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Jammu and Kashmir एक साल से बे पटरी जिंदगी

हुक्मरानों और सियासतदानों की पैंतरेबाजी से इतर यहां की आम अवाम इस वक्त कुछ और सोंच रही। वह चाहती है कि किसी तरह उनका रोजी-रोज़गार पटरी पर आ जाए

श्रीनगर के 37 वर्षीय मोहम्मद रजब टैक्सी चलाते हैं। पर्यटकों को सैर कराना उनका पेशा है। ऐसे ही और ढाई सौ लोग श्रीनगर में हैं, जिनका मुख्य रोज़गार टैक्सी ड्राइवरी है। मगर पिछले एक वर्ष से सभी बेरोजगार घर बैठे हैं। उनकी टैक्सियां रोड किनारे खड़ी हैं। इसी तरह श्रीनगर के अब्दुल रशीद की भी डल झील में सज-धज कर खड़ी हाउसबोट को पिछले एक वर्ष से पर्यटकों का इंतजार है। नजर बंदी, तालाबंदी, गिरफ्तारियां और लॉकडाउन ने पिछले एक वर्ष में जम्मू कश्मीर के ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि सूबे की पूरी अर्थव्यवस्था बे पटरी हो गई है।
 कश्मीर चौंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की मानें ने तो एक साल में सूबे को 5.3 बिलियन का आर्थिक नुकसान हुआ। आधा मिलियन से अधिक लोगों की नौकरियां चली गईं। आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खात्मे, सभी को बराबरी का दर्जा दिलाने,कश्मीरी पंडितों को वापस उनके पुश्तैनी क्षेत्र में बसाने के नाम पर पिछले वर्ष 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35 ए हटाकर विशेष दर्जा छीन  लिया गया था। तब से हालत बेहतर की जगह बतर हुए हैं। प्रदेश से न आतंकवादी खत्म हुए और न ही कश्मीरी पंडित वापस आए। शांति बहाली के नाम पर पूरे प्रदेश में हर तरफ सैनिक ही सैनिक नजर आते हैं।

प्रदेश के दो टुकड़े और डोमिसाइल कानून में बदलाव का विरोध
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जम्मू कश्मीर के भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अलताफ ठाकुर एक टीवी चैनल से बातचीत में कहते हैं कि सूबे के विकास के लिए एक लाख करोड़ रूपये का बजट तैयार है, जिससे जल्द ही तस्वीर बदल जाएगी। यहां के लोग बदलाव कब देखेंगे, इसका जवाब वह नहीं दे पाते। देश का यह पहला राज्य है जिसकी फोर जी सेवा स्थगित और इसके तमाम बड़े नेता नजर बंद हैं। प्रदेश की अंतिम मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्तिी की नजर बंदी की अवधि फिर बढ़ा दी गई। अनुच्छेद 370 और 35 ए हटने के बाद से यहां राष्ट्रपति शासन लागू है। पहले जम्मू कश्मीर और लद्दाख एक ही प्रदेश था। 370 हटने के बाद से प्रदेश को विभक्त कर दो केंद्र शासित प्रदेशों का दर्जा दे दिया गया है। लद्दाख अब बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है, जब कि जम्मू कश्मीर विधानसभा रहित केंद्र शासित प्रदेश। केंद्र सरकार ने संसद में ऐलान किया है कि जब तक कश्मीर के हालत सामान्य नहीं होंगे, वहां चुनाव नहीं कराए जाएंगे, जिसके निकट भविष्य में आसार नहीं दिखते। कश्मीरी पंडित वहां रहने वाले बाहरी लोगों को नागरिकता देन का विरोध कर रहे हैं। उनके हक-हुकूक के लिए संषर्घरत अमित रैना डोमिसाइल कानून में बदलाव को सही नहीं मानते। उन्होंने केंद्र से तुरंत इसे वापस लेने की मांग की है। साथ ही कहा है कि उनके समाज की कश्मीर वापसी तभी संभव है जब केंद्र सरकार नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों को प्रदेश छोड़ने के लिए मजबूर करने वाले अलगावादियों को सजा नहीं देती। जम्मू कश्मीर के कांग्रेस प्रवक्ता रविंदर ठाकुर कहते हैं कि अनुच्छेद 370 हटने से यहां कुछ नहीं बदला। न ही अब तक इस प्रदेश को कुछ विशेष मिला है। एक साल में हमने खोया ही खोया।

आतंकवाद रूकने और रोजगार पटरी पर लौटने का इंजतार
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एक आंकड़े के मुताबिक, इस प्रदेश में 2019 में 150 और 2020 में अब तक 131 आतंकवादी मारे गए। बावजूद इसके सीमा पार से पाकिस्तानी घुसपैठ बंद नहीं हुई है। आतंकवादी गतिविधियाँ भी नहीं थमी। खुफ़िया रिपोर्ट वहां अभी भी 163 के करीब पाकिस्तानपरस्त आतंकवादी सक्रिय रहने की है। अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता विक्रम मल्होत्रा कहते हैं कि पिछले एक साल में स्थिति सुधरने की बजाए बिगड़ने के विरोध में जल्द आंदोलन किया जाएगा। मगर हुक्मरानों और सियासतदानों की पैंतरेबाजी से अलग यहां की आम अवाम इस वक्त कुछ और सोंच रही है। वह चाहती है कि  उनका रोजी-रोजगार जल्द पटरी पर आ जाए। दिहाड़ी मजदूर पूरी तरह टूट चुके हैं। पर्यटन के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले वर्ष 5 अगस्त से पहलेे अचानक सूबे भर में अर्धसैनिक भर दिए गए। फिर यहां से हजारों पर्यटकों, हिंदू तीर्थयात्रियों एवं प्रवासी श्रमिकों को  जबरन घर भेज दिया गया। तब से सैलानियों ने इस प्रदेश का रूख नहीं किया है। उनके इंतजार में  सैकड़ों रंगीन नक्काशीदार हाउस बोट, शिकारे आज भी जूं का तूं खड़े हैं। कश्मीर की झीलें विरान हैं। होटल खाली। कुछ व्यापारियों ने इस वर्ष की शुरुआत में कारोबार दोबारा  शुरू किया था, पर कोरोनावायरस और लॉकडाउन ने उनके प्रयासों को पलीता लगा दिया। श्रीनगर के सात दशक पुराने होटल स्टैंडर्ड के मैनेजर खुर्शीद अहमद के मुताबिक, एक साल पहले तक उनके यहां 30 कर्मचारी थे। अब मात्र तीन हैं। वही होटल की सफाई भी करते हैं। नाव चालक मोहम्मद लतीफ कहते हैं कि पहले झील के चारों ओर फेरी लगाकर पर्यटकों से मोटी कमाई कर लेते थे। अब घर चलाने के लिए बैंकों के बाहर खीरा, सिगरेट बेचते हैं। हाउस बोट के मालिक गुलाम कादिर ओटा का कहना है कि उन्होंने गत एक साल में एक पैसा भी नहीं कमाया। हमारे पास नाव हैं। इसके अलावा कमाने का और कोई जरिया नहीं।

कुछ काम की बातें
-1956 में जम्म कश्मीर के संविधान मंे स्थायी नागरिकता की परिभाषा तय
-14 मई 1954 से रहने वालों को प्रदेश की नागरिकता
-दस वर्षों से रहने वालों को भी नागरिकता
-17 नवंबर 1952 में जम्मू कश्मीर में अनुच्छे 370 लागू
-इसके तहत सूबे के लोगों को विशेष सुविधाएं
-इसका अपना संविधान, अपना निशान
-प्रदेश के तहत रक्षा, विदेश, संचार भारत सरकार का विषय
-5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद वापस लेने के बाद भारत का संविधान लागू
-प्रदेश का निशान अब तिरंगा

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संपादक