नागपुर बुलडोजर विवाद: कानूनी चेतावनी, प्रशासनिक चूक और सामाजिक असर
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मुस्लिम नाउ,नई दिल्ली/नागपुर
महाराष्ट्र के नागपुर में हाल ही में हुई हिंसा के बाद प्रशासन की ओर से बुलडोजर कार्रवाई को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। मुस्लिम समुदाय के कुछ आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने सख्त रुख अपनाया है और इस कार्रवाई पर रोक लगाते हुए 15 अप्रैल तक सरकार और नगर निगम से जवाब मांगा है।
क्या है मामला?
नागपुर में सांप्रदायिक तनाव के बाद प्रशासन ने हिंसा में कथित रूप से शामिल मुस्लिम समुदाय के कुछ आरोपियों के घरों को ध्वस्त कर दिया। सबसे प्रमुख रूप से फहीम खान के घर को बुलडोजर से गिरा दिया गया। प्रशासन का कहना है कि यह निर्माण अवैध था, लेकिन कोर्ट ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने प्रशासन से पूछा कि क्या भारत के नागरिकों को बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए इस तरह बेघर किया जा सकता है?
न्यायपालिका की सख्त टिप्पणी
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में चल रही सुनवाई के दौरान एडवोकेट अश्विन इंगोले ने बताया कि अदालत ने प्रशासन से सवाल किया कि क्या आरोपी भारत का नागरिक नहीं है? सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी मकान को गिराने से पहले 15 दिन की नोटिस अवधि अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं दी गई। अदालत ने न केवल बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाई है, बल्कि प्रशासन को चेताया है कि अगर ऐसी कार्रवाई दोबारा होती है, तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी।
किसी भी नागरिक के लिए छत/घर उसकी बुनियादी जरूरत है.
— Tarique Anwar Champarni (@Champarni_Tariq) March 24, 2025
अगर कोई बेघर है तो उसे छत/घर देने की जिम्मेदारी सरकार की है.
लेकिन हमारी सरकार घर देने से ज्यादा घर छीनने पर विश्वास करती है. #NagpurViolence के बाद आरोपी फहीम खान के घर पर बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिया गया है. pic.twitter.com/wt4MI5c1m2
प्रशासनिक लापरवाही या राजनीतिक रणनीति?
विशेषज्ञों का मानना है कि बुलडोजर राजनीति हाल के वर्षों में एक ट्रेंड बन गई है, खासकर भाजपा शासित राज्यों में। प्रशासन कानून व्यवस्था को सख्त करने के बजाय सीधे मकान गिराने की कार्रवाई कर रहा है, जिससे न्याय प्रक्रिया को दरकिनार किया जा रहा है। सवाल यह भी उठता है कि विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई, जबकि हिंसा भड़काने में उनकी भूमिका की भी चर्चा हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट पहले भी जता चुका है आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को लेकर राज्य सरकारों को फटकार लगा चुका है। अदालत का स्पष्ट मत है कि कानून के बिना किसी भी नागरिक की संपत्ति को ध्वस्त करना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि किसी सरकारी अधिकारी द्वारा किसी का घर अवैध रूप से तोड़ा जाता है, तो उसे अपनी जेब से मुआवजा देना होगा।
नागपुर: न्यायालय ने महाराष्ट्र के प्रधान सचिव और नागपुर नगर आयुक्त से 15 अप्रैल तक बुलडोजर कारवाई पर जवाब मांगा
— The Muslim Spaces (@TheMuslimSpaces) March 24, 2025
मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने #NagpurViolence मामले में मुस्लिम आरोपियों के घरों को गिराने पर रोक भी लगा दी है। कथित "मास्टरमाइंड" फहीम खान के घर पर बुलडोजर की… https://t.co/mtN01gJeMY pic.twitter.com/9uAG263cX6
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
इस पूरे मामले पर सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। पत्रकार तारिक अनवर ने ट्वीट किया, “किसी भी नागरिक के लिए घर उसकी बुनियादी जरूरत है। सरकार का कर्तव्य है कि वह बेघरों को घर दे, न कि किसी का आशियाना उजाड़े।”
मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि प्रशासन एकतरफा कार्रवाई कर रहा है और इसका उद्देश्य केवल एक विशेष समुदाय को टारगेट करना है। वहीं, भाजपा समर्थकों का कहना है कि यह कार्रवाई कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक थी।
काबिल ए गौर
नागपुर बुलडोजर विवाद भारत में कानून और न्याय प्रणाली को लेकर एक गंभीर बहस छेड़ चुका है। क्या सरकारें इस तरह की कार्रवाई को रोकने के लिए नए दिशानिर्देश बनाएंगी? क्या प्रशासन इस मुद्दे पर जवाबदेह होगा? यह सवाल आने वाले दिनों में और भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। फिलहाल, सभी की निगाहें 15 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं।