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मीरवाइज उमर फारूक चिंतित : इंजीनियर राशिद की बिगड़ती सेहत, कश्मीरी राजनीतिक कैदियों के अधिकारों पर उठाए सवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने तिहाड़ जेल में बंद पूर्व विधायक इंजीनियर राशिद की बिगड़ती सेहत और अस्पताल में भर्ती होने की खबरों पर गहरी चिंता व्यक्त की है.

मीरवाइज उमर फारूक ने जेलों में बंद अन्य राजनीतिक कैदियों की स्थिति पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं, विशेष रूप से बुजुर्ग कैदियों की खराब सेहत को लेकर. उन्होंने कहा कि जेल प्रशासन द्वारा एनआईए की हिरासत में बंद राजनीतिक कैदियों से फोन कॉल और ई-मुलाकात की सुविधा मनमाने तरीके से वापस लेना न केवल उनके अधिकारों का हनन है, बल्कि यह अमानवीय भी है.

राजनीतिक बंदियों के अधिकारों पर सवाल

भारत में जेल सुधार और मानवाधिकारों पर लंबे समय से बहस होती रही है. राजनीतिक बंदियों को भी कानून के तहत कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं, लेकिन हाल ही में तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा लिए गए फैसलों से इन अधिकारों पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

मीरवाइज उमर फारूक ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि ‘कश्मीरियों के साथ सख्ती की नीति एक शून्य-योग खेल है. इससे न तो शांति स्थापित होगी और न ही भरोसे की कोई नई नींव रखी जा सकेगी।’ उन्होंने भारत सरकार से मांग की कि वकीलों, नागरिक समाज के सदस्यों, मीडिया कर्मियों और युवाओं सहित सभी राजनीतिक कैदियों को तत्काल रिहा किया जाए.

जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार की जिम्मेदारी

मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने घोषणापत्र में किए गए वादों का सम्मान करे और राजनीतिक कैदियों की रिहाई और राहत के लिए ठोस कदम उठाए.उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘कम से कम जब तक राजनीतिक कैदी जेल में हैं, तब तक उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा और बहाली सुनिश्चित की जानी चाहिए.’

इंजीनियर राशिद का मामला और मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी

इंजीनियर राशिद, जो लंबे समय से हिरासत में हैं, की बिगड़ती सेहत की खबरें मानवाधिकार संगठनों के लिए भी एक चेतावनी होनी चाहिए. मीरवाइज उमर फारूक ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों से अपील की कि वे ‘राजनीतिक कैदियों की स्थिति पर नजर रखें और भारत सरकार से उनके बुनियादी अधिकारों की रक्षा की मांग करें.’

क्या भारत सरकार करेगी सुनवाई?

मीरवाइज की इस अपील पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी, यह देखना बाकी है, लेकिन यह साफ है कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक कैदियों की स्थिति पर बहस तेज हो रही है और इसे हल्के में लेना सरकार के लिए मुश्किल साबित हो सकता है.

(आगे की जानकारी के लिए पढ़ते रहें…)