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जमीयत उलेमा ए हिंद का राष्ट्रीय महाधिवेशन पहले ही दिन राह से भटका, रोजगार-शिक्षा पर बात करने की जगह मुस्लिम युवाओं को डराने की कोशिश

मुस्लिम नाउ ब्यूरो / नई दिल्ली

‘बहुत शोर सुनते थे हाथी के दुमका, जो देखा तो गज भर की रस्सी निकली.’ नई दिल्ली के रामलीला मैदान में शुक्रवार देर शाम शुरू हुए जमीयत उलेमा ए हिंद के तीन दिवसीय 34 वें राष्ट्रीय अधिवेशन को लेकर मुस्लिम जगत में काफी उत्सुकता थी. मगर जमीयत के राष्ट्रय अध्यक्ष महमूद मदनी का संबोधन और पहले दिन के पहले सत्र में पेश किए गए राजनीतिक प्रस्ताव ने मुसलमानों को निराशा से भर दिया. इस दौरान एक भी ऐसी बात नहीं कही गई, जिससे मुसलमानों को राहत पहुंचे.

यहां तक कि जमीयत के अधिवेशन को संबोधित करते हुए इसके असम के मुखिया और सांसद बदरूद्दीन अजमल ने उनके प्रदेश में मुसलमानों के खिलाफ हो रही ज्यादतियों भी एक शब्द नहीं बोले. अभी असम में बाल विवाह के नाम पर असम सरकार ने एक तरह से मुस्लिम विरोधी रूख अपनाया हुआ है. इससे पहले मदरसा, अतिक्रमण और आतंकवाद के आड़ में मुसलानों को निशाना बनाने की कोशिश की गई. मगर अपने संबोधिन में अजमल इन तमाम महत्वपूर्ण मुददों को खा गए.

बीजेपी तकरीबन नौ साल पहले जब सत्ता में आई थी तो नौकरी देने, रोजगार बढ़ाने और महंगाई-भ्रष्टाचार दूर करने का वादा किया था. पिछले नौ सालों में इसपर कोई ठोस काम नहीं हुआ. यहां तक कि अडाणी के मामले को अब तक का सबसे बड़ा भ्रष्ट्रचार बताया जा रहा है. मगर इन सब जरूरी मुददों से इतर पिछले नौ वर्षों में सिवाए तीन तलाक, राम मंदिर, अनुच्छेद 370, ताज महल, कुतुब मीनार, जनसंख्या नियंत्रण, कॉमन सिविल कोड, हिजाब जैसे मुददों को उछालकर देश-समाज में हलचल पैदा करने के सिवाए देश को आगे ले जाने वाला कोई प्रयास नहीं किया गया. इस नौ साल में हर मौके को उत्सव बनाकर लोगों का ध्यान बटाने की कोशिश की गई. मगर जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रस्ताव में इनपर कोई बात नहीं कही गई.

आजकल मुस्लिम नेताओं में मुस्लिम युवाओं को डराने का चलन पैदा हो गया है. कुछ दिनों से आरएसएस से दोस्ती बढ़ाने के नाम पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व पत्रकार शाहिद सिद्दी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति जमीरूद्दीन शाह यही कर रहे हैं. जमीयत उलेमा ए हिंद हिंदुस्तान का सबसे बड़ा मुस्लिम संगठन है, पर पिछले कई सालों से यह भी वही सब कर रहा है. जमीयत के 34 वें अधिवेशन में सियसत और रोजी-रोजगार में हिस्सेदारी बढ़ाने की कोई बात नहीं हुई. आरएसएस और दोस्ती बढ़ाने में यकीन रखने वालों के मुंह से अब तक यह नहीं निकला कि यदि उसे मुसलमानों का वोट चाहिए तो सियासत, सत्ता और रोजी-रोजगार में हिस्सेदारी देनी होगी. इसके उलट बीजेपी और संघ मुसलमानों के बीच पहले शिया-सुन्नी के नाम पर फूट डालने करते रहे.

बात नहीं बनी तो अब अगड़े और पिछड़े का खेल खेला जा रहा है. यहां तक कि बीजेपी और संघ का शीर्ष नेतृत्व पिछड़े मुसलमानों को हक दिलाने के नाम पर सर्वजनिक रूप से बातें करता है. मगर जब देने की बारी आती है तो उन्हें ठेंगा दिखा दिया जाता है. इसका ताजा उदाहरण राष्ट्रीय बजट है. बनारस के बुनकरों को राहत देने वाली एक भी घोषणा नहीं की गई. मदरसे और स्कॉलरशिप का लाभ अधिकतर पिछड़े मुसलमान के बच्चे उठाते हैं. इसमें भी भारी कटौती कर दी गई. मौलाना आजाद के नाम की स्कॉलरशिप बंद कर दी गई.

जमीयत उलेमा हिंद के प्रस्ताव में ये अहम मुददे भी शामिल नहीं किए गए, जिससे लगता है कि मैच किसी और के नाम पर फिक्स है. जमीयत यह जाहिर करने का प्रयास कर रही है कि देश का सारा मुसलमान राह भटक गया है और भारत के सारे हिंदू मुस्लिम विरोधी हो गए हैं. डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में चंद घटनाओं को मुस्लिम संगठन ऐसे पेश करते हैं, जैसे भारत में रहना मुसलमानों के लिए दुश्वार हो गया है.

इन मुददों पर चर्चा करने की जगह प्रस्ताव पास कर कहा गया कि मुस्लिम युवा और छात्र इस समय आंतरिक और बाहरी देशद्रोही तत्वों के सीधे निशाने पर हैं. जिहाद के नाम पर उन्हें हताश करने, उकसाने और भड़काने के लिए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. ऐसे हालात से वह बिलकुल निराश न हों. धैर्य रखें.

इस अवसर पर मौलाना अरशद मदनी ने खुशी का इजहार करते हुए कहा, देश की मौजूदा स्थिति मुसलमानों के लिए चिंता है, पर इससे हमें घबराना नहीं चाहिए. हमें संविधान पर चल कर ही इसका मुकाबला करना है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद प्रमुख महमूद मदनी ने कहा कि भारत मुसलमानों की मातृभूमि है. यह कहना कि इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो बाहर से आया है, सरासर गलत और निराधार है. उन्होंने कहा कि इस्लाम सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है. हिंदी मुसलमानों के लिए भारत सबसे अच्छा देश है.

जमीयत उलेमा ए हिन्द असम के अध्यक्ष और सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि हम भारत के वासी हैं. हमें संविधान पर चलना है. हम यहीं पैदा हुए और एक रोज इसी की मिट्टी में सो जाना है.मौके पर जमीयत ए अहले हदीस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना असगर मदनी की मौजूद थे.

मौलाना हकीमुद्दीन कासमी सचिव जमीयत उलेमा ए हिन्द ने प्रस्ताव पेश करते हुए जोर दिया कि तथाकथित शक्तियां इस्लाम के नाम पर जिहाद की व्याख्या आतंकवाद और हिंसा फैलाने के लिए करती हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से एजेंसियों की नजर में जो संदेहास्पद और संदिग्ध हैं. उनसे असहमति और दूरी बनाए रखना हमारे युवाओं और छात्रों की सुरक्षा और भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. नौजावानों को इस हवाले से चेताते हुए कहा कि जाने-अनजाने में थोड़ी सी लापरवाही उनके पूरे परिवार को बर्बाद कर सकती है.

बढ़ते इस्लामोफोबिया पर चिंता

प्रस्ताव पेश करते हुए मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने कहा कि देश में इस्लामोफोबिया और मुसलमानों के विरुद्ध नफरत और उकसाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. सबसे दुखद बात यह है कि यह सब सरकार की आंखों के सामने हो रहा है.

अंतरराष्ट्रीय संगठनों, देश की सिविल सोसायटियों की रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि चेतावनी के बावजूद सत्ता में बैठे लोग इन घटनाओं की रोकथाम के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, कई भाजपा के नेता, विधायक और सांसद के नफरत भरे बयानों से देश का माहौल खराब हो रहा है. जिसके कारण देश की आर्थिक और व्यापार प्रभावित हो रहा है. ऐसे हालात में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द देश की संप्रभुता को मद्देनजर रखकर देश की मौजूदा सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है.

सरकार ऐसे काम पर रोक लगाए जो लोकतंत्र, न्याय और समानता की आवश्यकताओं के विरुद्ध हैं. इस्लाम से शत्रुता पर आधारित हैं.

नफरती मीडिया पर कार्रवाई की मांग

प्रस्ताव में कहा गया है,नफरत फैलाने वाले तत्वों और मीडिया पर बिना किसी भेदभाव के कठोर कार्रवाई की जाए. विशेषकर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता और उचित टिप्पणियों के बाद इस संबंध में लापरवाही बरतने वाली एजेंसियों के विरुद्ध कार्रवाई करें और दंडित किया जाए.

हिंसा से समाज में नफरत पैदा करने, लोगों को उकसाने वालों पर जमीयत के जिम्मेदार ने कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ एक अलग कानून बनाया जाए.

देश में समरसता को बढ़ावा देने के लिए नेशनल फाउंडेशन फॉर कम्युनल हार्मनी और नेशनल इंटेगरल काउंसिल को सक्रिय किया जाए. इसके तहत कार्यक्रम किए जाएं. विशेषकर सभी धर्मों के चार प्रभावशाली लोगों की संयुक्त बैठक और सम्मेलन आयोजित किए जाएं.

चरमपंथी से मुकाबला करने पर जोर

मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का यह महाधिवेशन सभी न्यायप्रिय दलों और राष्ट्र हितैषी व्यक्तियों से अपील करता है कि वह प्रतिक्रियावादी और भावनात्मक राजनीति के बजाय एकजुट होकर चरमपंथी और फासीवादी शक्तियों से राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मुकाबला करें और देश में भाईचारा, आपसी सहिष्णुता और न्याय की कायम करने के लिए हर संभव कोशिश करें.

इस्लाम और पैगंबर के अपमान पर अंकुश

जमीयत के सचिव ने मीडिया के जरिये समाज में मुसलमानों की छवि को खराब तरीके से पेश कर दिखाए जाने पर चिंता जाहिर किया जा रहा है. उन्होंने ने कहा कि देशव्यापी स्तर पर इस्लामी शिक्षाओं और मुसलमानों की छवि को धूमिल करने के लिए संगठित प्रयास किए जा रहे हैं और उन्हें लोगों के दिमाग पर थोपने के लिए मीडिया और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है. कुछ खबरिया चैनल जानबूझकर मुसलमानों के धार्मिक मामलों को एजेंडा बनाकर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं और पक्षकार बन कर इस्लाम और मुसलमानों को नीचा दिखाने की नापाक कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ सरकार सख्त कदम उठाए.

जमीयत के महासचिव ने प्रस्ताव के माध्यम से मुसलमानों से अपील किया कि मीडिया और सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे उन अपमान सूचक कार्यक्रमों से प्रभावित न हों और न ही उदास हों. धार्मिक मार्गदर्शन के लिए विश्वसनीय उलेमा से संपर्क करें.

सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा से कैसे लड़े?

जमीयत उलेमा ए हिन्द ने सोशल मीडिया पर इस्लाम के खिलाफ चलाए जा रहे प्रोपगंडा, इस्लाम की गलत छवि पेश करने वाले का जवाब देने और इस्लामी शिक्षाओं को फैलाने के लिए नौजवानों को उसके विरुद्ध जवाब देने को आवश्यक करार दिया है. इसके साथ ही जमीयत ने इसके लिए उपाय भी बताएं हैं. जिसमें सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लाम की अच्छाइयों और मुसलमानों की सही भूमिका को उजागर करना और जो गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं, मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उनके जवाब प्रस्तुत करना, आधुनिक शिक्षा युक्त मन में पल रहे नास्तिक विचारों को सुधारने के लिए उनके स्वभाव के अनुकूल सामग्री एकत्र करना और समय-समय पर प्रशिक्षण सभाएं आयोजित करना, सीरत (पैगंबर साहब की जीवनी) के विषय पर इस्लामिक क्विज आयोजित करना और उसमें सभी धर्मों के छात्र-छात्राओं को शामिल करना, पर्यावरण संतुलन जलवायु परिवर्तन और असंतुलित विकास के लिए लोगों को जागरूक करना आदि शामिल हैं.

देश के कोने कोने से पहुंचे जमीयत के कार्यकर्ता

जमीयत के पहले दिन के प्रोग्राम में देश के सभी हिस्से बिहार, यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आसाम, हरियाणा, पंजाब, हैदराबाद आदि जगहों से हजारों की संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे हैं. जिसमें मुख्य रूप से जमीयत के उपाध्यक्ष मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनौरी, मौलाना सलमान मंसूरपुरी, जमीयत अहले हदीस हिंद के अमीर मौलाना असगर अली इमाम मेहदी सलफी, मौलाना मुफ्ती सैयद मोहम्मद अफ्फान मंसूरपुरी, मौलाना बदरुद्दीन अजमल कासमी, मुफ्ती शमसुद्दीन बायली, हजरत मौलाना रहमतुल्लाह मीर कश्मीरी, जमीयत उलेमा बिहार के अध्यक्ष मुफ्ती जावेद इकबाल साहब, जमीयत उलेमा कर्नाटक के अध्यक्ष मुफ्ती इफ्तिखार अहमद कासमी, जमीयत उलेमा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हाजी हारून साहब, मौलाना नियाज फारूकी आदि के नाम शामिल हैं.