लोकसभा चुनाव 2024 : क्या बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक पसमांदा को 4 प्रतिशत आरक्षण होगा ?
मुस्लिम नाउ खास
हिंदू-मुसलमान को बांटने वाले तमाम मुद्दांे को हवा देने के बावजूद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त मिलने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. इसमें सबसे अहम सवाल तो यही है कि भाजपा ऐसा क्या करने जा रही है, जिससे तीसरी बार भी वह केंद्र में सत्ता मंे बनी रहेगी ?
इस सवाल के जवाब में आम तौर से भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने, जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिकता कानून जैसे विवादास्पद मुददे सबसे आगे रखे जाते हैं. मगर इसमें पहले और तीसरे मुददे इतने विवादास्पद हैं कि संविधान में बड़े बदलाव के साथ देश में बड़े स्तर पर हंगामा खड़ा होने का खतरा है.
भाजपा अब तक तीन तलाक, अनुच्छे 370, राम मंदिर को लेकर ’सेफ गेम’ खेलती रही है, जब कि हिंदू राष्ट्र और सामान्य नागरिता कानून के लिए संविधान में बड़े बदलाव की जरूरत पड़ेगी. ऐसा करने से देश के नागरिकों का एक बड़ा हिस्सा भड़क सकता है. रही बात जनसंख्या निरंतर की तो विभिन्न शक्लों में भाजपा शासित प्रदेशों में इसको लेकर कानून लाया जा चुका, जिसका उसे खास लाभ नहीं मिला है.
ऐसा में सवाल उठता है कि 2024 के आम चुनाव को लेकर भाजपा के पास अब क्या विकल्प रह जाता है ? हालांकि हाल के घटना क्रम, प्रधानमंत्री के बयान, उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव, भाजपा की चुनिंदा बैठकों और सरकार व संघ समर्थित कुछ बेसाइट में प्रकाशित होने वाले लेखों से यह समझा जा सकता है कि आगामी चुनाव में ‘पसमांदा’ बीजेपी का मोहरा बनने वाले हैं.
मुसलमानों के कुछ अनाम चेहरों द्वारा पसमंदा के नाम पर इस समूदाय में फूट डालने वाले बयान और कुछ खास मीडिया प्लेट फार्म पर ‘राष्ट्रवादी’ सोच के साथ प्रकाशित होने वाले लेखों से यह आसामनी से समझा जा सकता है कि ये लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं ?
पहले भाजपा को यह मुगालता था कि शिया और सुन्नी जैसे मसले उठाकर इस कौम में तफरका पैदा किया जा सकता है. मगर तमाम कोशिशें तथा प्रदेश तथा केंद्र में शिया कम्यूनिटी के भाजपा नेताओं को तरजीह देने के बावजूद जब बात नहीं बनी तो अब उन्हें किनारे कर दिया गया है. इसके साथ ही मुसलमानों में अगड़े और पिछड़े का भेद पैदा करने के लिए पसमांदा का मुददा उठाया जा रहा है.
इसमें दो राय नहीं कि कुछ मामलों में मुसलमानों के एक वर्ग ने अपने से नीच के लोगों को उपर आने का मौका नहीं दिया. इसके बावजूद ‘एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद -ओ-अयाज न कोई बंदा रहा और कोई बंदानवाज. फिरकों को लेकर इनके बीच कुछ मतभेद जरूर हैं, पर यह मस्जिद, नमाज, कब्रिस्तान तक ही सीमित हैं. मगर ‘एजेंटों’ के लेखों में जिस तरह शेख, पठान, सैयद, सच्चर कमेटी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और सर सैयद की बुरी तस्वीर पेश की जा रही है, उससे मंशा का तो पता चलता ही है, यह भी आसानी से समझा सकता है कि इस दुष्प्रचार के पीछे कौन लोग हैं और मकसद क्या है ? हद तो यह है कि ये लोग खुलकर भाजपा की वकालत और कांग्रेस की मुखालफत कर रहे हैं.
पिछले नौ वर्षों मंे केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा की नीतियों से भारत का आम इंसान बुरी तरह त्रस्त है. फौज में नौकरी को मजाक बना दिया गया है. अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की अब कोई सुनने वाला नहीं. देश की भुखमरी दूर करने की बजाए चार-छह किलो अनाज देकर ऐसे लोगों को भिखारी बनाया जा रहा है. देश में महंगाई का बुरा हाल है. रेल के टिकट इतने महंगे कर दिए गए हैं कि आम आदमी का सफर करना भी असंभव सा हो गया है. देश में कहीं नौकरी नहीं. फिर भी सरकार छोटे से छोटे काम को उत्सव बनाकर पेश कर रही, जिसमें सरकार को करोड़ों फुक रहे हैं. जी 20 की अध्यक्षता के नाम पर विभिन्न कार्यक्रमांे में करोड़ों रूपये फूंके जा रहे हैं. इससे देश को कितना लाभ पहुंचा, अब सवाल पूछने का समय आ गया है.
विपक्ष नए संससद भवन के निर्माण को लेकर भाजपा को घर रही है. देश के आर्थिक संकट में इस फजूल खर्ची की जरूरत नहीं थी ? यह पूछा जा रहा है. इस फजूल खर्जी के दौर में प्रधानमंत्री को लेकर उड़ने के लिए बहुमूल्य हवाई जहाज खरीदा गया है.
गर्ज यह कि मौजूदा माहौल सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में नहीं है. हिमाचल के बाद कर्नाटक के भाजपा के हाथ से निकल जाने के बाद इसकी छटपटाहद देखी जा सकती है. अब तक भाजपा धार्मिक मुददे उठाकर चुनाव में बाजी मारती रही है. मगर हाल के कनार्टक चुनाव में इसकी यह चाल इसी पर भारी पड़ी. सारे मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के पक्ष में इकट्ठे हो गए.
ऐसे में ले देकर अब भाजपा को पसमांदा से ही उम्मीदें है. भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा ने हाल में 90 के करीब ऐसी लोकसभा सीटों का लेखा-जोखा जारी किया था जिसमें मुस्लिम मतदता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. भाजपा और आरएसएस का मुस्लिम मोर्चा, वहां के मुसलमानों को प्रभावित करने के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है. भाजपा को मुगालता है कि देश की 22 करोड़ आबादी वाले मुसलमानों में 80 प्रतिशत पिछड़े तबके से आते हैं. इनमें फूट डालकर यदि चुनाव में उतरा जाए तो तीसरी बार उसका सत्ता मंे आना तय है. उत्तर प्रदेश के रामपुर उप चुनाव के परिणाम को भाजपा इसी नजरिए से पेश करती रही है. जबकि सबको पता है कि इस सीट से भाजपा प्रत्याशी को कैसे जीत मिली. आजम खां कहते हैं मुस्लिम मतदाओं को मतदान केंद्र तक फटकने नहीं दिया गया.
कयास लगाया जा रहा है कि इसी भ्रम को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा आम चुनाव से पहले पसमांदा को चार प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान कर सकती है. कर्नाटक चुनाव में मुसलमानों को मिला हुआ चार प्रतिशत आरक्षण भाजपा ने छीन लिया था. गृहमंत्री अमितशाह ने चुनावी सभा में सीना ठोक कर इसका ऐलान किया था. मगर आम चुनाव से पहले देशभर में पिछड़े मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण देकर भाजपा न केवल अपनी गलती सुधार सकती है, मुसलमानों के एक तबको अपने साथ मिलाने की भी कोशिश कर सकती है.
जाहिर है, भाजपा के इस गेम प्लान का जवाब देने के लिए विपक्षी दलों ने भी तैयारी कर रखी होगी. बिहार में जातिगत जनगणा को उसका जवाब माना जा रहा है. इससे बीजेपी को बड़ा डैज हो सकता है. इसकी वह मुखालफत करती रही है. एक साजिश के तहत यह मामला अब कोर्ट में लंबित है.