Kargil Vijay Diwas मुस्लिम शहीदों को याद रखना क्यों जरूरी ?
ब्यूरो रिपोर्ट।
मुसलमानों को अपनी उपलब्धियां सहेजनी नहीं आतीं। ‘करगिल विजय दिवस’ ने इसका एहसास शिद्दत से कराया। पाकिस्तान से लोहा लेते कितने भारतीय सैनिकों ने अपनी जानें गंवाईं यह आंकड़े तो मौजूद हैं। मगर उनमें मुस्लिम कितने थे, यह ढूंढे नहीं मिला। बावजूद इसके बता दूं कि कम से कम ऐसे 24 मुस्लिम सैनिक थे जिन्होंने न केवल अपने सीने पर दुश्मन फौज की गोलियां खाईं, फ्रंट पर रहकर पाकिस्तानी सैना को पीछे जाने को मजबूर किया। स्थिति है कि आज उनका कोई नाम लेवा भी नहीं।
समुद्र तल से करीब 18000 फीट उंचाई पर करगिल की पहाड़ियों में ठुठरा देने वाली ठंड के बीच लड़ी गई हिंदुस्तान-पाकिस्तान की जंग में देश के 527 सैनिक शहीद हुए थे और 1363 घायल। इनमें अधिकतर नॉर्दन लाइट इंफेंट्री के सैनिक थे। पाकिस्तान ने अप्रैल के अंत में अपने 5000 सैनिकों की मदद से करगिल पर कब्जा किया था। इसके बटालिक सेक्टर के गारकॉन गांव का चरवाहा ताशि नाम्ग्याल एक दिन अपने खोये याक को ढूंढता हुआ जब उस ओर पहुंचा तो उसने पाकिस्तानी फौजियों की गतिविधियाँ देखीं, जिसकी जानकारी तत्काल स्थानीय सेना अधिकारियों को दे दी। उसके बाद करगिल से खदेड़ने के लिए भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच 3 मई 1999 से युद्ध शुरू हुआ। इस दौरान भारत की ओर से ढाई लाख से अधिक गोले दागे गए। पांच हजार से अधिक बम फायर हुए। तीन सौ के करीब मोर्टार, तोपें, रॉकेट चले। वायु सेना की जहाजों ने 580 उड़ानें भरीं तथा 2500 से ज्यादा बार भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर को आकाश के चक्कर काटने पड़े। तब जाकर करगिल की पहाड़ियां पाकिस्तानी सेना से मुक्त हुईं। 14 जुलाई 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी ने करगिल मुक्त करने का ऐलान किया और प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को ‘करगिल विजय दिवस’ मनाने की घोषणा की।
इस क्रम में सर्वप्रथम हमारे 17 सैनिक 13 जून 99 को तब शहीद हुए जब वे तोलोलिंग की पहाड़ियों में तिरंगा फहरा रहे थे। इस हमले में 40 भारतीय सैनिक भी घायल हुए थे। जिनमें कई मुस्लिम थे। हालांकि देश के लिए मार-मिटने वाले सैनिकों का कोई मज़हब नहीं होता। बावजूद इसके सभी धर्म, समुदाय, जाति के लोग इसका हिसाब तो रखते ही हैं कि किसी बड़ी कामयाबी में उनके लोगों की क्या भूमिका रही ? पंजाब के लोगों ने तो बजाप्त गुरूमुखी में कारगिल में शहीदा हुए अपने प्रदेश के जवानों की पूरी लिस्ट सोशल मीडिया पर डाल रखी है। इस युद्ध में कितने मुस्लिम जवानों ने अपनी जिंदगियां न्योछावर कीं ? इसका ब्योरा नहीं मिलता। सोशल मीडिया खंगालने पर ‘सबसे कमउम्र कारगिल के शहीद’, ‘पांच शहीदों की कहानी’ और ‘करगिल विजय के दस महत्वपूर्ण बिंदु’ जैसी अनेक कहानियां मिल जाएंगी, पर मुस्लिम सैनिकों के योग्य दान का कोई विवरण नहीं मिलेगा। रविवार को अनेक अखबारों एवं वेबसाइटों ने करगिल युद्ध पर फीचर, रिपोर्ट और लेख प्रकाशित किए, उनमें भी मुस्लिम सैनिकों के योगदान का जिक्र नहीं है, न ही किसी मुस्लिम जांबाज सैनिक की लड़ाई की दास्तां। यहां तक कि मुस्लिम संगठनों को भी होश नहीं किए ‘विजय दिवस’ जैसे मौके पर ही सही उन्हें याद करने के लिए नाम और तमाम जानकारियां इकट्ठी कर ली जाएं ताकि उनकी कौम भी गौरवान्वित महसूस कर सके। ऐसे तथ्यों से उनकी जुबान भी बंद की जा सकती है जो बात बात पर मुसलमानों से भारत को बनाने और सुरक्षित रखने का हिसाब मांगते हैं।
जिन्होंने खाई सीने पर गोलियां
बहरहाल, काफी ढूंढने पर 527 में 449 शहीदों के नाम मिले जिनमें 24 मुस्लिम सैनिक भी शामिल हैं। इस सूची में कैप्टन हनीफ, एमएच अनिरूद्दीन, हवलदार अब्दुल करीब-ए, हवलदार अब्दुल करीम-बी, नायक डीएम खान, लांस नायक हरियाणा के अहमद, यूपी के लांस नायक अहमद अली, जीके के लांस नायक जीए खान, लांस नायक लियाकत अली, हरियाणा के जाकिर हुसैन, आंध्रप्रदेश के एसएम वली व नसीर अहमद का जिक्र है। युद्ध के दौरान ग्रेनेडियर्स, गनर और राइफलमैन का अहम रोल होता है। ये आगे रहकर दुश्मन सेना से सीधा मोर्चा लेते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि करगिल युद्ध में छह मुस्लिम ग्रेेनेडियर्स भी दुश्मन देश से लोहा लेते शहीद हुए थे जिनमें एमआई खान,रियासत अली, आबिल अली खान, जाकिर हुसैन, जुबैर अहमद और असन मोहम्मद उल्लेखनीय हैं। युद्ध में आगे रहकर राइफलमैन केरल के अब्दुल नाजिर, राजपूताना राइफल्स के मंज़ूर अहमद, जम्मू कश्मीर के मोहम्मद आलम और मोहम्मद फरीद तथा हरियाण निवासी गनर रियास अली ने भी सीने पर गोलियां खाई थीं। बहुत ढूंढने के बाद भी और शहीदोें और घायलों के नाम नहीं मिले। बावजूद इसके उम्मीद है कि उक्त सूची में भी मुस्लिम सैनिक खासी संख्या अवश्य होंगे।
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संपादक