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कश्मीर की बेटी का दुनिया में परचम: डॉ. हुमैरा गौहर का वैज्ञानिक योगदान

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

डॉ. हुमैरा गौहर वैज्ञानिक उत्कृष्टता और सांस्कृतिक पुल निर्माण का एक अद्वितीय उदाहरण हैं. कश्मीर में जन्मी और पली-बढ़ी, उन्होंने श्रीनगर की सड़कों से लेकर अमेरिका की अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं तक का सफर तय किया है. उनकी यह यात्रा जिज्ञासा, धैर्य और विभिन्न संस्कृतियों के आदान-प्रदान की ताकत का प्रमाण है.

ग्रेटर कश्मीर के बिजनेस एडिटर मुकीत अकमाली के साथ इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, डॉ. हुमैरा ने अपने जीवन की विभिन्न कहानियों को साझा किया. इसमें उन्होंने अपने करियर को आकार देने वाले अनुभवों, एक महिला वैज्ञानिक के रूप में सामना की गई चुनौतियों और कश्मीर में नई पीढ़ी के वैज्ञानिकों को तैयार करने के अपने प्रयासों का वर्णन किया.

कश्मीर में शुरुआती जीवन और शिक्षा

डॉ. हुमैरा ने अपने बचपन के बारे में बताया कि यह समय शांतिपूर्ण और खुशहाल था. CASET स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने पंडित समुदाय के साथ मजबूत रिश्ते बनाए. श्रीनगर की तंग गलियों और चहल-पहल से घिरा उनका बचपन, स्थानीय संस्कृति और प्रेम से भरा था.

विज्ञान में रुचि

डॉ. हुमैरा को बचपन से ही विज्ञान में रुचि थी. जब उन्होंने पहली बार आइजैक न्यूटन, मैरी क्यूरी और आइंस्टीन की जीवनी पढ़ी, तभी से वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा मिली. उन्हें अपने स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों से बहुत प्रोत्साहन मिला, जिन्होंने उनकी जिज्ञासा को बढ़ावा दिया.

चुनौतियाँ और अवसर

कश्मीर और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में पढ़ाई करने के बाद, डॉ. हुमैरा ने भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में पीएचडी के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया. विशेष रूप से उस समय महिला वैज्ञानिकों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और परिवार के समर्थन ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की.

जर्मनी और अमेरिका में काम करते हुए, उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर अपने करियर को आगे बढ़ाया और परिवार की जिम्मेदारियों को भी निभाया.

अमेरिका में करियर

डॉ. हुमैरा ने यूएसए में अपने शोध को जारी रखा और जीन अभिव्यक्ति के एपिजेनेटिक विनियमन और इसके स्तनधारी विकास और बीमारियों पर प्रभावों का अध्ययन किया. उनका काम डीएनए मिथाइलेशन और इसके तंत्रों पर केंद्रित है, जिससे उन्हें वैश्विक पहचान मिली.

कश्मीर से संबंध

हालांकि डॉ. हुमैरा अमेरिका में रह रही हैं, फिर भी उन्होंने कश्मीर और भारत के शोधकर्ताओं और संस्थानों के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं. वह कश्मीर विश्वविद्यालय और अन्य भारतीय संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रही हैं, जहां वह छात्रों को मार्गदर्शन और शिक्षण प्रदान करती हैं.

उन्होंने हाल ही में SPARC प्रोजेक्ट के तहत एक फंडिंग प्राप्त की है, जो कश्मीरी छात्रों को उच्च शिक्षा और शोध में सहायता प्रदान करेगा.

आने वाली परियोजनाएँ और योगदान

डॉ. हुमैरा का लक्ष्य एपिजेनेटिक्स के क्षेत्र में अपने काम को और आगे बढ़ाना है. वह कश्मीर और भारत में विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में अपने अनुभव और ज्ञान से योगदान देना चाहती हैं.

वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी के लिए संदेश

डॉ. हुमैरा का मानना है कि अगर वह यह सब कर सकती हैं, तो कोई भी यह कर सकता है. उनके अनुसार, विज्ञान में करियर बनाने के लिए जिज्ञासा, दृढ़ता और मेहनत सबसे महत्वपूर्ण हैं.

निष्कर्ष

डॉ. हुमैरा गौहर की यात्रा सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपनी मातृभूमि और वैश्विक स्तर पर योगदान दे सकता है. उनकी कहानी कश्मीर और दुनिया के अन्य हिस्सों के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है.