ऑपरेशन सिंदूर: कर्नल सोफिया की अगुवाई में सेना ने आतंकवाद ही नहीं, सांप्रदायिक नफरत पर भी किया वार
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मुस्लिम नाउ विशेष
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में जब धर्म पूछकर 26 सैलानियों की निर्मम हत्या की गई, तब देश का ज़मीर हिल गया। एक तरफ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का यह वीभत्स चेहरा सामने था, वहीं दूसरी ओर भारत में बैठे कुछ सियासी नफरती चिंटू इस हमले को हिंदू-मुसलमान की खाई और गहरी करने के लिए भुना रहे थे। ऐसे में भारतीय सेना ने केवल LOC पार आतंकियों के ठिकानों को ध्वस्त करने का कार्य नहीं किया, बल्कि देश के अंदर फैली सांप्रदायिक विषबेल पर भी कड़ा प्रहार किया—और इस प्रहार का नाम था: ऑपरेशन सिंदूर।
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सेना की ‘धार्मिक तटस्थता’ बनी जवाब का हथियार
भारतीय सेना वर्षों से इस बात का प्रतीक रही है कि धर्म, जाति, समुदाय जैसी कोई पहचान देश की सुरक्षा से ऊपर नहीं है। एक वाकया हाल ही में सेवानिवृत्त हुए सेना अधिकारी ने साझा किया, जहाँ एक कैंप से सभी धार्मिक प्रतीकों को हटाकर कहा गया—“हमारा एक ही धर्म है—बलिदान का।”
यह केवल बयान नहीं, एक संदेश है। एक ऐसा संदेश, जो उन लोगों को मुँहतोड़ जवाब देता है जो पिछले एक दशक से सोशल मीडिया और सड़कों पर ‘हिंदू-मुस्लिम’ के नाम पर ज़हर घोल रहे थे।
कर्नल सोफिया कुरैशी की ब्रिफिंग: सेना की रणनीति या समाज पर स्ट्राइक?
पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने जिस बहादुरी से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की, उससे कहीं ज़्यादा रणनीतिक चौंकाने वाला कदम था—कर्नल सोफिया कुरैशी को आधिकारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए सामने लाना।
कर्नल सोफिया न केवल भारतीय सेना की सम्मानित अधिकारी हैं, बल्कि एक मुस्लिम महिला होते हुए वह उन तमाम पूर्वाग्रहों और अफवाहों को खंडित करती हैं जो यह बताने की कोशिश करते हैं कि ‘मुस्लिम भारतीय सेना में वफादार नहीं हो सकते।’
सेना का यह कदम इस बात का प्रतीक बन गया कि भारतीयता कोई धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और भरोसे की भावना है।
‘भारत माता की जय’ के साथ खड़े मुसलमान
इस बार फर्क साफ़ है। पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से में केवल हिंदू नहीं, बल्कि बड़ी तादाद में मुसलमान भी हैं—और शायद अधिक मुखर भी। ओवैसी जैसे नेता हों या अन्य धार्मिक संगठन, इस बार उन्होंने खुलकर आतंकवाद की निंदा की और सेना की प्रशंसा की।
सोशल मीडिया पर वही लोग, जो कल तक ‘मंगलसूत्र’ और ‘गोली मारो’ जैसे नफरती नारों को हवा दे रहे थे, आज कर्नल सोफिया कुरैशी को सलाम कर रहे हैं। यह भारत के सामाजिक ताने-बाने में आए एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है।
सेना का संदेश साफ है: नफरत देशद्रोह है
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ सरहद पार की कार्रवाई नहीं थी, यह एक संदेश था उन लोगों के लिए जो ‘धर्म’ के नाम पर देश को बांटना चाहते हैं। सेना का यह कदम बताता है कि देश की सुरक्षा सिर्फ गोली से नहीं, विचारों और एकता से भी होती है।
कर्नल सोफिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस इस बात की घोषणा थी कि भारत की सेना में जात-पात, धर्म, और मजहब के लिए कोई जगह नहीं है—सिर्फ देश सर्वोपरि है।
नतीजा: चिंटू दुबक गए, देश एकजुट हो गया
सेना की इस रणनीति से सबसे बड़ा असर उन ‘नफरती चिंटुओं’ पर पड़ा, जो पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया पर ‘नैरेटिव युद्ध’ लड़ रहे थे। वे अब या तो चुप हैं या कर्नल सोफिया की तारीफों के पुल बाँध रहे हैं।
यह वही भारत है, जहाँ सेना न केवल सरहद पर दुश्मन को हराती है, बल्कि समाज में फैलते जहर को भी खत्म करने की ताकत रखती है।
अब वक्त आ गया है कि हम बताएं—भारत जैसा देश, और भारत जैसी फौज—दुनिया में कहीं नहीं है।