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बजट में अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्ग उपेक्षित: जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
केंद्रीय बजट आर्थिक चुनौतियों का सामना करने और आम आदमी की आवश्यकताओं को पूरा करने के तैयार किया जाता है. मगर हालिया बजट को देख कर ऐसा महसूस होता है कि यह समाज के एक विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने वाला है. इसमें ग़रीबों, ग्रामिणों, अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. मज़दूरों के लिए बनायी गई मनरेगा योजना के लिए निश्चित किया गया कोष में कमी, खाद्य सामग्री पर सब्सिडी, खाद सब्सिडी और पेट्रोलियम सब्सिडी के वित्त में कटौती के अतिरिक्त अल्पसंख्यकों के लिए निश्चित किये गए बजट को भी कम कर दिया गया है. इसके अतिरिक्त शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए निश्चित राशि को भी पूरे तौर पर खर्च नहीं किया गया. इसका प्रभाव आम आदमी के जीवन पर पड़ेगा. ये बातें जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने जमाअत के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कान्फ्रेंस में कहीं। भारत के कार्पोरेट्स गवर्नेंस की बदहाली पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक मूल्यांकन रिपोर्ट के प्रकाशन मात्र से एक बड़े कारोबारी घराने को बाज़ार मूल्यों में अरबों डालर का नुक़सान हुआ. सरकार को इस मामले में बाज़ारों को शांत करने और देश-विदेश के निवेश समुदायों में विश्वास को बहाल करने के लिए आवश्यक क़दम उठाना चाहिए और मामले की जेपीसी या सीजेआई की निगरानी में जांच करानी चाहिए. जजों की नियुक्ति पर बात करते हुए प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि लोकतंत्र में न्यायपालिका स्वतंत्र होनी चाहिए. न्यायाधीशों की नियुक्ति संसद या राजनेताओं से प्रभावित नहीं होनी चाहिए. कोलेजियम सिस्टम यह देश का क़ानून है और योग्यता के सिद्धांत पर आधारित है. इस व्यवस्था के तहत जजों की नियुक्ति होनी चाहिए. यद्यपि इस व्यवस्था में जो कमियां हैं उस पर विचार हो और उन्हें दूर किया जाए. न्यायपालिका में पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों की भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में राज्यपाल केंद्रीय सरकार के राजनीतिक प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं. जबकि राज्यपाल संविधान का संरक्षक होता है और राज्य में उनकी नियुक्ति संविधान के संरक्षण के लिए होती है इसलिए उनकी वफ़ादारी संविधान के लिए होनी चाहिए न कि किसी राजनीतिक दलों या व्यक्तियों के साथ. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम देश के हर व्यक्ति, समूह एवं संगठनों से मिलने और बातचीत करने के पक्ष में हैं. देश में नफ़रत, भड़काने या बांटने के वातावरण को ख़त्म करने के लिए अगर उन लोगों से भी मिलना पड़ेगा जो नफ़रत, भड़ाने या मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रोपगेंडा करते हैं तो उन से भी मिलकर देश में शांति और भाईचारा स्थापित करने करने और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत न फैलाने की बात कर सकते हैं. संवाद से रास्ते खुलते हैं और शांति की संभावनायें पैदा होती हैं.इसलिए संगठन या समूह किसी भी विचारधारा या स्टैंड रखते हों, बातचीत का दरवाज़ा खुला रहना चाहिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जो लोग हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं या मुसलमानों के खिलाफ़ बयान देते हैं उसके पिछे उनका राजनीतिक एवं व्यक्तिगत हित छुपा होता है. ऐसे लोगों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. अगर सरकार या प्रशासन की ओर से कोई ऐसी बात की जाए तो फिर उस पर ध्यान देना बहुत आवश्यक हो जाता है.