ओपिनियन :अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजनाओं में कटौती, क्या उनके भविष्य को प्रभावित करेगा?
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मुस्लिम नाउ विशेष
2025-26 के केंद्रीय बजट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए 5% की वृद्धि की घोषणा की गई है, लेकिन इस वृद्धि के बावजूद अल्पसंख्यकों के शिक्षा सशक्तिकरण के लिए आवंटित धन में महत्वपूर्ण कटौती की गई है. इस कटौती ने कई योजनाओं को प्रभावित किया है, जो पहले अल्पसंख्यक समुदायों के लिए शिक्षा और रोजगार सृजन के महत्वपूर्ण साधन हुआ करती थीं. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे पिछले कुछ वर्षों में अल्पसंख्यकों के लिए बजट में लगातार कमी आई है, और इसके पीछे की चिंताजनक नीतियां क्या हैं ?
अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा सशक्तिकरण में कटौती
2025-26 के बजट में, अल्पसंख्यकों के शिक्षा सशक्तिकरण के लिए आवंटित राशि ₹678.03 करोड़ है, जो पिछले वर्ष के ₹1,575.72 करोड़ से काफी कम है. इस कटौती से स्पष्ट होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में अल्पसंख्यक समुदायों को मिली सरकार की प्राथमिकता में भारी गिरावट आई है. विशेष रूप से, प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्तियों के लिए आवंटित राशि में 40% और 63% की क्रमशः कमी की गई है. इसके अलावा, मदरसों के लिए आवंटित बजट ₹2 करोड़ से घटाकर ₹0.01 करोड़ कर दिया गया, जो कि इस क्षेत्र के लिए एक चिंताजनक संकेत है.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का बजट: एक सतत गिरावट
केंद्रीय बजट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए आवंटित ₹3,350 करोड़ का कुल बजट, पिछले वित्तीय वर्ष के ₹3,183.24 करोड़ से 5% अधिक दिखता है, लेकिन यह आंकड़ा किसी भी प्रकार से उस गंभीर समस्या का समाधान नहीं करता है जिसका सामना अल्पसंख्यक समुदाय कर रहा है. इसके अलावा, विभिन्न योजनाओं के लिए धन में कटौती और समायोजन दिखाता है कि सरकार की नीतियां अब अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने के बजाय समग्र दृष्टिकोण को महत्व दे रही हैं, जो समग्र समुदायों के लिए योजनाओं को बढ़ावा देती है, लेकिन अल्पसंख्यकों के विशेष मुद्दों को नजरअंदाज करती हैं..
सरकार की नई सोच और उसकी चुनौतियां
सरकार का तर्क है कि अब जो योजनाएं बन रही हैं, वे सभी के लिए हैं – न केवल अल्पसंख्यकों के लिए, बल्कि बहुसंख्यक समुदायों के लिए भी. हालांकि, इस तर्क में एक बड़ी खामी है. जब तक कोई योजना अल्पसंख्यक समुदायों के विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं बनाई जाती, तब तक वे समुदायों की जड़ें मजबूती से नहीं फैल सकतीं. विशेष रूप से, जब यह समुदाय पहले ही शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्तर पर पिछड़े हुए हैं, तो यह सुनिश्चित करना कि उन्हें समग्र योजनाओं से वास्तविक लाभ मिले, एक कठिन कार्य बन जाता है.
शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण कटौती
अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा की योजनाओं में सबसे बड़ा और स्पष्ट प्रभाव देखा गया है. प्री-मैट्रिक वजीफों के लिए 40% की कमी की गई है, जबकि पोस्ट-मैट्रिक वजीफों में 63% की भारी कटौती की गई है.. इस कटौती का प्रभाव उन विद्यार्थियों पर पड़ेगा जो अल्पसंख्यक समुदायों से आते हैं और जिनके पास शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं. अल्पसंख्यक समुदायों के लिए, शिक्षा का अधिकार उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, और इस तरह की कटौती उनकी संभावनाओं को बाधित करती है.
मदरसों और अन्य संस्थाओं के लिए आवंटन में कमी
मदरसों के लिए बजट में भारी कमी की गई है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या सरकार ने मदरसों को एक वैध और महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थान के रूप में पहचानना बंद कर दिया है ? कई मदरसे ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा प्रदान करते हैं, जो अन्यथा शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते. इस कटौती से इन बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर सिमट सकते हैं, और वे आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो पाएंगे..
आर्थिक नीतियों और अल्पसंख्यकों की स्थिति
अल्पसंख्यकों के लिए लगातार घटते बजट आवंटन के पीछे एक और बड़ा कारण है सरकार की यह सोच कि अब आर्थिक योजनाएं सभी के लिए समान हैं. हालांकि, यह तर्क तब कमजोर हो जाता है जब हम देखते हैं कि अल्पसंख्यक समुदायों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अन्य समुदायों से बहुत अलग है. अगर सरकार विशेष ध्यान नहीं देती है, तो अल्पसंख्यक समुदायों के लिए उनके विशेष जरूरतों के अनुरूप योजनाएं न बनना, उनकी आगे की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं ला पाएगा.
कुल मिलाकर, अल्पसंख्यकों के लिए बजट में जारी कटौती और सरकार की नीति यह स्पष्ट करती है कि अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अब कोई विशेष विचार नहीं किया जा रहा है. शिक्षा, रोजगार, कौशल विकास और आजीविका जैसे क्षेत्रों में लगातार कमी के चलते इन समुदायों के सामने कई चुनौतियाँ हैं. अब यह इन समुदायों पर निर्भर करता है कि वे अपने भीतर से ऐसे संगठन और कार्यक्रम बनाकर अपनी स्थिति को बेहतर बनाएं, जो उन्हें समाज में समान अवसर दिलाने में मदद कर सकें. हालांकि, यह प्रक्रिया आसान नहीं होगी और इसके लिए सरकार की मदद की आवश्यकता बनी रहेगी.
इनपुटः द हिंदू