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#MaulanaWahiduddinKhan नहीं रहे मौलाना वहीदुद्दीन खान

कोरोना के भयंकर रूप आने के साथ हरदिल अजीज लोगों के खोने का सिलसिला भी बना हुआ है. कई नामवर हस्तियों को कोरोना लीलता जा रहा है. अब इसने देश-दुनिया के नामचीन इस्लामिक विद्वान और ‘साबरी बदर्स ‘ का हिस्सा रहे मशहूर कव्वाल फरीद साबरी को भी निगल लिया. हालांकि फरीद साबरी के बारे में कहा जा रहा है कि उनके फेफड़ों में संक्रमण था, जबकि यह भी हकीकत ही है कि कोेरोना होने पर जरासीम फेफड़ों को ही खोखला कर देते हैं.

बहरहाल, मौलाना वली रहमानी के बाद अब एक और इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान इस दुनिया से कूच कर गए. वह कोरोना से पीड़ित थे और दिल्ली के एक प्राइवेट होस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था.

देर रात उनके निधन की खबर से जैसे लोग सदमे में आ गए. सोशल मीडिया पर उनके निधन पर पाकिस्तान सहित दूसरे देशों से भी शोक संदेश आ रहे हैं. कई बड़ी हस्तियों ने भी उनके निधन पर शोक जताया है.

मौलाना वहीदुद्दीन खान को धार्मिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है. जब तक जीवित रहे अतिवाद का विरोध और भाईचारगी का समर्थन तथा इस्लाम व दूसरे धर्मों के प्रति लोगों में मौजूद भ्रांतियों को अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से दूर करने का प्रयास करते रहे. उन्होंने हमेशा अतिवाद को धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया.
वह पांच भाषाओं उर्दू, हिंदी, अरबी, फारसी और अंग्रेजी के ज्ञाता थे. अपनी बातें लोगों तक पहुंचाने के लिए किताबें, लेख लिखने के अलावा टीवी कार्यक्रमों में भी प्रवचन दिया करते थे. मौलाना वहीदुद्दीन खान को आमतौर पर बुद्धिजीवियों के बीच शांतिवादी माना जाता था. वह मौजूदा दौर के प्रमुख विद्वानों में एक थे.
उन्होंने आधुनिक शैली में 200 से अधिक इस्लामी किताबें लिखीं, जो उनकी शैक्षणिक क्षमता का बड़ा प्रमाण हैं.
मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म 1 जनवरी, 1925 को उत्तर प्रदेश के बड़हरिया आजमगढ़ में हुआ था. मदरसा-उल-इस्लाह-ए-आजमगढ़ से स्नातक थे. वह इस्लामिक सेंटर नई दिल्ली के अध्यक्ष और मासिक अल-रिसालह के संपादक थे.
मौलाना वहीदुद्दीन खान का ही मिशन था मुसलमानों और अन्य धर्मों के लोगों के बीच सद्भाव पैदा करना. इस्लाम के बारे में गैर-मुस्लिमों के बीच गलत धारणाओं को दूर करते की कोशिश करते थे. मुसलमानों को धैर्य रखने और प्रतिशोध से बचने की नसीहत देते थे. मौलाना वहीदुद्दीन खान पद्म सम्मान से सम्मानित थे. पद्म विभूषण , जो भारत सरकार द्वारा कला, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान आदि में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वालों को दिया जाता है.

‘अल-रिसाला‘ नामक मासिक पत्रिका मौलाना वहीदुद्दीन खान के नाम से जुड़ी हुई है. यह अपने विशेष लेखों और विचारों के कारण बहुत लोकप्रिय रही है. ‘अल-रिसाला‘ उर्दू और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होती रही. इसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य इस्लाम के संदेशों को आम आदमी तक पहुँचाना था. आधुनिक समय में, अल-रिसाला आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था जो नकारात्मक कार्यों से बचकर मुसलमानों को सकारात्मक रास्ते पर चलने की नसीहत देता था.

मौलाना ने एक बार इस बारे में लिखा था कि … 1976 में अल-रिसलाह के लांचिंग के बाद से मैं जो काम कर रहा हूं, उसका एक खास पहलू यह है कि मैं मुसलमानों को नकारात्मक सोच से ऊपर उठने और सकारात्मक सोच को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा हूं.

अल-रिसाला के अंग्रेजी संस्करण को मौलाना की बेटी डॉ फरीदा खानम के प्रयासों के साथ 1984 में जारी किया गया था. मौलाना की उर्दू किताबों के जो अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हुए हैं, वे अकेले डॉ फरीदा खानम के प्रयासों का परिणाम हैं. मौलाना ने अपनी डायरी (1990-1989) के पृष्ठ 85 पर यह बात स्वीकारी भी है.

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अध्यात्म पर ज्ञानवर्धक ज्ञानः पीएम मोदी 

पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को मौलाना वहीदुद्दीन खान के निधन पर शोक व्यक्त किया. कहा कि उन्हें धर्मशास्त्र और अध्यात्म के मामलों पर उनके ज्ञानवर्धक ज्ञान के लिए याद किया जाएगा.एक ट्वीट में, पीएम मोदी ने कहाः ‘‘मौलाना वहीदुद्दीन खान के निधन से दुखी. उन्हें धर्मशास्त्र और आध्यात्मिकता के बारे में उनके ज्ञानपूर्ण ज्ञान के लिए याद किया जाएगा. वह सामुदायिक सेवा और सामाजिक विकास के बारे में भी भावुक थे. उनके परिवार और परिवार के प्रति संवेदना.‘‘  इस्लामिक विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान का बुधवार को निधन हो गया. वह 96 वर्ष के थे.

सम्मान

  • डेमोर्गेस इंटरनेशनल अवार्ड
  • पद्म विभूषण राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
  • सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार, भारत सरकार
  • दीवाली बिन मोहनलाल मेहता पुरस्कार
  • उर्दू अकादमी पुरस्कार
  • राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, भारत सरकार
  • दिल्ली पुरस्कार, दिल्ली सरकार
  • अरुणा आसिफ अली, भाई चारगी सम्मान
  • राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, भारत सरकार
  • सिरा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
  • मई 1989 में, पाकिस्तान सरकार ने मौलाना की किताब, पैगंबर ऑफ द रिवोल्यूशन (अंग्रेजी) के लिए पहले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया