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धर्मस्थलों की खुदाई का नया अध्याय: बौद्ध अनुयायी उठाने लगे 84,000 मठों का मुद्दा

मुस्लिम नाउ विशेष

भारत में धार्मिक विवाद अब नए मोड़ पर पहुंच गया है. मस्जिदों और दरगाहों के नीचे मंदिरों की तलाश के बाद अब मंदिरों के नीचे बौद्ध मठों की खोज का सिलसिला शुरू हो गया है. नवबौद्ध समुदाय ने देश में बौद्ध मठों की संख्या, जो 84,000 बताई जाती है, का हिसाब मांगना शुरू कर दिया है. इस पूरे विवाद का केंद्र अब महाबोधि मंदिर और उससे जुड़े प्रबंधन अधिकारों की ओर मुड़ गया है.

महाबोधि मंदिर का महत्व और प्रबंधन विवाद

बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है. इसे बौद्ध धर्म का मक्का कहा जाता है, क्योंकि यहीं पर राजकुमार सिद्धार्थ ने तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था और भगवान बुद्ध कहलाए. इस ऐतिहासिक स्थल पर वह पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है, जिसके नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी.

महाबोधि मंदिर का प्रबंधन एक छह-सदस्यीय


समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें गया के जिला अधिकारी पदेन अध्यक्ष होते हैं. इस समिति में दो सदस्य हिंदू समुदाय से आते हैं. बौद्ध समुदाय लंबे समय से यह मांग कर रहा है कि महाबोधि मंदिर के प्रबंधन का पूरा अधिकार उन्हें दिया जाए, जैसा कि मक्का का प्रबंधन मुसलमानों के पास है और मथुरा-काशी जैसे मंदिर हिंदू समुदाय के अधीन हैं.

मंदिर बनाम बौद्ध मठ: विवाद की जड़ें

हिंदू धर्म के अनुयायी भगवान बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानते हैं. इसलिए वे महाबोधि मंदिर में भी हिस्सेदारी का दावा करते हैं. दूसरी ओर, बौद्ध समुदाय खुद को हिंदू धर्म से अलग मानता है और इस दावे को सिरे से खारिज करता है. 1980 के दशक में यह विवाद काफी उग्र हुआ, लेकिन बाद में शांत हो गया था.

हालांकि, हाल के दिनों में कुछ कट्टरपंथी हिंदू संगठनों द्वारा मस्जिदों और दरगाहों की खुदाई में मंदिरों की तलाश ने इस विवाद को दोबारा हवा दी है. सोशल मीडिया पर बौद्ध मठों की खोज की मांग उठाई जा रही है.

नवबौद्धों की नई मांगें

नवबौद्ध और अंबेडकरवादी खुलकर इस मसले पर बोलने लगे हैं. सोशल मीडिया पर एक नवबौद्ध भंते ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर 84,000 बौद्ध मठों की खुदाई की मांग की.
उन्होंने कहा,”अगर मस्जिदों और मंदिरों की खुदाई की जा रही है, तो बौद्ध मठों की भी जांच होनी चाहिए. इससे सच सामने आएगा कि इन स्थलों पर असली विरासत किसकी है.”

यह विवाद सिर्फ धार्मिक नहीं है, बल्कि देश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है. नवबौद्ध नेताओं का कहना है कि मुसलमान भारत में बाद में आए, जबकि हिंदू उनसे एक हजार साल पहले यहां आए थे. वे दावा करते हैं कि बौद्ध धर्म इस धरती का सबसे प्राचीन धर्म है और इस लिहाज से इन स्थलों पर उनका हक सबसे पहले बनता है.

न्यायालय और सरकार पर सवाल

इस विवाद में न्यायालयों के फैसलों पर भी सवाल उठने लगे हैं. 1991 के धार्मिक स्थल अधिनियम को नजरअंदाज कर कुछ फैसले एकतरफा दिखते हैं, जिससे समाज के एक वर्ग में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है. अजमेर दरगाह को लेकर आए फैसले और हाल के दिनों में अदालतों के रुख ने इस विवाद को और गहरा दिया है.

आगे की राह

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे विवाद देश के विकास और सामाजिक शांति के लिए खतरा हैं. यदि यह सिलसिला जारी रहा तो भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. धार्मिक स्थलों की खुदाई और उनकी विरासत को लेकर शुरू हुए ये विवाद न सिर्फ समाज को बांट रहे हैं, बल्कि देश की प्रगति में भी बाधा बन रहे हैं.

यह जरूरी है कि ऐसे मुद्दों को राजनीति और कट्टरवाद से अलग रखा जाए. समाज के सभी वर्गों को संवाद और सहमति के जरिए समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि देश की एकता और सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखा जा सके.