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अरब और दूसरे मुस्लिम देशों की तरह ईरान ने भी दिखाया दोगलापन, हमास से बोला-अपनी लड़ाई खुद लड़ें हमें न घसीटें

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

‘‘मैंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि फिलिस्तीन की जद्दोजहद में कोई भी मुस्लिम मुल्क संजीदा और ईमानदार नहीं है. अब ईरान का बयानियां देख लीजिए और तुर्की के इजराइल से ताल्लुकात तो जगजाहिर हैं.इससे अच्छे तो नार्थ कोरिया, चिली, बोलीविया जैसे गरीब और छोटे मुल्क हैं.’’ यह शब्द हैं भारत के गैर सरकार संगठन एमएसओ के चेयरमैन डॉ शुजात अली कादरी के.

दरअसल, शुजात अली कादरी की यह प्रतिक्रिया ईरान के उस बयान की प्रतिक्रिया में है, जिसमें उसने हमास को इजरायल के युद्ध में उसे न घसीटने और अपनी लड़ाई खुद लड़ने की बात कही है. ईरान से पहले दुनिया के लगभग तमाम मुस्लिम एवं अरब देशों का भी यही रवैया रहा है. सऊदी अरब और तुर्की खुद को मुस्लिम देशों की रहनुमाई का ढोंग करते रहते हैं. मगर हमास-इजरायल युद्ध में इनकी पोल खुल चुकी है. इजरायली सेना गाजा में निरंतर फिलिस्तीन के लोगों की लाशों बिछा रही हैं. मासूमों तक को गोलियों से भूना जा रहा है. उनका खाना, पानी बंद है. अस्पताल बम से उड़ा दिए गए हैं ताकि घायलांे का इलाज नहीं किया जा सके.

इजरायल खुद को सच्चा साबित करने के लिए निरंतर अफवाह फैला रहा है. इन सबके बावजूद मुस्लिम और अरब देश सिवाए बयानबाजी के अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे पता चले कि वे मुसलमान और फिलिस्तीन के हिमायती हैं और उनकी सच्चे दिल से मदद करना चाहते हैं. यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र का मंच हो या अरब लीग अथवा अफ्रीकी देशों का शिखर सम्मेलन, जब कोई इजरायल की नाकेबंदी, हथियार और तेल सप्लाई रोकने का प्रस्ताव लाता है तो इस पर सहमति जताने की जगह सारे पीछे हट जाते हैं. तुर्की और सऊदी अरब का इस मामले में अब तक बेहद ही शर्मनाक रवैया रहा है.

इन देशों के बीच अब तक ईरान इजरायल को लेकर कड़ा रूख अपनाता रहा है. यहां तक कि गाजा पर हमले के लिए इजरायल को कई बार चेतावनी भी दे चुका है. मगर अब उसने भी औकात दिखा दी है. मीडिया रिपोर्टस कहते हैं कि ईरान ने हमास से कहा है कि अपनी लड़ाई खुद लड़ें, हमें इसमें न घसीटें.’’ ईरान के पूर्व विदेश मंत्री ने अपने देश के मुखिया का बयान आने से पहले यह भूमिका बनाकर मुसलमानों में खुद को पाक साफ दिखाने का प्रयास किया कि यदि वे इजरायल से टकराएंगे तो अमेरिका को ईरान के विरूद्ध एक और बड़ी कार्रवाई का मौका मिल जाएगा, जबकि अरब देश खुद को इस मामले में अलग रखे हुए हैं.

द गार्जियन की एक रिपोर्ट में कहा गया है-‘‘ईरान के पूर्व विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ अपने देश से आग्रह किया है कि वह इजराइल या अमेरिका के साथ सीधे युद्ध में न उलझे.जरीफ ने कहा, फिलिस्तीनी लोगों की रक्षा करने का सबसे अच्छा तरीका पश्चिम को यह दावा करने का कारण देने से बचना है कि वे ईरान के प्रॉक्सी के रूप में काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इजराइल ईरान को ऐसी लड़ाई में लुभाने की कोशिश कर रहा है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है,‘‘ जरीफ ने कहा कि ईरानी लोगों ने जो सही है उसका बचाव करने के विचार को स्वीकार किया, लेकिन इसका मतलब सेना जुटाना नहीं है.ईरान के सैन्य हस्तक्षेप की कीमत का जिक्र करते हुए उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, ईरान को गाजा युद्ध के मैदान में घसीटना चाहते हैं, जबकि उनके पास अल-अक्सा तूफान में ईरान की भागीदारी का कोई सबूत नहीं है.

उन्होंने कहा, 7 अक्टूबर के हमलों के लिए हमास के नाम का उपयोग करना, जिसमें लड़कों के समूह ने दक्षिणी इजराइल में लगभग 1,200 लोगों को मार डाला, जिसके परिणामस्वरूप गाजा पर इजराइल का सैन्य आक्रमण हुआ. अगर ऐसी कोई घटना होती है, तो किसी भी युद्ध में आम लोग सबसे पहले पीड़ित होते हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से सोचता हूं कि लोग इसकी कीमत चुकाते-चुकाते थक गए हैं. हमें लागत वहन करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है.”उन्होंने कहा, युद्ध में ईरान और हिजबुल्लाह का प्रवेश वही होगा जो इजराइल चाहता है, क्योंकि इजराइल भी अमेरिका को इजरायली पक्ष में संघर्ष में घसीटना चाहता है.

उन्होंने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर किसी तरह युद्ध को खींचने और अमेरिका को अंदर लाने की कोशिश करने का आरोप लगाया.उन्होंने कहा कि उनका प्रस्ताव है कि ईरान खाड़ी सहयोग परिषद – बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक गैर-आक्रामकता समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए अपनी तत्परता की घोषणा करे – क्योंकि इस तरह के समझौते से साबित होगा कि ईरान इस क्षेत्र के लिए खतरा नहीं है और खाड़ी देश भी हमारे खिलाफ किसी के साथ सहयोग न करने का वचन देंगे.

उन्होंने 57वें मजबूत इस्लामिक सहयोग संगठन द्वारा सप्ताहांत में की गई घोषणाओं को खारिज करते हुए कहा, “अब तक जो प्रकाशित हुआ है वह पारंपरिक पदों की निरंतरता है. इसका कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है.”

इस बीच द इजरायल टाइम्स ने खबर दी है किखामेनेई ने हमास प्रमुख से कहा, ईरान सीधे युद्ध में नहीं उतरेगा.’’इस रिपोर्ट में कहा गया है-ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कथित तौर पर इस महीने की शुरुआत में हमास प्रमुख इस्माइल हानियो से कहा है कि, चूंकि तेहरान को 7 अक्टूबर के विनाशकारी हमले की पूर्व सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए वह इजराइल के खिलाफ युद्ध में शामिल नहीं होगा.

बुधवार को तीन वरिष्ठ अधिकारियों का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट में, रॉयटर्स ने कहा कि खामेनेई ने हनिएह से कहा कि, हालांकि ईरान हमास को राजनीतिक समर्थन देगा, लेकिन वह लड़ाई में सीधे हस्तक्षेप नहीं करेगा.कथित तौर पर ईरानी नेता ने हनिएह से हमास में उन आवाजों को चुप कराने को भी कहा, जो ईरान और उसके प्रॉक्सी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह को सीधे पूरी ताकत से इजराइल के खिलाफ युद्ध में शामिल होने के लिए कह रहे हैं.

रॉयटर्स ने लेबनानी आतंकवादी समूह के एक अनाम कमांडर के हवाले से कहा, हम एक युद्ध के प्रति जाग उठे. हैं.संघर्ष शुरू होने के बाद से, इराक और सीरिया में अमेरिकी सेना पर हमलों की एक श्रृंखला हुई है, साथ ही हिजबुल्लाह और आईडीएफ के बीच इजरायल-लेबनान सीमा पर लगभग दैनिक गोलीबारी हुई है.लेकिन हिजबुल्लाह ने पूर्ण पैमाने पर अभियान शुरू करने से परहेज किया है. इजराइल ने भी एक अच्छी लाइन पर चलने का प्रयास किया है, हमलों और हमलों के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण गोलाबारी का जवाब दिया है, जबकि उन कार्यों से बचने की कोशिश की है जो संघर्ष को बढ़ाएंगे, जैसा कि वह चाहता है अपना ध्यान गाजा पर केंद्रित रखें.

इजरायली अखबार ने दावा किया है कि लेबनान के लगभग 100 लोग मारे गए हैं. मरने वालों में कम से कम 74 हिजबुल्लाह सदस्य, आठ फिलिस्तीनी लड़ाके, कई नागरिक और एक रॉयटर्स पत्रकार शामिल हैं.इस बीच, यमन में ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों ने इजराइल की ओर कई मिसाइलें दागी हैं जिन्हें या तो लाल सागर के ऊपर रोक दिया गया या उनका लक्ष्य चूक गया.

अखबार आगे कहता है-संघर्ष शुरू होने के बाद से, इस बात पर बहस चल रही है कि तेहरान योजनाबद्ध क्रूर घुसपैठ में कितनी गहराई से शामिल और जागरूक है. ईरानी नेताओं ने बार-बार इजराइल को गाजा में आक्रामक हमले पर क्षेत्रीय युद्ध के खतरे की चेतावनी दी है, लेकिन नरसंहार में शामिल होने से इनकार किया है.

मोसाद के पूर्व उप प्रमुख एहुद लावी ने रविवार को कहा कि उनका मानना है कि इसकी संभावना नहीं है कि ईरान को हमास के हमले के बारे में पहले से पता नहीं था. यानी अब गाजा युद्ध से बचने के लिए यह गलत बयान की जा रही है कि उसे हमले से पहले जानकारी नहीं दी गई थी.