जानें, जफर हाशमी ने क्यों कहा वतन के लिए लड़ें ना कि देश के लोगों को नफरत का शिकार बनाएं
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, कानपुर
भारत-पाकिस्तान के 1965 की जंग में वीर अब्दुल हमीद ने विरोधियों के दांत खट्टे कर दिए थे. उनकी वीरता इतिहास के पन्नों में दर्ज है. उन्होंने जीप पर बैठकर पाकिस्तान के एक-दो नहीं आठ-आठ पैटन टैंकों को तबाह कर दिया था. अब्दुल हमीद की वीरता की आज भी मिसाल दी जाती है. उस वक्त पैटन टैंकों को अजेय माना जाता था.
हमीद ने मैदान-ए-जंग में पाक पैटन टैंकों की कब्रगाह बना दी. युद्धक्षेत्र में ही 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद शहीद हुए, लेकिन तब तक वह अप्रतिम शौर्य की अविस्मरणीय दास्तां लिख चुके थे. इसी को लेकर आज इदरीसी समाज के सबसे बड़े संगठन यूनाइटेड इदरीसी फ्रंट की कानपुर इकाई के तत्वावधान में बाकरगंज चैराहे पर 1965 की भारत- पाकिस्तान की जंग के महानायक महाबली परमवीर पैटन टैंक विध्वंसक वीर अब्दुल हमीद की शहादत की याद में वीरगाथा – परमवीर अब्दुल हमीद का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता यूनाइटेड इदरीसी फ्रंट राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अब्दुल हमीद इदरीसी ने की और संचालन जिलाध्यक्ष मोहम्मद आसिफ कादरी ने किया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सपा के कानपुर नगर अध्यक्ष डा. इमरान इदरीस व एमएमए जौहर फैंस एसोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हयात जफर हाशमी रहे. इस अवसर पर यू आई एफ के जिलाध्यक्ष आसिफ कादरी ने बताया कि वीर हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को गाजीपुर जनपद धामपुर गांँव में हुआ था.1954 में फौज में भर्ती होने के बाद उन्होने 1962 के भारत- चाइना वार में बहादुरी के लिए विशिष्ट सेना मेडल से नवाजा गय.1965 के भारत-पाक जंग में तब पाकिस्तानी सेना अजेय अमरीकी पैटन टैंकों की मदद से अमृतसर की ओर बढ़ी चली आ रही थी तब अपनी गन मांउन्टेड जीप गाड़ी की मदद से अकेले एक के बाद एक कर 7 अमेरिकन पैटर्न टैंको को मार गिराया. आठवें पर निशाना साधते वक्त सीने पर तोप का गोला खाकर शहींद हो गए. मुख्य अतिथि डॉ इमरान ने नौजवानों से अब्दुल हमीद के जीवन से प्रेरणा लेकर वतनपरस्ती का सुबूत पेश करने का आहवान किया.
हयात जफर हाशमी ने कहा कि शहीद वीर अब्दुल हमीद जैसे देश के लिए मर मिटने वालों से नफरत फैलाने वालों को सीख लेनी चाहिए. वतन के लिए लड़ने का जज्बा लाना चाहिए ना कि देश के ही लोगों को नफरत का शिकार बनाना. ऐसे लोग कायरता दिखाते हैं, जो भारतीय असहायों पर हमला करते हैं. वतन पर जान देकर जो मिसाल वीर हमीद ने कायम की है उसे सदियों तक याद किया जाएगा. कार्यक्रम का संचालन जिलाध्यक्ष आसिफ कादरी ने किया. अंत में यूआईएफ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अब्दुल हमीद एवं मध्य उत्तर प्रदेश सदर ने कार्यक्रम में आए सभी का धन्यवाद किया.
इस मौके पर आसिफ कादरी, हयात जफर हाशमी, डॉ इमरान, नदीम सिद्दीकी, मोनू खान,अनवर इदरीसी,फरीद इदरीसी,शमीम इदरीसी, मोहन लाल गुप्ता, सैफ वारसी,रईस अंसारी राजू, फिरोज अन्सारी बाॅबी, फहद जावेद, सैयद जीशान अली, शहाबुद्दीन रजा, शिवा सोनकर, इमरान खान छंगा पठान, असद सफी, मोहम्मद मोहसिन, शहनावाज अंसारी, अकील शानू, मोहम्मद शारिक मंत्री, एहतेशाम अन्सारी आदि मौजूद रहे.
ये भी जानें
जुलाई 1933 को यूपी के गाजीपुर में जन्म.इससे पहले कि अब्दुल हमीद की जांबाजी का किस्सा याद करें, आइए उनके निजी जीवन के बारे में जानते हैं. यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में 1 जुलाई, 1933 को हमीद का जन्म हुआ था. उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था. उनकी दिलचस्पी लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना जैसी चीजों में थी. इसके साथ ही लोगों की मदद के लिए भी वह बढ़-चढ़कर आगे आते थे.
20 साल में पहनी वर्दी, छुट्टी से पहले लौटे फर्ज पर
एक किस्सा यह भी पता चलता है कि एक बार बाढ़ के पानी में डूब रही दो लड़कियों की उन्होंने जान बचाई थी. 20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी. उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध की घड़ी करीब आ रही थी, उस वक्त वह छुट्टी पर अपने घर गए थे, लेकिन पाक से तनाव बढ़ने के बीच उन्हें वापस आने का आदेश मिला. ऐसा भी कहा जाता है कि बिस्तरबंद बांधते वक्त उसकी रस्सी टूट गई थी. इस पर उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने अपशकुन माना. हमीद को उन्होंने रोकने की कोशिश की, लेकिन हमीद के लिए वतन की सेवा और अपना फर्ज सबसे ऊपर था. फिर वह शहीद होकर ही मुर्दे की शक्ल में घर लौटे.