्य और केंद्रीय वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का प्रावधान।
➡️ यह सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने धार्मिक मामलों का स्वतंत्र संचालन सुनिश्चित करता है।
🧓🏻 मौलाना मदनी ने क्या कहा?
मौलाना महमूद मदनी ने कड़े शब्दों में कहा:
“यह अधिनियम बहुसंख्यकवादी मानसिकता की उपज है। इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संरचना को तहस-नहस करना है। यह कानून धर्मनिरपेक्ष भारत की आत्मा के खिलाफ है और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की हत्या है।“
जमीअत उलमा-ए-हिंद ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
— Jamiat Ulama-i-Hind (@JamiatUlama_in) April 11, 2025
– याचिकाकर्ता जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि यह कानून भारतीय संविधान के कई मौलिक प्रावधानों के विरुद्ध
– 13 अप्रैल को जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारिणी की बैठक में आगे की… pic.twitter.com/svDgPE2lZd
🧑💼 कौन कर रहे हैं पैरवी?
- एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मंसूर अली खान सुप्रीम कोर्ट में याचिका की पैरवी कर रहे हैं।
- जमीअत के कानूनी मामलों के प्रमुख एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी के अनुसार, संस्था ने वरिष्ठ वकीलों की एक टीम तैयार की है, जो अधिनियम की संवैधानिक समीक्षा के लिए कोर्ट में विस्तृत पक्ष रखेगी।
🕌 वक्फ क्या है और क्यों है यह अहम?
वक्फ एक इस्लामी परंपरा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक, शैक्षणिक या जनकल्याणकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित कर देता है। वक्फ संपत्तियाँ सदियों पुरानी मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और सामाजिक संस्थाओं का आधार रही हैं। यह अधिनियम इन सभी संस्थाओं की संरचना और अधिकार को सीधे प्रभावित करता है।
🧭 जमीअत की आगे की रणनीति क्या होगी?
13 अप्रैल 2025 (रविवार) को जमीअत उलमा-ए-हिंद की केंद्रीय कार्यकारिणी की अत्यंत महत्वपूर्ण बैठक दिल्ली स्थित मुख्यालय पर बुलाई गई है।
इस बैठक में:
- कानूनी लड़ाई की रणनीति तय की जाएगी
- अन्य मुस्लिम संगठनों को जोड़ने पर विचार होगा
- संविधानिक जनजागरण अभियान की रूपरेखा पर भी चर्चा हो सकती है
📢 संवाददाता सम्मेलन
बैठक के बाद दोपहर 3 बजे जमीअत के अध्यक्ष मौलाना मदनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए मीडिया को संबोधित करेंगे।
🧠 विश्लेषण: क्या यह कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून धर्म आधारित संपत्ति प्रबंधन में एकतरफा हस्तक्षेप करता है। अगर सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करता, तो यह देश की सेक्युलर फाउंडेशन और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक खतरनाक नज़ीर बन सकता है।