SportsTOP STORIES

मोहम्मद रफीक खान: जिसने भारत को शतरंज के वैश्विक मंच पर दिलाई पहचान

यूसुफ तहमी, दिल्ली

शतरंज का आविष्कार करने वाला देश आखिरकार पहली बार शतरंज के खेल का राजा बन गया है. भारत की पुरुष और महिला टीमों ने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में चल रहे 45वें शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया. यह प्रतिष्ठित प्रतियोगिता हर दो साल में आयोजित होती है.

इससे पहले, भारत ने चेन्नई में कांस्य पदक जीता था और एक अन्य मौके पर भी उसे कांस्य से संतोष करना पड़ा था.हालांकि, आज हमारा उद्देश्य इस जीत की प्रशंसा करना नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति के बारे में बात करना है जिसने पहली बार भारत को वैश्विक शतरंज में पहचान दिलाई.

यदि आप Google पर भारत के शतरंज चैंपियनों को खोजेंगे, तो सबसे पहले विश्वनाथन आनंद का नाम सामने आएगा, जो ‘ग्रैंडमास्टर’ का खिताब हासिल करने वाले भारत के पहले खिलाड़ी हैं. लेकिन इससे पहले एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने भारत को पहला शतरंज ओलंपियाड पदक दिलाया था. उनका नाम था मोहम्मद रफीक खान. रफीक खान को उनके खेल के जानकारों का कहना है कि अगर उन्हें उचित सुविधाएं और समर्थन मिलता, तो वह भारत के पहले ग्रैंडमास्टर होते.

भारत को पहला ओलंपियाड पदक दिलाने वाले खिलाड़ी

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब आनंद सिर्फ 11 साल के थे, तब मोहम्मद रफीक खान ने 1980 में माल्टा में चल रहे शतरंज ओलंपियाड में तीसरे बोर्ड पर भारत के लिए पहला पदक जीता था, जो रजत था. 1956 में भारत की आजादी के बाद जब देश ने पहली बार शतरंज ओलंपियाड में हिस्सा लिया, तब टीम में शामिल सभी खिलाड़ी उच्च शिक्षित और विशेषाधिकार प्राप्त पृष्ठभूमि से आए थे. ऐसे में मोहम्मद रफीक, जो एक साधारण बढ़ई थे, उनकी उपलब्धि और भी ज्यादा बड़ी मानी जाती है.

मोहम्मद रफीक खान का सफर

मोहम्मद रफीक खान का जन्म 12 जुलाई 1946 को भोपाल, मध्य प्रदेश में हुआ था. उनके पिता एक बढ़ई थे. रफीक भी कम उम्र में ही इस काम में शामिल हो गए. उन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की और अपने पिता के साथ बढ़ई का काम करने लगे.

शतरंज के प्रति उनका जुनून तब शुरू हुआ जब वे चाय की दुकानों में लोगों को शतरंज खेलते देखते थे और धीरे-धीरे खुद भी इस खेल में रुचि लेने लगे.

हालांकि, रफीक ने जो शतरंज सीखा था, वह भारतीय शैली की शतरंज थी, जिसमें प्यादे सिर्फ एक ही कदम चल सकते थे. लेकिन उन्होंने अंतरराष्ट्रीय शैली के खेल में भी तेजी से महारत हासिल की और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में सफल होने लगे.

1975 में मध्य प्रदेश शतरंज चैंपियनशिप जीतकर रफीक का सफर शुरू हुआ. इसके बाद उन्होंने नेशनल बी टूर्नामेंट में भाग लिया और दूसरे स्थान पर रहे, जिससे उन्हें नेशनल ए में खेलने का मौका मिला.1976 में कलकत्ता में नेशनल बी टूर्नामेंट में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और कुल 11 जीत के साथ रिकॉर्ड कायम किया। यह प्रदर्शन आज तक बेजोड़ माना जाता है.

रफीक खान की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धियां

शतरंज में उनकी सफलता ने उन्हें कई नौकरियों के प्रस्ताव दिलाए, और अंततः उन्होंने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) में नौकरी स्वीकार की. 1978 में वह कोचीन में आयोजित नेशनल ए प्रतियोगिता के राष्ट्रीय चैंपियन बने। उनके खेल की विशेषता यह थी कि उन्होंने कभी शतरंज की किताबें नहीं पढ़ीं, क्योंकि वह केवल अंग्रेजी और रूसी में उपलब्ध थीं। इसके बावजूद उनका खेल बेहद व्यावहारिक और शक्तिशाली था.

1980 में माल्टा में आयोजित शतरंज ओलंपियाड में उन्होंने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया और तीसरे बोर्ड पर 13 में से 10 मुकाबले जीतकर भारत को पहला रजत पदक दिलाया. यह किसी भारतीय द्वारा ओलंपियाड में जीता गया पहला पदक था. इसके बाद उन्होंने 1984, 1986 और 1992 में प्रतिष्ठित पेलू मोदी चैंपियनशिप जीती.

मोहम्मद रफीक खान का अंतिम सफर

मोहम्मद रफीक ने अपनी सफलता के बावजूद एक साधारण और विनम्र जीवन जिया. 2019 में जुलाई महीने में उनका निधन हो गया. आज जब भारत ने शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है, तो मोहम्मद रफीक खान को याद किया जा रहा है. यह लेख उनके प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *