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लोकसभा चुनाव 2024: दो चरणों में कम मतदान, क्या बीजेपी को बड़ा झटका लगेगा ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव 2024 के दो चरणों का मतदान हो गया. दोनों की चरणांे में मतदाओं मेें खास उत्साह नहीं दिखा. यहां तक कि वीआईपी सीट पर वोटरों के उत्साह में कमी देखी गई. बिहार जैसे प्रदेश में चुनाव को लेकर उत्साह का अभाव था.

लोकसभा चुनाव 2024 के दो चरणों में 190 सीटों पर मतदान हो चुका है. पिछले चुनाव में इनमें से अधिकांश सीटों पर बीजेपी को बुहत मुश्किल से बहुमत मिली थी. इस दफा कम वोटिंग से उसकी स्थिति बेहद डांवा डोल मानी जा रही है. विरोधी उम्मीदवार के कुछ वोट ही भारतीय जनता पार्टी को झटका देने के लिए काफी होंगे.

आम तौर पर यह समझ है कि यदि वोटरों में उत्साह हो तो उसे सत्ता परिवर्तन का संकेत माना जाता है. मगर अब तक के चुनाव परिणामों से स्पष्ट हो चुका है कि यह क्यास मात्र है. इस तरह के मतदान पैटर्न से मात्र 33 प्रतिशत ही सत्ता में उलट फेर देखने को मिला. यानी सौ में 33 प्रतिशत ही सरकार रिपीट हुई.

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के मदतान को लेकर ‘द क्विंट’ में अमिताभ तिवारी ने इसकी गहराई से समीक्षा की है. उसमें भी यही संकेत दिए गए हैं कि बीजेपी को झटका लगाने वाला है.अमिताभ तिवारी की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है-लोकसभा चुनाव के पहले चरण में कम मतदान हुआ है. इससे राजनीतिक हलकों में हलचल है. कम मतदान क्या दर्शाता है? ऐसे में किसका पलड़ा भारी है? विभिन्न सिद्धांत चारों ओर तैर रहे हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष ने दावा किया है कि कम मतदान उनके लिए फायदेमंद होगा.

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चरण 1 की 102 सीटों पर 65.5 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जबकि 2019 में इन सीटों पर 69.9 प्रतिशत मतदान हुआ था. तब और अब में 4.4 प्रशित की गिरावट दर्ज की गई है.ईसीआई, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को वास्तव में इस बारे में सोचने की जरूरत होगी कि मतदान प्रतिशत कम क्यों था और शेष चरणों के लिए अपनी रणनीतियों को तदनुसार समायोजित करना होगा.

यह तब है जब कैडर-आधारित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वामपंथी दलों के पास सैद्धांतिक रूप से वोट निकालो रणनीति को लागू करने की बेहतर क्षमता है. वे प्रतिबद्ध मतदाताओं को अपने घरों से बाहर निकलने और मतदान करने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हैं.

मतदान क्यों मायने रखता है?

अधिक या कम मतदान का चुनावी नतीजों पर क्या प्रभाव पड़ता है? अधिक मतदान को परिवर्तन का संकेत माना जाता है जबकि कम मतदान को निरंतरता का प्रतीक माना जाता है. हालांकि, जैसा कि डेटा दिखाता है, कोई स्पष्ट सहसंबंध या प्रवृत्ति नहीं है.

1951-52 से 2019 तक 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं. 1957 से 2019 तक (पहले चुनाव को छोड़कर) 16 लोकसभा चुनावों में मतदान छह गुना गिरा और 10 गुना बढ़ा. इनमें से मौजूदा सरकारें 8 बार दोहराई गईं और इतनी ही बार बदली गईं.

इसलिए, सरकार केवल 33 प्रशित बार ही दोहराई गई. मतदाता मतदान न केवल भावनाओं पर बल्कि निर्वाचन क्षेत्र, उम्मीदवारों, जाति की गतिशीलता आदि पर भी निर्भर करता है. स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिए सीट-वार मतदान या मतदान प्रतिशत का विश्लेषण करने की भी आवश्यकता है.

2014 के मुकाबले 2019 में 79 सीटों पर मतदान में बढ़ोतरी देखी गई. इनमें से 43 सीटों पर 2014 की विजेता पार्टी 2019 में चुनाव हार गई. शेष 36 सीटों पर जीतने वाली पार्टी सीट बरकरार रखने में सफल रही. 23 सीटों पर मतदान में गिरावट देखी गई. 18 सीटों पर 2014 की विजेता पार्टी चुनाव हार गई और बाकी 5 सीटों पर जीतने वाली पार्टी सीट बरकरार रखने में सफल रही.

कम मतदान चिंता का कारण क्यों हो ?

कम मतदान के पीछे सबसे स्पष्ट कारणों में से एक पूरे देश में गर्मी की लहरें हैं. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में भी उच्च तापमान दर्ज किया गया है. भाजपा के मतदाताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अति आत्मविश्वास भी हो सकता हैए क्योंकि वे चुनाव को एक समझौते के रूप में देख रहे हैं.

आएगा तो मोदी ही कथन से विपक्षी मतदाताओं में उत्साह कम हो सकता है. इसमें ज्यादातर राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूत,जाट जैसे जाति समूहों का असंतोष भी शामिल है.

जो सीटें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास थीं, उनमें मतदान प्रतिशत में 5.9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि योगेन्द्र यादव के अनुसार अन्य के पास केवल 3.2 प्रतिशत सीटें थीं. हालांकि, यह कुछ भी इंगित नहीं करता है.

इन 102 सीटों में से 2019 में बीजेपी ने 40 सीटें जीतीं. इन सीटों पर औसत मार्जिन 21 प्रतिशत था. इसलिए 5.9 प्रतिशत की गिरावट, भले ही यह मान लिया जाए कि सभी भाजपा के मतदाता थे, इन सीटों पर विपक्ष के पक्ष में पैमाना नहीं झुकता है.

बीजेपी समर्थकों के परहेज करने से विपक्ष को मदद नहीं मिलेगी. उन्हें कांग्रेस और सहयोगियों की ओर रुख करना होगा और ऐसा होता नहीं दिख रहा है.

राज्यवार प्रदर्शन

  • गुजरात इसका प्रमुख उदाहरण है, जहां 2017 और 2022 दोनों में मतदान प्रतिशत में गिरावट आई . भाजपा ने इसे बरकरार रखा.
  • ऐसे तीन राज्य हैं जहां 2024 में मतदान प्रतिशत 2019 की तुलना में अधिक है. वे हैं-
  • असम (ऐसा लगता है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम सीएए, के कारण माहौल तनावपूर्ण, धु्रवीवीकृत हो गया है)
  • छत्तीसगढ़ (बस्तर में नक्सली घटना के बावजूद), और
  • मेघालय.
  • सबसे बड़ी गिरावट दर्ज करने वाले तीन राज्य हैं
  • नागालैंड (जिसके कुछ जिलों में बहिष्कार देखा गया)
  • मणिपुर (पिछले साल की हिंसा के बाद अपेक्षित तर्ज पर) और
  • अरुणाचल प्रदेश (जहां आमतौर पर अधिक मतदान होता है).
  • बिहार में मतदान प्रतिशत लगभग 5 प्रशित कम है. नीतीश कुमार से मतदाताओं के एक वर्ग में निराशा हो सकती है. पश्चिमी यूपी में भी करीब 6 प्रशित की गिरावट दर्ज की गई है. किसानों के विरोध प्रदर्शन का केंद्र रही जाट बेल्ट में उनकी सामुदायिक पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को भी इंडिया ब्लॉक से एनडीए की ओर जाते देखा गया है.

ऐसा लगता है कि कुछ समर्थक गठबंधन को स्वीकार नहीं कर रहे और मतदान से दूर रहे. तमिलनाडु में मतदान प्रतिशत लगभग 3 प्रतिशत कम हुआ. भाजपा ने आरोप लगाया है कि अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने भगवा पार्टी को राज्य से बाहर रखने के लिए हाथ मिला लिया है.

अन्नाद्रमुक का एक मतदाता काफी हद तक द्रमुक का विरोधी है. अगर ऐसा आरोप सच है, तो पारंपरिक मतदाताओं के एक वर्ग के चुनाव से दूर रहने से कुछ भ्रम पैदा हो सकता है.

वीआईपी सीटों पर क्या रहा ?

कम मतदान का मतलब यह हो सकता है कि सीटों पर मार्जिन में गिरावट देखी जा सकती है. दो सीटों छिंदवाड़ा (37000) और सहारनपुर (22000) पर 2019 में बहुत करीबी मुकाबला देखने को मिला, लेकिन इसमें गिरावट दर्ज की गई है, जिससे अन्य पार्टियों की ओर जाने का खतरा है.

नितिन गडकरी की सीट में भी गिरावट दर्ज की गई है जिससे मार्जिन पर असर पड़ सकता है. यह अजीब है कि स्टार प्रचारकों के बावजूद हाई-प्रोफाइल सीटों में गिरावट दर्ज की गई है.बीकानेर और अलवर में दो-दो कैबिनेट मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 के चुनाव में इन सीटों पर 2 लाख से ज्यादा का अंतर दर्ज किया गया. कम मतदान का मतलब यह हो सकता है कि जाट,राजपूत समुदाय का रुझान खराब रहेगा. इसलिए, इस बार करीबी मुकाबला हो सकता है. शहरी उदासीनता के कारण दक्षिण चेन्नई में कम मतदान हुआ.

संक्षेप में कहें तो पार्टियां, उम्मीदवार और साथ ही टिप्पणीकार भी अपने-अपने तरीके से मतदान में गिरावट को पढ़ रहे हैं. हालाँकि, 4 जून को आने वाले नतीजे ही साबित करेंगे कि कौन सी थ्योरी सही है!

दूसरे चरण में त्रिपुरा में ज्यादा, उत्तर प्रदेश में सबसे कम मतदान

एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है, लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत कश्मीर से केरल तक देश के 13 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की 88 लोकसभा सीटों पर शुक्रवार को मतदान शांतिपूर्वक संपन्न हो गया. भारतीन निर्वाचन आयोग ने बताया कि शाम सात बजे तक 60.96 फीसदी मतदान की रिपोर्ट मिली है.

चुनाव आयोग के वोटर टर्नआउट ऐप पर खबर लिखे जाने तक अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, त्रिपुरा में सबसे ज्यादा 79.66 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में सबसे कम 54.85 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया.मणिपुर में 78.78 प्रतिशत, असम में 77.35, छत्तीसगढ़ में 75.16, पश्चिम बंगाल में 73.78, जम्मू एवं कश्मीर में 72.32 और केरल में 70.21 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट किया है.

वहीं, कर्नाटक में 68.47 प्रतिशत, राजस्थान में 64.07, महाराष्ट्र में 59.63, मध्य प्रदेश में 58.26 और बिहार में 57.81 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले. हालांकि, मतदान के अंतिम आंकड़े फॉर्म 17 ए की जांच के बाद ही जारी किए जाएंगे.आयोग ने बताया कि दूसरे चरण के साथ ही 14 राज्यों,केंद्रशासित प्रदेशों – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, केरल, लक्षद्वीप, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, पुडुचेरी, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा और उत्तराखंड – में सभी सीटों के लिए मतदान संपन्न हो गया है. दोनों चरण मिलाकर लोकसभा की 189 सीटों पर अब तक मतदान हो चुका है.

इसी के साथ वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह शेखावत, राजीव चंद्रशेखर, कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों शशि थरूर, महेश शर्मा, फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी, रामायण सीरियल में भगवान राम का रोल करने वाले अरुण गोविल, छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल, भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या, कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के भाई डी.के. सुरेश, कर्नाटक के पूर्व सीएम एच.डी. कुमारस्वामी और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सहित 1,202 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई.

मजे की बात है कि पहले चरण में मतदान कम होने पर मोदी सहित तमाम वीआईपी ने लोगों से भरपूर वोट करने की अपील की थी, मगर हुआ इसके उलटा. बीजेपी के गढ़ में जहां वोटर उदासीन दिखे और जहां केंद्र के खिलाफ आक्रोश है, मणिपुर और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेश में भरपूर वोट पड़े.