तबलीग जमात के दूसरे अमीर हजरत मौलाना यूफूस के शागिर्द मियाजी अजमत का 96 साल में इंतकाल
यूनुस अल्वी, मेवात ( हरियाणा )
मेवात और दिल्ली मरकज तबलीग मरकज में गम का माहौल है. तबलीगी जमात के दूसरे अमीर मौलाना यूसुफ साहब के शागिर्द रहे मेवात के मशहूर बुजुर्ग मियां जी अजमत निवासी जयवंत (पुनहाना) का शुक्रवार को करीब 96 साल की आयु में दिल्ली मरकज में इंतकाल हो गया. जब मेवात के लोगों को मियाजी अजमत के इंतकाल की खबर मिली तो देश भर से हजारों लोग उनकी मिट्टी में शामिल होने दिल्ली पहुंचे . मरकज के नजदीक कब्रिस्तान में उनको सुपुर्द ए खाक कर दिया गया.
मरहूम मियां जी अजमत जयवंत के पोते मौलाना मुफ्ती अहमद ने बताया की उनके परदादा हाजी अशरफ अली के पास तबलीग जमात के पहले अमीर
मौलाना मोहम्मद इलियास का गांव जयवंत आना जाना था. तब उनके दादा मियां जी अजमत की आयु कम थी. वे तबलीगी जमात से नही जुड़े थे. उसके बाद जब 1944 में मौलाना मोहम्मद इलियास साहब का इंतकाल हुआ . मौलाना यूसुफ साहब तबलीग जमात के दूसरे अमीर बन तो उनके दादा 1944 में 15 दिन जमात में जाने के लिए दिल्ली मरकज गए उसके बाद उन्होंने चार चार महीना कई बार तबलीग जमात में लगाया उसके बाद वह मरकज के हो होकर रह गए.
शुक्रवार को यानी 22 सितंबर 2023 को करीब 96 साल की आयु में उनका दिल्ली मरकज में ही इंतकाल हो गया. मौलाना मुफ्ती अहमद ने बताया की मियाजी अजमत साहब के तीन लड़के हैं मौलाना फारुख, मौलाना कासिम और हाशिम, जिनमे से मौलाना कासिम साहब का करीब 5 साल पहले इंतकाल हो गया है। मौलाना अहमद का कहना के मेरे पिता मौलाना फारुख और वह भी मरकज में रहकर दीन का काम कर रहे हैं.
वही मेवात के बड़े मदरसा नूह के संचालक मुफ्ती जाहिद का कहना है की मियांजी अजमत जयवंत ने जो तबलीगी जमात की खिदमत की हे उसे किसी भी कीमत पर भुलाया नही जा सकता। उनका कहना हे की मौलाना मोहम्मद इलियास और मौलाना यूसुफ साहब के साथ मिलकर तबलीगी जमात को आगे बढ़ाने में मेवात के मियां जी मूसा घासेड़ा, मियांजी मेहराब फिरोजपुर नमक, फूल मोहम्मद लखनांका, मौलाना अब्दुल रहमान, मौलाना दाऊद और मियां जी अजमत सहित सैकड़ों लोगों ने बड़ी कुर्बानी दी है। मियां जी अजमत आखरी वो आदमी थे जो हजरत मौलाना यूसुफ साहेब के शागिर्द रहे। इसके बाद अब कोई नही है.
उन्होंने बताया की जब वे एक बार तबलीग जमात से जुड़े तो हमेशा के लिए तबलीग के काम को आगे बढ़ाने में दिल्ली मरकज के होकर रहे गए. उन्होंने बताया की मियाजी अजमत जयवंत जो मरकज निजामुद्दीन में तोहीद (अल्लाह एक) पर बयान करते थे. वो कहते थे दुकान, खेती, नौकरी से कुछ नही होता जो कुछ भी होता हे अल्लाह के कर्म से होता है. अल्लाह चाहे तो काम में नफा दे या घाटा ये उसकी की मर्जी से होता हैं. तौहीद पर मरकज में घंटों बयान करते हैं. उनका कहना हे कि वह जुमेरात (बृहस्पतिवार) को ही मियां जी अजमत से मिलकर आए हैं। वह दीन के बड़े दाइयों में से एक थे.
नूंह शहर स्थित बड़े मदरसा के संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन ने बताया की 1857 के गदर के बाद मौलाना इलियास साहब के पिता मौलाना इस्माइल साहब कांधला से दिल्ली आ गए और उन्होंने शहंशाह बहादुर शाह जफर के समधी मिर्जा इलाही बख्श के बंगला की मस्जिद से लोगो को नमाज और दीन सीखना शुरू किया था. जो मेवाती लोग दिल्ली में मजदूरी करने जाते थे उनमें से अक्सर को वह अपनी जेब से मजदूरी के पैसे देते और उनको दीन की बातें सिखाते.
जिसके बाद वे मेवात आकर ये आदमी लोगों से कहते कि उनके ऐसा काम मिला है एक आदमी काम भी नहीं करता और मजदूरी भी चोखी देवे है। जिसके बाद ज्यादा मेवाती मौलाना इस्माइल साहब के पास जाने लगे। लेकिन कुछ समय बाद मेवातियों को पता चल गया की ये तो हमे हमारे धर्म इस्लाम के दीन की बातें सिखाता है. इनसे मजदूरी लेना गलत है। उसके बात मेवातियों ने मजदूरी लेना बंद कर दिया और दीन सीखने लग गए. उसके बाद 1897 में मौलाना इस्माइल साहब का इंतकाल हो गया, फिर उनके बेटे और मौलाना इलियास के बड़े भाई मौलाना मोहम्मद ने 1897 से 1919 तक दीन के काम को संभाला.
नूंह बड़े मदरसे के संचालक मुफ्ती जाहिद हुसैन ने बताया की 1919 में मौलाना मोहम्मद के इंतकाल के बाद उनके छोटे भाई मौलाना मोहम्मद इलियास साहब को दिल्ली बुलाया गया. वह उस समय सहारनपुर के एक मदरसा में पढ़ाते थे. मौलाना इलियास साहब ने 1919 के बाद इस्लाम धर्म के तौर तरीके और दीन की बाते सिखाने से जायदा इस्लामी मदरसे खोलने पर जोर दिया.
उन्होंने मेवात में सबसे पहले 1922 में नूंह में मदरसा कायम किया, जो आज बड़े मदरसा के नाम से जाना जाता है. मौलाना इलियास साहब ने 1919 से 1925 तक करीब 300 मदरसे कायम किए. उसके बाद वह 1925 में हज पर मक्का मदीना चले गए. बताया जाता है की इस्लाम धर्म के पैगंबर हजरत मुहम्मद साहेब के आदेश पर हज से आने के बाद मौलाना इलियास साहब ने 1925 से तबलीगी काम की मेवात से इसे शुरू किया .
1927 में मेवात के नूंह और फिरोजपुर नमक के करीब 10-12 लोगों की एक पहली तबलीगी जमात निकाली.उसके बाद जमातों का सिलसिला चल पड़ा और आज दुनिया के सभी देशों को तबलीगी जमात भेजी जा रही हैं और विदेशों से जमात आ भी रही है. आपको बता दे तबलीगी जमात में जाने की शुरुआत मेवात के लोगों से हुई, इसलिए पूरी दुनिया में मेवात के लोगों को अच्छी नजर से देखते है और मेवात के लोगों का बड़ा एहतराम करते हैं. जो भी विदेशी जमात भारत आती है तो उसकी तमन्ना होती है की उनको मेवात भेजा जाए और वे मेवात को और यहां के लोगो को देखे जिन्होंने सबसे पहले तबलीग जमात की शुरुआत की थी.
अफसोस इस बात का है की अब मेवात का युवा काफी बदल चुका है. नए नौजवान तबलीग जमात से कम ही जुड़ पा रहे हैं.