दृष्टिबाधा को मात देकर अनंतनाग की दो बहनों ने 12वीं कक्षा में हासिल की प्रथम श्रेणी, AMU में पढ़ाई का सपना
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,कोकरनाग (अनंतनाग)
— दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के सुदूरवर्ती और पिछड़े गांव मटिहांडू की दो दृष्टिबाधित बहनों, खुशबू और मेहविश ने अपनी मेहनत और हौसले से वो कर दिखाया जो आमतौर पर असंभव माना जाता है। दोनों ने 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास कर यह साबित किया है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
पिछड़े इलाके और बेहद सीमित संसाधनों के बीच पली-बढ़ीं इन दोनों बहनों ने 12वीं की परीक्षा में क्रमशः 364 और 348 अंक प्राप्त किए। इससे पहले 10वीं कक्षा में भी दोनों ने 500 में से 394 और 396 अंक प्राप्त कर डिस्टिंक्शन हासिल किया था।

उनके पिता मंजूर अहमद पल्ला, जो पेशे से छोटे किसान और किराना दुकानदार हैं, ने तमाम सामाजिक और आर्थिक बाधाओं के बावजूद बेटियों को स्कूल भेजने का फैसला किया, हालांकि शुरुआत में गांव वालों, रिश्तेदारों और यहां तक कि कुछ शिक्षकों ने भी इसे “समय की बर्बादी” बताया था।
मंजूर अहमद कहते हैं, “हर दिन उन्हें स्कूल भेजना और सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना आसान नहीं था, लेकिन अल्लाह ने हमारी राहें आसान कर दीं।”
वास्तविक बदलाव तब आया जब विशेष शिक्षा में प्रशिक्षित शिक्षक इकबाल खांडे की तैनाती मटिहांडू के सरकारी मिडिल स्कूल में हुई। उन्होंने बहनों को ब्रेल लिपि, स्मार्ट केन, और जीवन कौशल सिखाए और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया।
खुशबू जान, जिन्होंने 12वीं में 364 अंक प्राप्त किए, कहती हैं, “खांडे सर ने हमें आत्मविश्वास दिया, उन्होंने हमारे लिए इंटरनेट से ऑडियो लेक्चर तैयार किए और पढ़ाई को आसान बना दिया।”
बड़ी बहनों के शैक्षिक सफर को गुडरामन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भी गहरा समर्थन मिला, जहां प्रधानाचार्य बशीर साहिल और शारीरिक शिक्षक आशिक हुसैन ने उनकी प्रतिभा को संजोया।
साहिल ने कहा, “ये बहनें केवल प्रतिभाशाली ही नहीं, बल्कि बेहद रचनात्मक भी थीं।”

दोनों बहनों ने उर्दू, शिक्षा, राजनीति विज्ञान, अंग्रेज़ी और शारीरिक शिक्षा विषयों में पढ़ाई की। इसके साथ ही उन्होंने गृह विज्ञान और संगीत जैसे विषयों में भी रुचि दिखाई।
उनके बड़े भाई, जो खुद स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं, ने भी इनकी सफलता में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने पाठ्यक्रम की सामग्री को फोन में रिकॉर्ड कर बहनों को ऑडियो के रूप में पढ़ने में मदद की।
अब उनका सपना है कि वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई जारी रखें।
वे कहती हैं, “हमारी दृष्टिबाधा हमें रोक नहीं सकती। हमारे माता-पिता और भाई हमेशा हमारे साथ खड़े रहे हैं। हम अपनी पढ़ाई जारी रखकर यह दिखाना चाहते हैं कि कोई भी शारीरिक चुनौती शिक्षा के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकती।