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मुस्लिम संगठनों की सुप्रीम कोर्ट से उम्मीदें कम, वक्फ संशोधन विधेयक पर संघर्ष का मूड साफ

मुस्लिम नाउ ब्यूरो | नई दिल्ली

क्या वक्फ संशोधन विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी उन पूर्व फैसलों की तरह ही होगा, जो मुसलमानों की अपेक्षाओं के विपरीत रहे हैं? तीन तलाक, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद, अनुच्छेद 370, सीएए-एनआरसी जैसे अहम मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों के बाद मुस्लिम संगठनों में निराशा और अविश्वास का भाव बढ़ा है। अब यही आशंका वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर भी उठ रही है।

इस मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अगुवाई में कई मुस्लिम संगठन विरोध के लिए एकजुट हैं। दिल्ली से लेकर कोलकाता तक धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में इसी विरोध के दौरान दंगा भड़क गया, जिसे लेकर राज्य सरकार और केंद्र के अपने-अपने पक्ष हैं।

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून के पक्ष और विपक्ष में दाखिल याचिकाओं पर दो दिन पहले सुनवाई शुरू हुई। अदालत ने फिलहाल एक सप्ताह के लिए नए वक्फ कानून के अमल पर रोक लगा दी है, जिसे मुस्लिम संगठन एक सकारात्मक संकेत मान रहे हैं, लेकिन पूर्ण विश्वास नहीं जता रहे।

भरोसे से ज़्यादा सतर्कता

मुस्लिम संगठनों के भीतर यह भावना बनी हुई है कि उन्हें एक रणनीति के तहत अदालतों में उलझाकर बाद में उनके विरुद्ध फैसले लिए जाते हैं। मौलाना अरशद मदनी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे कई नेता अतीत के ऐसे फैसलों पर सवाल उठा चुके हैं। इस बार वे केवल अदालती लड़ाई पर भरोसा करने को तैयार नहीं दिखते।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने आधिकारिक हैंडल पर बयान जारी कर कहा है:
“वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक स्वागत योग्य है, लेकिन जब तक पूरी तरह से न्याय नहीं मिलता, संघर्ष जारी रहेगा।”

वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने कहा:
“हमें सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है, लेकिन हमारी लड़ाई हर मोर्चे पर जारी रहेगी। यह नया कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की कोशिश है। इसमें गैर-मुस्लिमों की भागीदारी, ‘वक्फ बाय यूजर’ की समाप्ति और कलेक्टर द्वारा वक्फ की स्थिति बदलने जैसे प्रावधान असंवैधानिक हैं।”

आंदोलन का बदलता रूप

इस आंदोलन के भीतर जोश और बेचैनी का माहौल बढ़ता दिख रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के एक युवा नेता का वीडियो सामने आया है, जिसमें वह कहता है:
“मुसलमान अपने बुजुर्गों के फैसले का इंतज़ार कर रहा है। अगर वह ऐलान हो गया, तो हर एक शख्स सड़क पर होगा, और फिर आप हमें नहीं रोक पाएंगे।”
यह बयान इस बात का संकेत देता है कि मामला अब केवल संवैधानिक या कानूनी नहीं, भावनात्मक और सामाजिक उबाल की ओर भी बढ़ रहा है।

एकजुटता बनाम विभाजन की कोशिशें

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि पसमांदा-अशराफ, सूफीवाद-वहाबी जैसे मुद्दों को उछाल कर इस आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन मौजूदा माहौल में मुस्लिम संगठनों की एकजुटता इन आंतरिक भेदों को पीछे छोड़ती दिख रही है।

क्या यह आंदोलन किसान आंदोलन की तर्ज पर जाएगा?

आंदोलन की तीव्रता और व्यापकता को देखते हुए यह कयास लगाए जा रहे हैं कि मुस्लिम संगठन इस बार सरकार को पीछे हटने पर मजबूर करने के इरादे से मैदान में हैं – ठीक उसी तरह जैसे किसान आंदोलन में देखा गया था।

निष्कर्ष

वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। हालांकि अदालत का अंतरिम आदेश मुस्लिम संगठनों के लिए राहत लेकर आया है, फिर भी उनके भीतर संघर्ष की भावना प्रबल है। इस मुद्दे ने कानूनी लड़ाई से आगे बढ़कर सामाजिक आंदोलन का रूप ले लिया है, और अगर सरकार ने संवेदनशीलता न दिखाई, तो आने वाले दिनों में यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है।

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