मोहन भागवत का बयान: मंदिर-मस्जिद विवाद पर नफरत फैलाने वालों के खिलाफ उठाएं ठोस कदम
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवाद पर चिंता जताने वाले बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में गहरी चर्चा छेड़ दी है. भागवत ने हाल ही में एक बयान में कहा था कि कुछ लोग राम मंदिर जैसे मुद्दों को उछाल कर खुद को हिंदुओं का नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, और ऐसे विवादों को तूल देने की कोई आवश्यकता नहीं है. इस बयान के बाद कई राजनीतिक नेताओं और धार्मिक विचारकों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं, जिनमें समर्थन और आलोचना दोनों ही शामिल हैं.
सतेंद्र दास वेदांती का समर्थन
अयोध्या से जुड़े एक प्रमुख धार्मिक नेता, सतेंद्र दास वेदांती ने मोहन भागवत के बयान का स्वागत किया और इसे पूरी तरह सही बताया. उन्होंने कहा, “संघ प्रमुख ने जो कहा है, वह बिलकुल सही है. बहुत से लोग अब नए-नए विवादों को लेकर सामने आ रहे हैं, जिनसे किसी का कोई लेना-देना नहीं है.” वेदांती ने आगे कहा कि संघ, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी ने जो काम किया है, वही आज देखने को मिल रहा है, लेकिन अब कुछ लोग हिंदुत्व की आड़ में अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, जो समाज में तनाव पैदा करते हैं.
उन्होंने खासकर उत्तर प्रदेश के संभल में हुई घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने जो कार्रवाई की, उसे भविष्य में याद रखा जाएगा. वेदांती ने अयोध्या और आगरा में स्थित शिव मंदिरों पर मजार बनने के मुद्दे पर भी चिंता जताई और कहा कि इन मंदिरों पर कब्जा किया गया है, जिसके खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है. उनका मानना है कि इस पर उचित कार्रवाई होनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को इसके बारे में पता चले.
दिलीप जायसवाल का बयान
इस बीच, बिहार भाजपा के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने मोहन भागवत के बयान पर अपनी असमर्थता जताई और कहा कि उन्होंने अब तक भागवत का बयान नहीं सुना है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इस विषय पर वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है.
इसके अलावा, दिलीप जायसवाल ने तेजस्वी यादव और कांग्रेस पर भी निशाना साधा. तेजस्वी यादव द्वारा बीपीएससी अभ्यर्थियों से वीडियो कॉलिंग पर बात करने के मामले में उन्होंने उन्हें ‘वीडियो कॉल और ट्विटर का नेता’ करार दिया. वहीं, कांग्रेस द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों पर जायसवाल ने तीखा हमला करते हुए इसे राहुल गांधी को बचाने की साजिश बताया, जिनके खिलाफ एक आपराधिक मामले में सजा हो सकती है.
माजिद मेमन की प्रतिक्रिया
शरद पवार गुट के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद माजिद मेमन ने मोहन भागवत के बयान पर कहा कि वह कभी-कभी अच्छे बयान देते हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि उनके बयान पर अमल नहीं किया जाता. उन्होंने कहा कि भागवत का यह बयान सही दिशा में है, क्योंकि कुछ लोग हिंदुत्व का प्रचार करते हुए खुद को हिंदुओं का नेता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस बयान को केवल शब्दों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे वास्तविकता में लागू किया जाए.
मेमन ने यह भी कहा कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोग समाज के लिए हानिकारक हैं, और ऐसे विवादों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए. उन्होंने सरकार और आरएसएस से इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने की अपील की, ताकि समाज में शांति और एकता बनी रहे.
यासूब अब्बास का समर्थन
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य यासूब अब्बास ने भी मोहन भागवत के बयान का समर्थन किया और इसे एक स्वस्थ सोच बताया. उन्होंने कहा, “हर मस्जिद के नीचे मंदिर ढूंढने और मजार के नीचे शिवलिंग तलाशने की कोशिश करना बिल्कुल गलत है. इससे समाज में तनाव और विभाजन पैदा होता है.” अब्बास ने कहा कि भागवत के इस बयान से देश में एक अच्छा माहौल बनेगा और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उन लोगों पर कड़ी कार्रवाई करें, जो अपने राजनीतिक फायदे के लिए मंदिर-मस्जिद जैसे विवाद खड़ा कर रहे हैं.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ विदेशी ताकतें देश में सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश कर रही हैं, और इस तरह के विवादों को बढ़ावा देने के लिए लोगों को उकसाया जा रहा है. अब्बास ने कहा कि यह वक्त की आवश्यकता है कि सभी समुदाय मिलकर देश की एकता और अखंडता को मजबूत करें और किसी भी प्रकार के धार्मिक विवादों से बचें.
सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
मोहन भागवत के बयान को लेकर विभिन्न दलों और नेताओं की प्रतिक्रियाओं का यह दौर राजनीतिक संवाद का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है. जहां कुछ नेताओं ने उनके विचारों का स्वागत किया, वहीं कुछ ने इस पर सवाल भी उठाए हैं. उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि क्या इन विचारों को वास्तविकता में लागू किया जाएगा या यह सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाएगा.
देश में धार्मिक विवादों को उठाना और उन्हें तूल देना राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है, इसका खुलासा कई नेताओं ने किया है. यह मुद्दा अब एक नई दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है, जहां राजनीतिक और धार्मिक नेतृत्व के बीच सामूहिक प्रयास की आवश्यकता महसूस हो रही है, ताकि समाज में शांति और सौहार्द बना रहे और किसी भी प्रकार के विवादों से बचा जा सके.
मंदिर-मस्जिद विवाद पर मोहन भागवत का बयान एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में बढ़ते धार्मिक विवादों को लेकर एक सोच बन रही है, जो न केवल राजनीतिक नेताओं, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए एक चेतावनी भी है. अब यह देखना होगा कि इन विचारों पर कितना अमल किया जाता है और समाज में शांति और एकता की दिशा में यह कदम कितनी दूर तक जाते हैं.