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आतंकवादियों से रिश्ता बताकर असम में मुसलमानों का संग्रहालय सील, दो हिरासत में

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,गुवाहाटी

विवादास्पद आरोप लगाकर असम सरकार ने पारंपरिक खेती और लकड़ी और बांस से बनी घरेलू वस्तुओं को प्रदर्शित करने वाले संग्रहालय को सील कर दिया. इस संग्रहालय को दो मुसलमानों ने स्थापित किया था, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है.

असम पुलिस की इस कारनामे पर प्रदेश की अधिकांश विपक्षी दल खामोश है. यहां तक मुसलमानों का अलमबरदार बने घूमने वाले हाजी बदरुद्दीन अजमल भी नहीं. जबकि कांग्रेस ने इसपर आवाज बुलंद करने की कोशिश की है.

असम पुलिस ने संग्रहालय स्थापित करने पर मंगलवार को असम मियां (असोमिया) परिषद के अध्यक्ष मोहर अली सहित दो लोगों को हिरासत में लिया. इससे पहले गोलपारा जिला प्रशासन द्वारा मुसलमानों द्वारा स्थापित निजी मिया संग्रहालय को सील कर दिया गया.
 
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा द्वारा इसकी फंडिंग पर सवाल उठाने के बाद अधिकारियों ने संग्रहालय को सील कर दिया. अली और अब्दुल बातेन को लखीपुर से गिरफ्तार कर पूछताछ के लिए गोलपारा सदर थाने लाया गया.

असम के विशेष पुलिस महानिदेशक जी.पी. सिंह ने एक ट्वीट में कहा, गोलपारा के मोहर अली और धुबरी के अब्दुल बातेन को हिरासत में लिया गया है. एक्यूआईएस-एबीटी के साथ उनके संबंध के बारे में आगे की जांच और पूछताछ की जाएगी.

असम पुलिस ने इस साल अप्रैल से अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के संबंध में लगभग 40 आतंकवादी संदिग्धों को गिरफ्तार किया है. आरोप लगाया गया कि इनके भारतीय उपमहाद्वीप में अल कायदा से संबद्ध (एक्यूआईएस) आतंकी समूह से संबंध थे और विशेष रूप से पश्चिमी और मध्य असम के अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में इनपर कड़ी निगरानी रखी जा रही थी. हालांकि असम सरकार की इस कार्रवाई पर अब तक सवाल उठता रहा है कि आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार लोगों ने अब तक देश और अमस को किस हद तक नुकसान पहुंचाया है ? जिसका जवाब अत तक नहीं मिला है.

रविवार को पश्चिमी असम के गोलपारा जिले के दपकरभिता क्षेत्र में मिया संग्रहालय का उद्घाटन किया गया था. आरोप लगाया गया कि शब्द मियां का इस्तेमाल ज्यादातर स्वदेशी समुदायों द्वारा बंगाली या बंगाल मूल के मुसलमानों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जो 1890 के दशक के उत्तरार्ध से असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारों पर बस गए थे, जब अंग्रेजों ने उन्हें वाणिज्यिक खेती और अन्य काम के लिए लाया था. हालांकि, मुसलमानों को बिहार के हिंदू भी मियां ही बोलते हैं.

बहरहाल,लखीपुर राजस्व मंडल का एक नोटिस, मियां संग्रहालय के दरवाजे पर चिपकाया गया, डीसी के निदेर्शानुसार गांव दपकरभिता के मोहर अली पुत्र सोमेश अली का यह पीएमएवाई-जी आवास अगले आदेश तक बंद कर दिया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलिस मियां संग्रहालय की स्थापना के लिए धन के स्रोत की जांच शुरू करेगी.

सरमा ने मीडिया से कहा, जिन लोगों ने मियां संग्रहालय स्थापित किया है, उन्हें सरकार के सवालों का जवाब देना होगा, ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह हमेशा कहते रहे हैं कि मिया कविता, मिया स्कूल का उदय गंभीर चिंता के मुद्दों को चुनौती दे रहा है.

यह देखते हुए कि इस तरह के उदाहरण स्वदेशी समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. सरमा ने कहा, जो कोई भी खुद को भारतीय नागरिक मानता है, उसे ऐसे तत्वों के खिलाफ सामाजिक और राजनीतिक रूप से एक प्रतिरोध स्थापित करने के बारे में सोचना चाहिए. असम में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों और नेताओं ने भी राज्य सरकार से प्रवासी मुसलमानों की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले संग्रहालय को ध्वस्त करने को कहा है.

भाजपा विधायक प्रशांत फुकन ने सबसे पहले राज्य सरकार से नवनिर्मित संग्रहालय को हटाने की मांग की थी. भाजपा के पूर्व विधायक, शिलादित्य देव, जो असम भाषाई अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने राज्य सरकार से संग्रहालय और इसे स्थापित करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया.

हालांकि, मियां संग्रहालय का समर्थन करते हुए, दक्षिणी असम के करीमगंज उत्तर निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक, कमलाख्या डे पुरकायस्थ ने कहा, असम में मतदान करने वाले बंगालियों की बड़ी संख्या की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने की आवश्यकता है. पूर्व कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने पहले गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में मियां संग्रहालय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था. असम के मुख्यमंत्री ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.

पर्यटकों के बीच लोकप्रिय कलाक्षेत्र बहु-जातीय असम की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है. असोम मियां (असोमिया) परिषद द्वारा स्थापित मियां संग्रहालय में, पारंपरिक खेती और लकड़ी और बांस से बनी घरेलू वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया था.

दरअसल, असम की मौजूदा सरकार मुस्लिम विरोधी बनती जा रही है. जिस तरह से मदरसों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और मुसलमानों को बांटने का प्रयास किया जा रहा है. उसकी सीएम सरमा की खूब आलोचना हो रही है. सरकार की मंशा को देखकर लगता है कि ‘आतंकवाद’ और ’देश विभाजन’ की आड़ में उन तमाम लोगों को दरकिनार करने में लगी है, जिससे आने वाले चुनावों में उनकी कुर्सी को खतरा हो सकता है. चूंकि सरमा के कार्यकाल में विकास कम और विवाद ज्यादा हुए हैं, इसलिए असम के मुसलमानों को अभी और ऐसे विवादास्पद मुद्दों को झेलने के लिए तैयार रहना होगा.