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आरएसएस प्रमुख भागवत से मुलाकात के बाद मुस्लिम बुद्धिजीवी और इमाम विवादों में

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

आरएसएस प्रमुख मोहन भागत से मिलकर पांच मुस्लिम बुद्धिजीवी और एक मस्जिद के इमाम विवादों में घिर गए हैं. विवाद कुछ इस तरह बढ़ा कि मुस्लिम समाज के बीच उनके अलग-थलग पड़ने का खतरा पैदा हो गया है. यहां तक कि एक संगठन ने बयान जारी कर भागवत से मिलने पर मुस्लिम बुद्धिजीवियांे से खुद को किनारा कर लिया है.

मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमाम के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात और उनके मदरसे दौरे को लेकर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं. देश में एक तरफ जहां कांग्रेस एवं राहुल गांधी, भाजपा सरकार एवं आरएसएस पर लगातार सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का आरोप लगा रही है, वहीं दूसरी ओर एक गुट के प्रभाव में आकर मदरसों और वक्फ संपत्तियों का सर्वे, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले को कोर्ट में घसीटने की कार्रवाई को लेकर मुसलमानों का एक गड़ा वर्ग भाजपा और भाजपा शासित सरकारों से नाराज है.

यहां तक कि आतंकवाद के नाम पर पीएफआई के खिलाफ ईडी, एनआईए की कार्रवाई के प्रति जमायत-इस्लामी भी खुले तौर पर नाराजगी व्यक्त कर चुका है. ऐसे माहौल में सांप्रदायिक साहौर्द मजबूत करने की वकालत के नाम पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बंद करने में मिलना, एक मस्जिद में जाकर इमाम और इमाम संगठन के पदाधिकारों तथा एक मदरसे में जाकर बच्चों से मुलाकात को मुसलमान संदिग्ध नजरों से देख रहे हैं.

भागवत ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद यानी 22 सिंतबर को पहले नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद जाकर अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ इमाम उमैर अहमद इलियासी के साथ मुलाकात और फिर पुरानी दिल्ली स्थित मदरसा ताज्वीदुल कुरान पहुंचकर वहां पढ़ने वाले बच्चों और पढ़ाने वाले अध्यापकों के साथ बातचीत की.

ऐसा लग रहा है कि देश के लगातार बदल रहे माहौल के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम समुदाय के साथ बातचीत, संपर्क और संवाद की जिम्मेदारी स्वयं संभाल ली है. यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है ? क्या मुस्लिमों को लेकर संघ की सोच बदल रही है और सबसे बड़ा सवाल कि इन सबके पीछे आरएसएस का एजेंडा क्या है ? आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं मोहन भागवत ? चूंकि संघ हिंदुओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि संगठन है और इसकी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित सरकारों में मुसलमानों को खास अहमितय नहीं दी जा रही है. यहां तक कि न तो चुनाव में मुसलमानों को बीजेपी का टिकट मिला और न ही राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव में महत्व. ऐसे में संदेह की खाई कुछ ज्यादा गहरा गई है.

आरएसएस की सफाई

एक न्यूज एजेंसी ने विरोधियों द्वारा उठाए जा रहे तमाम सवालों का जवाब संघ के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में संघ में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख का दायित्व संभाल रहे सुनील आंबेकर से जानने की कोशिश की.

बातचीत में सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ रहा है. हमारा मानना है कि सभी को कट्टरता का विरोध करना चाहिए. मिल कर समाज में सौहार्द कायम करने के लिए प्रयास करने चाहिए. यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है.

आंबेकर ने आगे कहा कि किसी भी प्रकार की पूजा पद्धति पर संघ को कभी भी कोई एतराज नहीं रहा. उन्होंने संघ प्रमुख भागवत की मुलाकात पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए साफ किया कि संघ तो हमेशा देश और समाज के हित को लेकर चर्चा करने के लिए तैयार है. इसके लिए संघ के दरवाजे हमेशा खुले रहे हैं. अयोध्या मुद्दे के समय भी हमने सभी से चर्चा की थी. यहां तक कि अदालत का फैसला आने के समय भी हमने जश्न नहीं मनाने का आह्वान किया. इसे पूरी तरह से फॉलो भी किया.

संघ नेता ने आगे कहा कि देश में सौहार्द कायम करने के उपायों पर चर्चा के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के लोग हमसे मुलाकात कर रहे हैं. करना चाहते हैं और संघ इस तरह की चर्चाओं के लिए हमेशा तैयार रहा है. इसमें नया कुछ भी नहीं है.सरसंघचालक समाज जीवन के विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलते रहते हैं. यह भी इसी सतत चलनेवाली संवाद प्रक्रिया का हिस्सा है.

करीब आने की पुरानी कोशिश

वहीं आरएसएस के वरिष्ठ नेता, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक एवं मुख्य सरंक्षक इंद्रेश कुमार ने कहा कि संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन के कार्यकाल से ही देश के मुस्लिम और ईसाई इस बात के लिए लगातार संपर्क कर रहे हैं कि वो संघ को सियासी और मजहबी नेताओं के जरिए नहीं बल्कि स्वयं बातचीत कर समझना चाहते हैं. इसलिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन किया गया, जो कि मुस्लिम समुदाय से बातचीत करने का एक सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म बना.

वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी मुलाकात और संवाद के लिए इस तरह के अनुरोध लगातार इन समुदायों की तरफ से किए जा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह के अनुरोध पर संघ प्रमुख ने 22 अगस्त को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी और अखिल भारतीय इमाम संगठन प्रमुख के निमंत्रण पर संघ प्रमुख आज, 22 सितंबर को उनसे मिलने दिल्ली स्थित उनके घर पर गए थे.

जाहिर तौर पर संघ यह कह रहा है कि संघ प्रमुख भागवत इमाम इलियासी से मिलने के लिए उनके घर गए थे जो दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर है. हालांकि सबसे बड़ी बात यह है कि आने वाले दिनों में इस तरह की कई मुलाकातें और दौरे हमें बार-बार देखने को मिल सकते हैं और सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि देश के ईसाई घर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों के साथ भी संघ प्रमुख भागवत मुलाकात कर सकते हैं. बताया जा रहा है कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत, संवाद और संपर्क बनाए रखने के लिए आरएसएस ने चार वरिष्ठ नेताओं की एक टोली का भी गठन किया है जिसमें इंद्रेश कुमार के अलावा डॉ कृष्णगोपाल, मनमोहन वैद्य और रामलाल जैसे वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया है.

अटल चाहते थे मुसलमानों को भाजपा के करीब लाना

दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने अपने प्रति देश के अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिम समुदाय की सोच को बदलने को लेकर शायद पहली बार संस्थागत और व्यापक स्तर पर सोचना और रणनीति पर अमल करना शुरू किया था. उस समय तक रामजन्मभूमि मंदिर यानी अयोध्या का विवाद लटका हुआ था और यह किसी को भी नहीं पता था कि इसका समाधान कैसे होगा क्योंकि कई राजनीतिक दलों के समर्थन की बैशाखी पर टिकी अटल सरकार ने इस मुद्दें को ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

अटल सरकार के दौरान ही यह भी सोचा गया कि भाजपा परिवार के प्रति मुस्लिमों की सोच बदलने के लिए आरएसएस के फ्रंट पर भी प्रयास करने की जरूरत है और अटल सरकार के सत्ता में रहने के दौरान ही संघ ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की और इसकी कमान अपने एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता इंद्रेश कुमार को सौंपी. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने देश भर में हजारों कार्यक्रम करके मुस्लिम समुदाय के साथ ईसाईयों के साथ भी संवाद स्थापित किए, कार्यक्रम किए और उसे कई मोचरें पर अहम कामयाबी भी मिली.
हालांकि भागवत से मुलाकात के बाद इलियासी विवादों में घिर गए हैं. संघ जहां बुलावे पर भागवत का उनके पास जाना बता रहा है, वहीं इलियासी बता रहे हैं कि वह खुद उनके पिता की पुण्यतिथि पर उनसे मिलने आए थे. यह मुलाकात व्यक्तिगत है. इलियासी की भागवत को राष्ट्रपिता और राष्ट्र ऋषि बताते पर भी उनकी खूब खिंचाई हो रही है.

आरएसएस प्रमुख से मुलाकात के बाद अफवाह का दौर

उधर, आरएसएस प्रमुख के साथ पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बैठक से आईएमपीएआर ने पल्ला झाड़ लिया है. मुसलमानांे के इस संगठन के अध्यक्ष एमजे खान ने एक बयान जारी कर कहा है कि इस मामले में उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर अफवाहों का नया दौर शुरू हो गया है. उन्हांेने स्पष्टिकरण देते हुए कहा कि यह पूर्णतया आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण प्रचार है. इस मीटिंग में इनके संगठन की कोई भूमिका नहीं है. इन बुद्धिजीवियों ने लगभग एक साल पहले आईएमपीएआर से अलग होकर एक नई संस्था बना ली थी. वे चाहते थे कि उनका संगठन आरएसएस और बीजेपी के साथ जुड़े, जबकि मेरा मत था कि सरकार के साथ बातचीत की जाए न कि आरएसएस,बीजेपी के साथ. परिणामस्वरूप, इन पांचों सहित सात व्यक्तियों ने इम्पार छोड़ दिया, और एक नया समूह बना लिया. यहां तक ​​कि उन्होंने इम्पार के प्रमुख अधिकारियों को भी तोड़ लिया. आज इस नए समूह पर आरोप लगाने के बजाय कुछ अफवाह फैलाने वाले तत्व फिर से इम्पार को घसीट रहे है.

मैं स्पष्ट कर दूं कि आईएमपीएआर का कोई राजनीतिक झुकाव नहीं है. इसका गठन कोरोना जिहाद संकट से निपटने के लिए एक आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली के रूप में किया गया था. संकट की अवधि समाप्त होने के बाद हम इसे बंद करने के इच्छुक थे, लेकिन कई सदस्यों ने इसकी निरंतरता की वकालत की और जागरूकता कार्यक्रम, मीडिया प्रबंधन और आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इसके काम को फिर से शुरू करने की वकालत की. आईएमपीएआर उसी एजेंडे पर काम कर रहा है. यह एकमात्र संगठन है जो मासिक प्रगति रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें इम्पार के हर छोटे बड़े काम का विवरण होता है, लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि क्या पढ़े-लिखे मुसलमान झूठे आरोप लगाना, आधारहीन अफवाहें फैलाना और दुष्प्रचार करना ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य समझते हैं.

बता दूं कि भागवत से मिलने वाले बुद्धिजीवियों में एएमयू के पूर्व कुलपति जमीरूद्दीन शाह, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, कभी उर्दू के प्रखर पत्रकार रहे शाहिद सिद्दीकी, उद्यमी सईद शेरवानी सचित पांच लोग थे. आईएमपीएआर के इनसे पल्ला झाड़ने के बाद तथाकथित मुसलमानों के इन ठेकारों की कलई खुल गई है.

असदुद्दीन ओवैसी हैं खफा

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करने वाले पांच मुस्लिम नेताओं पर जमकर निशाना साधा.

ओवैसी ने कहा कि ये नेता कुलीन हैं और जमीनी हकीकत से बहुत दूर.ओवैसी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ये लोग गए और उनसे (भागवत) मिले. पूरी दुनिया आरएसएस की विचारधारा को जानती है, और आप जाकर उनसे मिले. मुस्लिम समुदाय का यह कुलीन वर्ग, जो कुछ भी करता है, वह सच है. लेकिन जब हम अपने मौलिक अधिकारों के लिए राजनीतिक रूप से लड़ते हैं, तो हमें गलत तरीके से दिखाया जाता है.

ओवैसी ने आगे कहा, यह अभिजात वर्ग, जो सोचता है कि यह बहुत जानकार है और जमीनी वास्तविकता से कोई संपर्क नहीं है, वे आराम से रह रहे हैं, और वे जाकर आरएसएस प्रमुख से मिलते हैं. यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है. मैं इस पर सवाल नहीं उठाता, लेकिन उन्हें भी हमसे सवाल करने का अधिकार नहीं है.

भागवत मुस्लिम नेताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. आज उन्होंने अखिल भारतीय इमाम संगठन के मुख्य मौलवी उमर अहमद इलियासी से दिल्ली की एक मस्जिद में मुलाकात की. बंद दरवाजे के पीछे हुई बैठक एक घंटे से अधिक समय तक चलने की सूचना है.

उधर, कुरैशी ने भागवत के साथ बैठक का ब्योरा देते हुए कहा कि भागवत देश के हालात को लेकर चिंतित हैं. कुरैशी ने भागवत के हवाले से कहा, मैं असामंजस्य के माहौल से खुश नहीं हूं. यह पूरी तरह से गलत है. देश सहयोग और एकजुटता से ही आगे बढ़ सकता है.

पूर्व सीईसी के अनुसार, भागवत ने कुछ ऐसे बिंदु साझा किए जो विशेष रूप से गोहत्या के लिए विशेष रूप से चिंता का विषय थे, जो उन्होंने कहा, हिंदुओं को परेशान करता है. कुरैशी ने खुलासा किया, इसलिए, हमने कहा कि यह देश भर में व्यावहारिक रूप से प्रतिबंधित ह. मुसलमान कानून का पालन करने वाले हैं और अगर कोई इसका उल्लंघन करता है, तो यह बहुत बड़ी गलती है और सजा होनी चाहिए.