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कर्नाटक सरकार के फैसले के खिलाफ न्यायिक कदम उठाए जाएंगे, आरक्षण खत्म करने पर बोले मौलाना महमूद मदनी

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

एक तरफ देश के प्रधानमंत्री पसमांदा मुसलमानों की भलाई और कल्याण की बातें कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उनकी सरकार कर्नाटक में मुसलमानों से आरक्षण छीनकर अन्य वर्गों को बांट रही है. 25 मार्च को कर्नाटक सरकार द्वारा मुसलमानों के पिछड़े वर्ग के लिए 27 वर्षों से जारी आरक्षण को समाप्त किए जाने की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने रविवार को उक्त बातें कही. उन्होंने इसे व्यापक विकास नीति के लिए हानिकारक बताया है बताते हुए कहा कि इससे सरकार का दोहरा रवैया प्रतीत होता है.

मौलाना मदनी ने तर्क दिया कि विभिन्न सरकारी आंकड़ों और आयोगों की रिपोर्टों से यह तथ्य स्पष्ट है कि भारत के मुसलमान आर्थिक और शैक्षिक रूप से अत्यंत पिछड़े और विकास के सबसे निचले पायदान पर हैं, इसलिए आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर मुसलमानों से अधिक कोई भी समुदाय आरक्षण का हकदार नहीं है. लेकिन धर्म को आधार बना कर भाजपा मुसलमानों को देश में मिलने वाले ऐसे सभी लाभ से वंचित करती रही है, जबकि कर्नाटक में विशेष रूप से धर्म आधार नहीं है और न ही सभी मुसलमान इससे लाभान्वित हो रहे हैं बल्कि 12 पसमांदा मुस्लिम जातियां ही इस श्रेणी में आती हैं.

मौलाना मदनी ने कहा कि तथ्यों के बावजूद कर्नाटक सरकार द्वारा मुसलमानों के आरक्षण को समाप्त कर के वहां के वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए आरक्षण में वृद्धि किया जाना चुनावी अवसरवादिता और घोर तुष्टीकरण के उदाहरण हैं जिसका उद्देश्य दो समुदायों के बीच विवाद और दूरी पैदा करना भी है. इस संबंध में न्यायिक प्रक्रिया के लिए जल्द कदम उठाए जाएंगे.