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मिलिए कश्मीर की उन महिलाओं से जिन्होंने मुश्किलें सह कर भी जिंदा रखा है ‘येंडर‘ परंपरा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

मसूदा की मां ने पश्मीना को ‘येंडर‘ (पहिया) पर कताई करके उसकी शादी का खर्च वहन किया था.लेकिन अब पश्मीना कताई से गुजारा करना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि मशीन से बने शॉल के आने से कश्मीर घाटी के पश्मीना कारीगरों का जीना मुश्किल हो गया है.

उनके मुताबिक, “इस मशीन को बंद कर देना चाहिए क्योंकि हमें कड़ी टक्कर मिल रही है. मेरी मां ने यंडर पर पश्मीना कात कर मेरी शादी कराई थी. कताई के कारण उसकी उंगली खराब हो गई और मैं भी बचपन से ही पश्मीना की कताई करती आ रही रही हूं. हालाँकि, अब इससे गुजारा मुश्किल है. ”

पुराने शहर के काठी दरवाजा इलाके में स्थित खदीजा और फहमीदा की पश्मीना कताई इकाई है जहां ‘येंडर‘ पर कताई करती हैं.खदीजा ने कहा कि उनके परिवारों का भरण-पोषण करना मुश्किल है, क्योंकि मशीन से बने शॉल ने खेल बिगाड़ दिया है.उन्होंने बताया, “अब हमारे परिवारों का भरण-पोषण करना मुश्किल है. इसका मुख्य कारण मशीन से बने शॉल हैं. ”

पश्मीना कारीगरों की सुविधा के प्रयासों के तहत हस्तशिल्प विभाग ने खदीजा और फहमीदा की पश्मीना कताई इकाई को शिल्प सफारी में शामिल किया है.वर्ष 2021 के लिए शिल्प और लोक कला श्रेणी में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की प्रतिष्ठित सूची में श्रीनगर को बतौर सफारी रखा गया है.

हस्तशिल्प विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि खादीजा और फहमीदा कताई की प्रथा को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं.

उन्होंने कहा,‘‘एक समय था जब हर कश्मीरी परिवार के पास एक ‘येंडर‘ होता था. चरखा को येंडर कहते हैं. इसकी मदद से हाथ से पश्मीना धागा काता जाता है. पश्मीना कताई की एक समृद्ध विरासत है जो कश्मीर में महिलाओं की एक अच्छी संख्या के लिए वित्तीय स्थिरता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है. अभ्यास में अचानक गिरावट ने पश्मीना और महिलाओं दोनों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है. हालांकि, खदीजा और फहमीदा जैसी महिलाएं विरासत को आगे बढ़ाने और इस रचनात्मक प्रथा को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं.

खदीजा (70) और फहमीदा (55) ने यह कला तब सीखी जब वे किशोर थे. वो इसमें और घर के कामों के बीच एक अच्छा संतुलन बनाए रखती हैं और परिष्कृत पश्मीना कच्चे माल से चिकना पश्मीना धागे को स्पिन करने के लिए औसतन 5-6 घंटे खर्च करती हैं. पश्मीना कताई ने उन्हें एक ऐसी जगह बनाने में मदद की है जहां वो लोगों की पसंदीदा बन गई हैं. वो अन्य महिलाओं को भी शिल्प सीखने के लिए प्रशिक्षित करती हैं. ”