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मुख्तार अंसारी की न्यायिक हिरासत में मौत सत्ता पर धब्बा !

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

बांदा जेल में पांच बार एमएलए रह चुके मुख्तार अंसारी की रहस्यमय मौत और मरने से पहले खुद पर मंडराते मौत के खतरों को लेकर अदालत को लिखी गई चिट्ठी अब बड़े बहस का विषय बन चुके हैं.मुख्तार अंसारी के बेटे ने मीडिया से बातचीत में जिस ओर इशरा किया है, उसने आम आदमी को पुलिस, सरकार और अदालत के गठजोड़ के प्रति चिंता मंे डाल दिया है.

इस बीच बहस में जब एक वर्ग मुख्तार अंसारी को मसीहा और दूसरा माफिया डाॅन बताने में लगा है, वहीं एक तीसरा वर्ग भी सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट के माध्यम से यह बताना चाहता है कि आम आदमी हो या माफिया डाॅन, उसका न्यायिक हिरासत में इस तरह मरना सरकार और सरकारी तंत्र पर धब्बा है.

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मरने से पहले मुख्तार अंसारी ने बेटे को फोन कर बताया था कि वह चल भी नहीं पा रहे हंै. उनके हाथ पैर की नसों में कई दिनों से दर्द है. यहां तक कि अदालत को चिट्टी लिखकर जहर देकर मारने के बारे मंे भी अगाह किया था, उसके बावजूद जेल प्रशासन और जेल के डाॅक्टरों का उन्हें फिट बताना, बुरी स्थिति में जेल में रखना, फिर अचानक इस तरह तबियत बिगड़ना के मौत हो जाए, यह कहानी कई अर्थ छोड़ती है.

इन सारी बातों को समेटे मनीष सिंह ने अपने एक्स हैंडल पर समाज में नई बहस छेड़ने वाली एक बेहद उम्दा पोस्ट लिखी है, जिसे आरजे सायमा ने ट्वीट करते हुए लिखा-‘‘कौन थे मुख्तार अंसारी? पढ़ें और नफरत करने वाले कट्टरपंथियों के पोस्ट से दूर न जाएं. आपमें और उनमें कुछ फर्क होना चाहिए.’’

मनीष सिंह अपनी पोस्ट में लिखते हैं-‘‘यह कस्टोडियल डेथ है, जो अब आप पर मंडरा रहा है.’’ उनकी यह पोस्ट यहां हू-ब-हू प्रस्तुत की जा रही है……
मुख्तार अंसारी, देवता स्वरूप आदमी थे.

वे ब्रिगेडियर उस्मान के नवासे थे, जिनको पाकिस्तान ने सेनाध्यक्ष बनाने का वादा किया था, पर गए नही.

मुख्तार रॉबिनहुड थे, किसकी शादी में मदद की, किसकी पढ़ाई में, और भी जमाने भर के पुण्याई के काम किये। ऐसी पोस्ट दिख रही है.

दूसरी ओर से बताया जा रहा है कि मुख्तार अंसारी क्रिमिनल थे, गैंगस्टर थे, एक्सटॉर्शनिस्ट, हथियारों के सौदागर, बाहुबली बसपाई, हत्यारे थे.

कौन दरोगा उनको पकड़ लिया था, तो मुलायम सिंह बचा लिए थे। एक ठो राय साहब ( जो खुदई डॉन थे) उनकी कैसे खूनाख़ून हत्या करवाये.. वगैरह वगैरह

दोनो तरफ से इस तरह के अखंड मूर्खता भरे किस्से देख रहा हूँ। जो सुनाकर, आपका असल ईशु से ध्यान हटाया जाता है।.
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मुख्तार अंसारी, बेसिकली एक अंडर ट्रायल मुलजिम था, उसे सत्ताधारी शक्तियों से अपनी जान का अंदेशा था.

यह बात उसने लिखित में कोर्ट में दी थी। उसके हफ्ते दस दिन बाद जेल में वास्तविक मौत हो गयी.
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किसी भी मुलजिम- डॉन हो, या देवता, उसकी जेल या हिरासत में मौत, ये सत्ता पर धब्बा है.

पॉवर एब्यूज है। इसलिए मृतक के बैकग्राउंड या जघन्यता की बहस से ऊपर, असल चीज देखने की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है, कि ये आग आपके दामन तक कैसे पहुचने वाली है.
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दो चरण में पहुचेगी, जिसमे पहला चरण पूर्ण हो चुका। पहला कदम, याने लोकशाही का खात्मा हो चुका है.

याने, अब सरकार आप बदल नही सकते। नेता और राज, अब राजा की कृपा से चलना है.

उनको इलेक्टोरल प्रोसेस से उखाड़ फेंकने, नियंत्रित रखने, या स्क्रूटनी करने की व्यवस्था की जिस क्षमता को हम लोकशाही कहते है- खत्म है.

तो अब, इसके बाद, सीधा सपाट, दूसरा चरण सिविल लिबर्टीज पर डाका डालना होता है.
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याने अगर तुम अगर दुकानदार हो, सौदा सुलफ बेचो। डॉक्टर हो, दवा सूजी लगाओ। जमादार हो, नाली साफ करो.

अपना काम करो तुम.

देश कैसे चलेगा, कौन चलाएगा, इस ओर सोचना बोलना, तुम्हारा काम नही.

हम चलाएंगे। तुम, दो कौड़ी का प्राणी, ज्यादा बोलोगे, लड़ोगे, डिस्टर्ब करोगे, तो धारा बहुत सारी है कानून में, कोई भी लगा देंगे.

फिर एक बार हिरासत में आये..

इसके तो जिंदा बाहर आना, न आना, कोई तुम्हारा अधिकार नही। तमाम मुठभेड़ें, कस्टोडियल डैथ के उदाहरण याद रखो। पुलिस हिरासत, न्यायिक अभिरक्षा में लाइव टीवी पर, कोई सिर पे गोली मार जाएगा.

जेल में मरे, तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह यह नही लिखा होगा, कि आदमी इलाज के अभाव में मरा। वह तो फ़ूड पॉइजनिंग, बीपी, शुगर, हार्ट अटैक हो जाने से मरता है। तुम्हारी भी कोई बीमारी लिख दी जाएग.
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सो किसी मुलजिम का देवता या क्रिमिनल होना न होना, बहस का मुद्दा नही होना चाहिए। प्रश्न, किसी की कस्टोडियल डैथ है.

जो अब आपके सर पर मंडरा रही है.

मजे की बात है कि सरकार, सरकारी तंत्र और अदालत के गठजोड़ को बीच बहस से निकालने के लिए एक वर्ग सोशल मीडिया पर लगातार यह प्रचारित करने में लगा है कि चूंकि मुख्तार अंसारी रोजा रख रहे थे और रोजा दिल के दौरे के खतरे के बढ़ाता है, इसके काटते हुए डाॅक्टर संजीव बत्रा ने इंटाग्राम पर रोजा और उपवास को लेकर जो दलील दी हैं, उसे भी पाठकों को सुनना चाहिए. पाठकों के लिए यहां डाॅ संजीव के वीडियो भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं.