Muslim WorldTOP STORIES

Mukhtar Abbas Naqvi सजन रे झूठ मत बोलो

एक अगस्त को ‘तीन तलाक’ रोकने के लिए ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून’ बने एक वर्ष पूरा हो जाएगा। इसे सरकार की बड़ी उपलब्धियों में गिनाने की गर्ज से केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी( Mukhtar Abbas Naqvi) ने पीआईबी यानी प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की वेबसाइट पर एक लेख साझा किया है, जिसमें दावा है कि कानून बनने से लेकर अब तक यानी पिछले एक वर्ष में तीन तलाक तलाक-ए-बिद्दत की घटनाओं में 82 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही  इसकी आड़ में उन्होंने देश की सेक्यूलर जमातों को भी कोसा है। लिखा है कि 1986 में लोकसभा में कांग्रेस की 545 में से 400 और राज्यसभा में 245 में 159 सीटें होने के बावजूद तत्तकालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस संख्या बल का इस्तेमाल महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए किया। उनका इशारा ‘शाह बानो केस’ की ओर है। इसके अलावा नकवी ने अपने लेख में कहा है कि 8 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन, 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 19 अगस्त विश्व मानव दिवस, 20 अगस्त को सद्भाना दिवस के तौर पर याद किया जाता है। इसी तर्ज पर अब एक अगस्त को मुस्लिम महिला अधिकार संरक्षण कानून और 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 खत्म करने के लिए इतिहास के सुनहरे लफ्जों में लिखा जाएगा। लिखते समय केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री को 82 प्रतिशत तीन तलाक मामले में कमी कैसे आई, इसके क्या प्रमाण हैं, इस मामले में अन्य समुदाय का पिछले एक साल में प्रतिशत क्या रहा ? ये आंकड़ा देना याद नहीं रहा। वह लेख में एक और सच्चाई चबा गए। कम से कम उन जैसे नेता से यह उम्मीद नहीं थी। देश में पिछले पांच महीनों से कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। लोगों की रोजी-रोजगार पर संकट है। ऐसे में तलाक क्या तमाम तरह की घटनाओं में कमी आई है। मगर लेख में इसका जिक्र नहीं।

-मर्ज दवा अलग-अलग

  दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की यही विशेषता है। ये झूठ को सच की तरह इतनी बार और इतना जोर से दोहराते हैं कि सच लगने लगता है। तीन तलाक को लेकर कानून बनाने का मामला भी कुछ ऐसा ही है। मर्ज कुछ और है। दवा किसी और की दे दी गई। तमाम तरह के आंकड़े मौजूद हैं, जो बताते हैं कि देश में तलाक से अधिक गंभीर मसला परित्यक्ता या महिलाओं को छोड़ने का है। वॉशिंगटन डीसी के यूएस-इंडिया पॉलिसी इंस्टिट्यूट में अर्थ शास्त्री अबुसालेह एवं दिल्ली के सेंटर फॉर रिसर्च एंड टेडाबेस डेवलपमेंट पालिसी के रिसर्च एसोसिएट सैयद खालिद 2011 की जनगणना के आंकड़ों का अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि देश में परित्यक्त महिलाओं की संख्या 23 लाख है, जिनमें 20 लाख केवल हिंदू हैं। मुस्लिम की संख्या 2.8 लाख, ईसाई 90 हजार और दूसरी मजहब की महिलाओं की संख्या 80 हजार है। इन आंकड़ों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी यशोदा बेन भी हैं, जिन्होंने 24 नवंबर 2014 को जिंदगी की परेशानियों से तंग आकर कहा था कि यदि वे यानी उनके पति एक बार भी बुलाते हैं तो मैं उनके पास चली जाउंगी

आंकड़ों की ज़ुबान

 अध्ययनों से  मालूम हुआ कि तलाकशुदा औरतों से कहीं अधिक परेशानी परित्यक्त महिलाओं को उठानी पड़ती है। तलाकशुदा महिलाओं का शादी करना परित्यक्त महिलाओं से कहीं ज्यादा आसान है। उनके पीछे परिवार और समाज खड़ा रहता है, जबकि परित्यक्ता के साथ नहीं। अबुसालेह एवं सैयद ख़ालिद अपने अध्ययन के आधार पर दावा करते हैं कि अन्य धर्मों के मुकाबले वैवाहिक संबंधों में रहने वाली महिलाओं में मुसलमानों का प्रतिशत सर्वाधिक 87.8 प्रतिशत है। हिंदुओं में यह 86.2, ईसाइयों में 83.7 और अन्य धर्मों में 858 प्रतिशत है। विधवा महिलाओं की संख्या भी मुसलमानों में कम है। मुसलमानों का प्रतिशत 11.1, हिंदुओं में 12. 9, ईसाईयों में 14.6 तथा अन्य धर्मों में 13.3 प्रतिशत है। छोड़ी गई महिलाओं का प्रतिशत मुसलमानों में 0.67, हिंदुओं में 0.69, ईसाइयों में 1.19 तथा अन्य धर्मों में 0.68 प्रतिशत है। इस अध्ययन से पता चला कि तलाकशुदा औरतें सर्वाधिक मुस्लिम और ईसाई हैं। इनका प्रतिशत 0.49 व 0.47 है। इस लिहाज से हिंदू महिलाओं का प्रतिशत 0.22 व अन्य धर्मों की महिलाओं का प्रतिशत 0.33 है। किसी भी उम्र में विवाह बंधन में बंधने वाली 34 करोड़ महिलाओं में 9.1 तलाशुदा हैं, जिनमें 2.1 फीसदी मुस्लिम हैं। इस हिसाब से देखें तो हिदुओं की छोड़ी गई महिलाओं की तुलना में तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है। याद रहे कि 2011 की जनगणा में परित्यक्त हिंदू महिलाओं की संख्या 20 लाख बताई गई थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस समय तलाक और अलगाव के मामले सर्वाधिक बौद्ध धर्म में हैं। एक अध्ययन से पता चला कि प्रत्येक एक हजार में 17.6 प्रतिशत तलाक और अलगाव के मामले बौद्धों में दर्ज किए गए। ईसाई 16.6 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर और मुसलमान 11.7 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर हैं। हिंदुआ में यह प्रतिशत 9.1 है। मुसलमान में तलाक के मामले प्रत्येक एक हजार में मात्र पांच है, जबकि हिंदुओं में परित्यक्ता के मामले मुसलमानों के तलाक से कहीं अधिक।

Pic social media

-होशियारी की जरूरत

तलाक़शुदा महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए पहले से आईपीसी, मुस्लिम वुमंस एक्ट एवं प्रोटेक्शन ऑफ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 जैसी कई धाराएं मौजूद हैं। ऐसे में सरकार को तलाक की जगह परित्यक्ता रोकने और ऐसी महिलाओं को अधिकार दिलाने पर काम करना चाहिए। कोई शक नहीं कि ‘तीन तलाक’ की आड़ में कुछ मुसलमान इसका बेजा इस्तेमाल करते रहे। बावजूद इसके मुख्तार अब्बास नकवी जैसे मुस्लिम लीडर को सरकार का ध्यान इस बड़ी समस्या की ओर दिलाना चाहिए था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध राष्ट्रीय मुस्लिम महिला संघ ने जून 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुस्लिम पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध करने की वकालत थी। इसका उद्देश तीन तलाक और त्तकाल तलाक जैसी प्रथाओं पर रोक लगाना था। सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2016 में यह मामला केंद्र सरकार को सौंप दिया। इसपर सरकार का जवाब आया कि 65 वर्षों में मुस्लिम समुदाय में सुधार न होने से आज मुसलमान औरतें सामाजिक और आर्थिक तौर पर बेहद नाजुक स्थिति में हैं। इसके तुरंत बाद 24 अक्तूबर 2016 को बुंदेलखंड में आयोजित एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर अपनी मंशा जाहिर कर दी कि ‘‘हमारी माता-बहनों के साथ धर्म और संप्रदाय के नाम पर अन्याय नहीं होना चाहिए।’’ अब जब कि एक अगस्त को  मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून बने एक साल पूरा हो रहा है। मुख्तार अब्बास नकवी के दावे के अनुसार, तीन तलाक के मामलों में 82 प्रतिशत की कमी आई है। वे और केंद्र सरकार बताएं कि इस दौरान तलाकशुदा महिलाओं के पुनर्वास के लिए क्या किया गया ? अब्बास साहब को मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक दशा सुधारने को लेकर पिछले छह वर्षों में सरकार द्वारा किए गए कार्योें का हिसाब भी देना चाहिए। क्या सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों के अनुकूल तमाम कार्य मुकम्मल हो गए ?
अब्बास साहब! जिंदगी का सारा फलसफा केवल राजनीति में नहीं। समाज और कौम को लेकर भी कुछ नैतिक जिम्मेदारियां और जवाबदेही है। अफसोस कि पिछले छह साल की अपनी सरकार के काम-काज से भी आप यह हुनर नहीं सीख पाए ! मोदी सरकार के तमाम बड़े फैसलों पर चिंतन-मनन करें, अपने-आप समझ जाएंगे पूरा मामला। आप तो साहित्यकार भी हैं। सांप्रदायिक दंगे पर लिखा आपका उपन्यास ‘बवाल’ लॉकडाउन में पढ़ा है।
                                                                                                                                          मलिक असगर हाशमी
                                                                             

नोटः वेबसाइट आपकी आवाज है। विकसित व विस्तार देने तथा आवाज की बुलंदी के लिए आर्थिक सहयोग दें। इससे संबंधित विवरण उपर में ‘मेन्यू’ के ’डोनेशन’ बटन पर क्लिक करते ही दिखने लगेगा।
संपादक