जानें कितने समय बाद खुले अफगानिस्तान में विश्वविद्यालय, छात्राएं क्यों नहीं दिखा रहीं दिलचस्पी ?
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, काबुल
पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद से बंद चल रही इस देश की यूनिवर्सिटियां तकरीबन छह महीने बाद फिर खुल गई हैं. मगर तरह-तरह की आशंकाओं के चलते छात्राएं पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं. तालिबान के सत्ता में आने के छह महीने बाद, शनिवार को अफगानिस्तान के मुख्य विश्वविद्यालय फिर से खुल गए, लेकिन केवल कुछ ही महिलाओं एवं पुरुषों ने अलग-अलग कक्षाओं में नजर आए.
समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अधिकांश लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय और सभी सरकारी विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए थे.
तालिबान ने जोर देकर कहा कि इस बार वे लड़कियों और महिलाओं को पढ़ने की अनुमति देंगे, लेकिन केवल अलग-अलग कक्षाओं में और इस्लामी पाठ्यक्रम के अनुसार .देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा काबुल विश्वविद्यालय, जिसमें पिछले साल तक 25,000 छात्र थे, शनिवार को फिर से खुल गया, लेकिन छात्रों की संख्या बहुत कम थी.तालिबान के अंगरक्षकों ने पत्रकारों को विशाल परिसर में जाने से रोक दिया और प्रवेश द्वार के पास मीडिया टीमों का पीछा किया.
हालांकि, एएफपी ने दरवाजे से दूर कुछ छात्रों से बात की, जिन्होंने अपनी वापसी के पहले दिन मिश्रित भावनाएं व्यक्त कीं.एक अंग्रेजी साहित्य के छात्र ने केवल बसिरा के नाम से पहचाने जाने के लिए कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि विश्वविद्यालय फिर से शुरू हो गया है. हम अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं.‘‘
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ कठिनाइयाँ हैं. कक्षा में मोबाइल फोन लाने पर तालिबान के गार्ड छात्रों को फटकार लगा रहे हैं.
‘‘उन्होंने हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. वे असभ्य थे.‘‘अंग्रेजी साहित्य की एक अन्य छात्रा मरियम ने कहा कि उसकी कक्षा में केवल सात छात्राएं थीं. वैसे पूरी यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों केवल 56 ही थे.‘‘
उन्होंने कहा कि व्याख्याताओं की भी कमी है. शायद यह एक कारण है कि वे इतना खराब प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं.‘‘देश भर के विश्वविद्यालयों का यही हाल है. पंजशीर में कोई छात्र कक्षा में नहीं आया. पहले तालिबान शासन के दौरान यह प्रतिरोध का केंद्र बना हुआ था.
प्रोफेसर नूर-उर-रहमान अफजाली ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि वे कल आएंगे या परसों आएंगे या नहीं.‘‘ईरानी सीमा के पास ऐतिहासिक शहर हेरात में छात्रों ने भी शिक्षकों की कमी की शिकायत की.कला की छात्रा प्रेसा निर्वान ने कहा, ‘‘ कुछ प्रोफेसरों ने देश छोड़ दिया है, लेकिन हमें खुशी है कि विश्वविद्यालय के दरवाजे खुले हैं.‘‘