महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव 2024: नफरत की सियासत को जनता ने दिखाया आईना
Table of Contents
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि देश की जनता नफरत की राजनीति को स्वीकार नहीं करती. दोनों राज्यों में मतदाताओं ने यह संदेश दिया है कि विकास और सुशासन ही सत्ता तक पहुंचने का असली रास्ता है, न कि समाज में विभाजन पैदा करने वाली राजनीति.
महाराष्ट्र: शिंदे-पवार गठबंधन को जनता का बंपर समर्थन
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व वाले गठबंधन को बंपर बहुमत मिला. इसका कारण यह है कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार गुट की कमजोर स्थिति के कारण मतदाता उनके पक्ष में जाने का मन नहीं बना सके. कांग्रेस ने भी चुनाव में जोर नहीं लगाया, जिससे उसकी स्थिति और कमजोर हो गई.
बीजेपी को महाराष्ट्र में इस बार बेहतर प्रदर्शन करने का मौका जरूर मिला, लेकिन यह एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के कंधे के बिना संभव नहीं था. अगर यह गठबंधन नहीं होता, तो बीजेपी का प्रदर्शन औसत ही रहता.
झारखंड: हेमंत सोरेन पर जनता का भरोसा बरकरार
झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार की वापसी हुई. जनता ने उनकी नीतियों और कामकाज पर भरोसा जताया. बीजेपी और उसके सहयोगियों ने सोरेन को सत्ता से दूर रखने के लिए हरसंभव कोशिश की. झूठे आरोपों और सांप्रदायिक बयानों के जरिए एक बड़ी दुष्प्रचार मुहिम चलाई गई,बंटोगे तो गकटोगे, मुस्लिम आरक्षण, वक्फ संशोधन बिल, वोट जिहाद, एएमयू आरक्षण, जामिया में धर्म परिवर्तन जैसे बेसिर पैर के मुददे उठाए गए, लेकिन जनता ने इसे सिरे से खारिज कर दिया..
चुनाव प्रचार के दौरान, समाज में नफरत फैलाने वाले बयान, सांप्रदायिक रैलियां और यूट्यूब चैनलों के जरिए झूठ फैलाने की कोशिशें हुईं. बावजूद इसके, झारखंड के मतदाताओं ने समझदारी से काम लिया और हेमंत सोरेन को एक बार फिर सत्ता की कुर्सी सौंप दी.
नफरत की राजनीति क्यों हुई फेल?
- इन चुनावों में सांप्रदायिकता को हथियार बनाकर वोट बटोरने की तमाम कोशिशें की गईं..
- झारखंड में अल्पसंख्यक समुदाय और आदिवासियों को डराने की साजिशें हुईं.
वक्फ संशोधन बिल जैसे मुद्दों को चुनाव से ठीक पहले उछाला गया.
महाराष्ट्र में सांप्रदायिक बयानबाजी कर मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की कोशिशें हुईं.
लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद, जनता ने नफरत की राजनीति को खारिज कर विकास और सुशासन को प्राथमिकता दी.
हरियाणा जैसे उदाहरण और झूठी रणनीतियों का सच
झारखंड और महाराष्ट्र के नतीजों को लेकर कुछ लोग इसे हरियाणा की तरह एक खास संगठन की रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि यह संगठन महाराष्ट्र और झारखंड में नाकाम साबित हुआ.इस संगठन ने झारखंड और ओडिशा में आदिवासियों और ईसाई समुदाय को लेकर लंबे समय से काम किया है, लेकिन चुनावी सफलता के मामले में यह अब तक केवल एक “आई वॉश” ही साबित हुआ है.
हरियाणा में भी कांग्रेस की आंतरिक कलह के कारण सत्ता उनके हाथ से फिसल गई. यदि कांग्रेस एकजुट रहती, तो परिणाम कुछ और हो सकते थे.
नफरत की राजनीति का अंत जरूरी
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम देश के लिए एक सबक हैं. जनता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विकास और सुशासन ही वोट देने का आधार होगा. झूठ, नफरत और विभाजन की राजनीति अब सफल नहीं हो सकती.
इसलिए, जो भी राजनीतिक दल सत्ता पाना चाहते हैं, उन्हें समझना होगा कि समाज को जोड़ने और विकास पर ध्यान देने से ही राजनीति सफल होगी. नफरत की खेती से न तो सत्ता मिल सकती है और न ही जनता का दिल.