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एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों से ‘बाबरी मस्जिद’ को हटाया, ऐसे नहीं मिटता इतिहास !

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

क्या किताबों के चंद पन्ने बदल देने से इतिहास मिट जाता है ? जवाब होगा नहीं. मगर इसकी परवाह किए बगैर एनसीईआरटी ने देश के मुसलमानों से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना को फिर से पाठ्यपुस्तक से हटा दिया. जबकि उसे पता है, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो वर्डिक्ट दिए हैं, वह रहती दुनिया तक कायम रहेगी.

बहरहाल, एक महत्वपूर्ण खबर है कि एनसीईआरटी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने राम जन्मभूमि आंदोलन का अधिक व्यापक विवरण देने के लिए कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक को संशोधित किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ये संशोधन 2024-2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए एनसीईआरटी के स्कूल पाठ्यपुस्तक संशोधन का एक हिस्सा हैं, जिसे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के साथ साझा किया गया है.एनसीईआरटी की बारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में अयोध्या विवाद और 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एक अध्याय है, जिसने ध्वस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, पाठ्यक्रम में अब राम जन्मभूमि आंदोलन को प्राथमिकता दी गई है. संशोधित पाठ्यपुस्तक एक माह के भीतर वितरित कर दी जाएगी.मूल पुस्तक के अध्याय 8, स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति को बदल दिया गया है. अयोध्या विवाद पर एक चार पेज का खंड (पृष्ठ 148-151) मूल अध्याय में पाया जा सकता है. यह उन घटनाओं की शृंखला की रूपरेखा प्रस्तुत करता है जिनके कारण बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, दोनों पक्षों की लामबंदी, और 1986 में ताले खोले गए. इसमें सांप्रदायिक हिंसा, विध्वंस के परिणाम, राष्ट्रपति शासन पर भी चर्चा की गई है. भाजपा शासित राज्य, और धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर बहस है.

हालांकि इस खंड का संशोधित संस्करण आसानी से उपलब्ध नहीं है. एनसीईआरटी ने खुलासा किया है कि इसे बदल दिया गया हैण् इसकी सामग्री राजनीति में नवीनतम विकास के अनुसार अद्यतन की गई है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा किए गए नवीनतम संशोधनों के परिणामस्वरूप अयोध्या मुद्दे पर पाठ का व्यापक संशोधन हुआ है.

बाबरी मस्जिद का उल्लेख दो अतिरिक्त स्थानों से हटा दिया गया है. अध्याय के अंत में एक अभ्यास और शुरुआत में सारांश.मूल पुस्तक का सारांश अब इस प्रकार है, राजनीतिक लामबंदी की प्रकृति के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन की विरासत क्या है? के स्थान पर “राजनीतिक लामबंदी की प्रकृति के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन और अयोध्या विध्वंस की विरासत क्या है?”

हालांकि, ईमानदारी से इस पाठ्यपुस्तक में यह भी जोड़ना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था ?, जिसका जिक्र हमेशा मुस्लिम बुद्धिजीवि करते हैं. फैसला सुनाने वाला जज किस राजनीतिक दल में चला गया और पुराने ‘गड़े मुर्दे’ नहीं उखाड़ने के आदेश के बावजूद मथुरा, काशी और दूसरी मस्जिदों के मामले क्यों उछाले जा रहे हैं? यदि बच्चों को सही इतिहास की जानकारी नहीं मिलेगी तो उनके नैतिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ने का खतरा है. क्यों कि अब सारी चीजें डोमेन में हैं और इस बारे में कोई भी कभी भी जमाम जानकारियां निकाल सकता है.

बहरहाल,नया संशोधन 2014 के बाद से एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों के अपडेट और संशोधन के चैथे सेट का हिस्सा हैं. तत्कालीन एनसीईआरटी निदेशक, हृषिकेश सेनापति ने कहा था कि पाठ्यपुस्तकों को नवीनतम विकास के साथ अद्यतन करने की आवश्यकता है. पहला दौर, जो हुआ 2017 में, इसे संशोधन के बजाय समीक्षा के रूप में संदर्भित किया गया था. वर्ष 2018 में संशोधनों के दूसरे चरण की शुरुआत देखी गई, जिसे पाठ्यपुस्तक युक्तिकरण कहा गया, जिसका उद्देश्य छात्रों पर पाठ्यक्रम के बोझ को कम करना बताया गया था.

एनसीईआरटी के अनुसार, वर्तमान राजनीतिक घटनाओं और नाजुक विषयों को प्रतिबिंबित करने के लिए पाठ्यक्रम को अद्यतन करने की आवश्यकता है.एनसीईआरटी प्रत्येक वर्ष 4 करोड़ से अधिक छात्रों द्वारा उपयोग की जाने वाली पाठ्यपुस्तकों को बनाने के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च प्राधिकरण है. एनसीईआरटी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देती है.