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रमजान में मुंबई के मुहम्मद अली रोड का अलग है जलवा, असली हिंदुस्तान दिखता है यहां

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, मुंबई

मिनारा मस्जिद में रमजान की शाम का अपना ही मजा है. यहां शहर का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना देखा जा सकता है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सभी त्योहारों पर दावत देते की लंबी परंपरा चली आ रही है. रमजान शुरू होते ही मुहम्मद अली रोड की सड़कों पर रात में जश्न का नजारा दिखना शुरू हो जाता है. मिनारा मस्जिद रोशनी से जगमगाती रही है. लोग रमजान की खुशियों के लिए इलाके में आते हैं और सभी दुकानें देर रात तक खुली रहती हैं.

रमजान के महीने में लोग सेल्फी और वीडियो लेने के लिए यहां घूमते रहते हैं. इससे पहले वे इधर-उधर भटकते रहते हैं. जहां अच्छा माहौल दिखता है, वहीं शुरू होे जाते हैं ताकि कैमरे या मोबाइल में यहां के माहौल को हमेशा के लिए अपनी यादों में कैद किया जा सके.

रमजान की पहली तारीख से लेकर ईद तक, यानी एक महीने के लिए, इन सड़कों पर अर्थव्यवस्था को भारी बढ़ावा मिलता है. जैसे दीवाली या गणपति के अवसरों पर अन्य बाजारों में होता है. यह सड़क मुंबई में रमजान के जश्न का केंद्र है. इस शहर में मनाए जाने वाले अधिकांश त्योहारों की तरह रमजान का भी बहुत भव्य महत्व है. इस मौके पर कई लोग मुहम्मद अली रोड पर अपने दोस्तों के साथ खाना खाने आते हैं. वे कहते हैं कि अगर आप यहां एक बार आ गए, तो हर साल अधिक मित्रों और परिवार के साथ वापस आएंगे.

बहुत से लोग मानते हैं कि गणेश उत्सव और रमजान दो ऐसे त्योहार हैं जो देश और दुनिया के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के बावजूद, जिसमें मुस्लिम विरोधी कथा है, फिर भी इन त्याहारों के लिए बहुत ही अनुकूल है. एक दूसरे के उत्सवों का हिस्सा बनना धर्मनिरपेक्ष धागा है जो इस शहर को बांधता है.

रमजान के मौके पर मुहम्मद अली रोड पर लोगों को मराठी, गुजराती, तमिल, पंजाबी, बंगाली, हिमाचली, उड़िया, असमिया और यहां तक ​​कि फ्रेंच, जर्मन या स्पेनिश में बात करते देखा-सुना जा सकता है. यहां हर भाषा बोलने वाले आते हंै. इसमें कोई शक नहीं कि अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू भाषी यहां आम बोल-चाल की जुबान है. ज्यादातर खाने-पीने वालों का कहना है कि रोजाना आने वाली भीड़ में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र से होती है. पहली बार आने वाले मीडिया छात्रों का एक समूह, जिसमें शाकाहारियों और मांसाहारी दोनों शामिल हैं, भी भोजन की सुगंध और स्वाद का आनंद लेता नजर आया. शाकाहारी लोग ज्यादातर मालपूवा और फिरनी के लिए आते हैं, जबकि यहां गोश्त की वैराइटी ज्यादा मिलती है. कोलकाता से मुंबई आई की एक छात्रा श्रुति गुप्ता ने कहा, यह पहली बार है और हम सभी को हमारे शिक्षक और दोस्तों ने मुहम्मद अली रोड पर यहां आने का आग्रह किया था. मैं मांसाहारी हूं, इसलिए मैंने चिकन कबाब टिक्का खाया. एक अन्य छात्र ने कहा कि मैं मालपूआ खाने आया हूं.

पहली बार आने वालों में इंदौर के तलजा काकड़े ने कहा कि मुहम्मद अली रोड की यात्रा के बिना मुंबई में उनका प्रवास पूरा नहीं होता है. बहुत सारे इंस्टाग्राम फीड मुझे यहां ले लाए. मैं कबाब खाने के लिए उत्साहित हूं. भोजन सभी सामाजिक-राजनीतिक शोर से ऊपर है. देखें कि हम कितने विविध हैं और फिर भी हम एक साथ इतनी निकटता से मनाते हैं. और छात्र रुद्राक्ष के अनुसार, रमजान सबसे अच्छा है. यहां आने का सबसे अच्छा समय है और यह सिर्फ खाने के लिए नहीं है. यह जगह उज्ज्वल है और यहां के वातावरण गर्म और उत्सवपूर्ण है.

ऐसे कई यात्री हैं जो स्थानीय त्योहारों को मनाने और स्थानीय व्यंजनों का आनंद लेने के लिए दुनिया भर में यात्रा करते हैं. ऐसा ही एक ब्रिटिश जोड़ा मिला जो नियमित रूप से दुनिया भर में यात्रा करता है. जेम्स को कुछ साल पहले दिल का दौरा पड़ा था. उन्होंने मौत को बेहद करीब से देखा है. अंधेरी के एक अस्पताल ने उन्हें दूसरी जिंदगी दी है. वह यहां उन दोस्तों से मिलने आए हैं जिन्होंने उस वक्त उनकी मदद की थी. उन्होंने कहा, मैंने रमजान के दौरान दुबई, ओमान और मध्य पूर्व के अन्य देशों का दौरा किया है. इस बार, मैं अपने दूसरे जीवन का जश्न मनाने के लिए मुंबई आया हूं. ओमान और दुबई में समारोह शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जाता है. शाम को यहां आना बहुत आकर्षक होता है. यहां के खाने में विशिष्ट भारतीय स्वाद है. ओमान में स्वादों का अलग मिश्रण हैं. इस दौरान जेम्स की बातों पर उनकी पत्नी जूली भी उत्साह से सिर हिलाती दिखीं.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी मुहम्मद अली रोड के रमजान का जश्न छाया हुआ है. यहां के कुछ खाद्य पदार्थ अद्वितीय हैं और केवल रमजान के दौरान ही यहां मिलते हैं. यहां लाइव किचन में हर दिन ताजी सामग्री मिलती है. जानकर आश्चर्य होगा कि यहां का शालीमार रेस्तरां मालपूआ बनाने के लिए प्रतिदिन औसतन 1,3000 अंडे का उपयोग करता है.