मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप: “विचाराधीन प्रस्ताव” के बीच फंसे 2000 अल्पसंख्यक शोधार्थी, आर्थिक संकट गहराया
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
— केंद्र सरकार ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF) के तहत लंबित फेलोशिप्स का वितरण अभी “सक्रिय विचाराधीन” है। हालांकि यह कथन किसी नीतिगत प्रक्रिया का संकेत हो सकता है, लेकिन इससे देशभर में सैकड़ों अल्पसंख्यक शोधार्थियों के बीच भ्रम, बेचैनी और आक्रोश गहरा हो गया है। यह वही छात्र हैं जिनकी उच्च शिक्षा इसी फेलोशिप पर निर्भर है — और जिनकी रिसर्च अब इस अनिश्चितता के दौर में दम तोड़ रही है।
सरकार का जवाब: “विचाराधीन प्रस्ताव” लेकिन बजट आवंटन जारी!
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने The Times of India के एक सवाल के जवाब में कहा:
“वर्तमान में, इस योजना के तहत 2021-22 के बाद की प्रतिबद्ध देनदारियों की स्वीकृति का प्रस्ताव सरकार के सक्रिय विचाराधीन है।”
यह बयान चौंकाने वाला इसलिए है क्योंकि दिसंबर 2022 में इस योजना को औपचारिक रूप से बंद कर देने के बावजूद, 2025-26 के केंद्रीय बजट में इसके लिए ₹42.84 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।
इतना ही नहीं, योजना को बंद करते समय सरकार ने संसद में यह वादा किया था कि मौजूदा लाभार्थियों को फेलोशिप तब तक मिलती रहेगी, जब तक उनका अधिकतम कार्यकाल पूरा न हो जाए। यह बात संसद में खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी दोहराई थी।
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फेलोशिप की देरी: एक चौंकाने वाला पैटर्न
फेलोशिप का वितरण पहले UGC द्वारा किया जाता था, लेकिन अक्टूबर 2022 में इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (NMDFC) को सौंप दी गई। तभी से छात्रों के अनुसार वितरण में लंबी और असंगत देरी शुरू हो गई।
नीचे दिया गया पैटर्न खुद बयां करता है कि कैसे नियमित वितरण अब एक दुर्लभ घटना बन चुका है:
अवधि | देरी (महीनों में) |
---|---|
फरवरी – अगस्त 2022 | 7-8 माह |
सितम्बर 2022 – जनवरी 2023 | 5 माह |
जनवरी – अप्रैल 2023 | 4 माह |
मई – अगस्त 2023 | 4 माह |
अक्टूबर 2023 – फरवरी 2024 | 5 माह |
दिसम्बर 2024 – मई 2025 | 6 माह (जारी) |
छात्र बताते हैं कि कई बार यह देरी इस हद तक पहुँच गई कि उन्हें बुनियादी ज़रूरतें जैसे मकान किराया, यात्रा खर्च या दवाइयों के लिए भी उधार लेना पड़ा।
“मैं जनाज़े में भी शामिल नहीं हो सका” — भावुक शोधार्थी की आपबीती
दिल्ली में पढ़ाई कर रहे एक कश्मीरी मुस्लिम पीएचडी शोधार्थी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:
“आज मैंने अपने प्रिय चचेरे भाई को खो दिया, लेकिन मैं उसके जनाज़े में शामिल नहीं हो सका क्योंकि उड़ान का खर्च उठाना मेरे लिए संभव नहीं था।”
उन्होंने बताया कि पिछले 5-6 महीने से उन्हें फेलोशिप नहीं मिली है और बहुत से छात्र इस समय गहरे वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं।
“अब दूसरी ईद आ रही है, लेकिन हममें से कई बिल्कुल असहाय हैं। रिसर्च छोड़, अब हम मंत्रालय को कॉल करने और ईमेल भेजने के अलावा कुछ और नहीं कर पा रहे हैं।”
वादा था “मासिक वितरण” का, हकीकत है महीनों की चुप्पी
2023 में मंत्रालय ने लोकसभा में कहा था कि MANF के लाभार्थियों को “मासिक आधार पर फंड वितरित किया जाता है”। मगर ज़मीनी हकीकत इसके उलट है।
मई 2025 तक, सैकड़ों छात्रों को जनवरी से फेलोशिप नहीं मिली है। कुछ छात्र सितंबर या अक्टूबर 2024 से ही भुगतान का इंतज़ार कर रहे हैं।
UGC ने HRA बढ़ाया, MANF लाभार्थियों को क्यों नहीं मिला लाभ?
जनवरी 2024 में UGC ने अपनी JRF और SRF योजनाओं के अंतर्गत हाउस रेंट अलाउंस (HRA) की दरों में संशोधन किया। यह बढ़ी हुई दरें MANF लाभार्थियों को नहीं दी गईं, जबकि मूल दिशा-निर्देशों में स्पष्ट था कि MANF के छात्र UGC के बराबर राशि के हकदार हैं।
छात्रों का कहना है कि यह कोई साधारण तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक गहरी संस्थागत उपेक्षा है। एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने कहा:
“हम केवल छात्र नहीं हैं, हम शोधार्थी हैं जो देश के अकादमिक और वैज्ञानिक विकास में योगदान दे रहे हैं। लेकिन इस लंबे वित्तीय अस्थिरता ने हमारा मनोबल तोड़ दिया है।”
“हमें बताया होता तो हम शायद घर न छोड़ते”
एक अन्य छात्र ने बताया कि उनके एक साथी शोधार्थी को हाल ही में अपने परिजन के अस्पताल बिल के लिए पैसों की सख्त ज़रूरत थी, लेकिन किसी सरकारी एजेंसी से कोई सहायता नहीं मिली।
“अगर हमें पहले से बताया गया होता कि ये हालात होंगे, तो शायद हम केरल से दिल्ली या कश्मीर से अलीगढ़ नहीं आते।”
फेलोशिप का महत्व और इसके बंद होने की कीमत
2009 में शुरू की गई मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप का उद्देश्य छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी) से आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को MPhil और PhD के लिए सहयोग देना था।
इस योजना के तहत:
- NET उत्तीर्ण होना अनिवार्य था,
- MPhil/PhD में दाखिला ज़रूरी था,
- पारिवारिक वार्षिक आय ₹6 लाख से कम होनी चाहिए।
करीब 1,500 से 2,000 छात्र हर साल इससे लाभान्वित होते थे। लेकिन 2022 में इसे इस आधार पर बंद कर दिया गया कि यह UGC-JRF जैसी योजनाओं के साथ “ओवरलैप” करती है।
छात्रों की मांगें
देशभर के MANF लाभार्थी अब एकजुट होकर सरकार से तीन प्रमुख मांगें कर रहे हैं:
- सभी लंबित फेलोशिप राशि अविलंब जारी की जाए
- जनवरी 2024 से बढ़े हुए UGC-HRA का लाभ MANF छात्रों को भी मिले
- फेलोशिप का वितरण मासिक आधार पर नियमित रूप से हो
निष्कर्ष: यह केवल आर्थिक संकट नहीं, अकादमिक असमानता का सवाल है
मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप पर यह संकट केवल एक योजना के अस्थायी ठहराव का मुद्दा नहीं है। यह उस गहरे असंतुलन का संकेत है, जहां सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को शैक्षणिक सशक्तिकरण के वादे अधूरे रह जाते हैं।
सरकार भले ही इसे “विचाराधीन” बताए, लेकिन इन छात्रों के लिए यह एक जीवन-निर्भर संकट है। और जब तक यह संकट हल नहीं होता, तब तक “सबका साथ, सबका विकास” की परिभाषा अधूरी मानी जाएगी।
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