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पहलगाम हमला: भारतीय मुसलमानों ने दिखाया राष्ट्रप्रेम, आतंकवाद नहीं- इंसानियत है हमारी पहचान

मुस्लिम नाउ विशेष

— जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले में जब 26 से अधिक निर्दोष सैलानियों की हत्या कर दी गई, तो देश भर के मुसलमानों ने न केवल इसकी खुलकर निंदा की, बल्कि पहली बार इतने व्यापक स्तर पर पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर प्रदर्शन किया।

इस आतंकी हमले के बाद भारत का मुसलमान एक नए रूप में सामने आया—राष्ट्रप्रेम और इंसानियत का ऐसा प्रतीक बनकर, जिसने न केवल आलोचकों को चुप कर दिया, बल्कि उन संगठनों और नेताओं को भी हैरान कर दिया जो अक्सर मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाते हैं।


मुस्लिम समाज की एकजुटता: फिरकों से परे मानवता के पक्ष में

पहलगाम हमले की निंदा करते हुए देशभर में मुसलमानों ने सड़कों पर उतरकर आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। पहली बार ऐसा देखा गया कि सुन्नी, शिया, देवबंदी, बरेलवी, दाउदी बोहरा, जमाअत-ए-इस्लामी, जमीअत उलमा-ए-हिंद, रजा अकादमी जैसे तमाम फिरकों और संगठनों ने एक स्वर में आतंकवाद की आलोचना की।

दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद से लेकर लखनऊ, मुंबई, भोपाल, कोलकाता और चेन्नई तक मस्जिदों में जुमे के खुतबे आतंकवाद के खिलाफ दिए गए। मस्जिदों में इमामों ने साफ शब्दों में कहा कि “इस्लाम किसी बेगुनाह की हत्या की इजाज़त नहीं देता।”


ओवैसी का आह्वान और काली पट्टियों का प्रतीकात्मक विरोध

AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भारतीय मुसलमानों से जुमे की नमाज़ में काली पट्टी बांधने की अपील की, जिसे देशभर में ज़बरदस्त समर्थन मिला। इस प्रतीकात्मक विरोध ने सोशल मीडिया पर जबरदस्त हलचल मचाई और यह संदेश गया कि भारतीय मुसलमान आतंकवाद के पक्षधर नहीं, बल्कि उसके सबसे मुखर विरोधी हैं।


कश्मीरी मुसलमानों की दिल छू लेने वाली मिसाल

कश्मीर घाटी, जिसे प्रायः ‘आतंक के गढ़’ के रूप में दिखाया जाता है, वहां के आम मुसलमानों ने मानवीयता की सबसे बड़ी मिसाल पेश की। हमले के तुरंत बाद स्थानीय मुसलमानों ने अपने घर, दुकानें, मस्जिदें पर्यटकों के लिए खोल दीं।

कई टैक्सी चालकों और थ्रीव्हीलर वालों ने घायलों को अस्पताल पहुंचाया, और किराया लेने से इनकार कर दिया। होटलों ने निःशुल्क भोजन और रहने की व्यवस्था की। इतना ही नहीं, एक मुस्लिम युवक ‘नजाकत’ ने हमले के दौरान एक हिंदू परिवार के दो मासूम बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर बचाया।

इस घटना को लेकर भाजपा पार्षद लक्की ने भावुक होकर कहा, “अगर नजाकत भाई नहीं होते, तो शायद मेरा परिवार जिंदा न होता।”


राजनीतिक और हिंदू संगठनों की प्रतिक्रिया: तारीफों की बौछार

इस बार भारतीय मुसलमानों की मानवीयता और राष्ट्रप्रेम देखकर कई हिंदू संगठनों और नेताओं ने भी खुले मंच से तारीफ की। प्रयागराज से भाजपा विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी ने कहा:

“भारत के मुसलमानों को पाकिस्तान से तुलना मत करिए। पहलगाम हमले में पाकिस्तान के मुसलमान मारने वाले थे, और भारत के मुसलमान बचाने वाले।”

तेलुगु सुपरस्टार और आंध्र के डिप्टी सीएम पवन कल्याण गारू का बयान वायरल हो रहा है, जिसमें वे कहते हैं:

“भारतीय मुसलमानों को अपना राष्ट्रवाद बार-बार साबित करने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने देश के लिए जान दी है, यह काफी है।”


सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी ट्रोलिंग को मिला मुंहतोड़ जवाब

पहलगाम हमले के बाद कुछ कट्टरपंथी ट्रोलरों ने यह अफवाह फैलाने की कोशिश की कि हमलावरों ने मरने से पहले सैलानियों से कलमा पढ़ने को कहा। लेकिन इन झूठे दावों को भारतीय मुसलमानों की ज़मीनी एकजुटता और सहानुभूति ने बेमानी कर दिया।

यह पहली बार है जब ट्रोलरों के फैलाए नैरेटिव को खुद मुस्लिम समाज ने अपने व्यवहार से तोड़ा और हिंदू समाज का बड़ा वर्ग भी उनके साथ खड़ा हुआ।


निष्कर्ष: आतंकवाद के खिलाफ सबसे प्रबल आवाज़ बना भारतीय मुसलमान

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का मुसलमान न केवल धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ खुलकर सामने आया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इस देश की आत्मा में वो बराबर का साझीदार है।

जो समाज अकसर आतंकवाद से जोड़कर देखा जाता था, उसी समाज ने इस बार सबसे ज़्यादा संवेदनशीलता, एकजुटता और साहस दिखाया।

इसलिए अब समय आ गया है कि राष्ट्रवाद का सर्टिफिकेट बांटने वालों से सवाल पूछा जाए — “आपने आतंकवाद के विरोध में क्या किया, जबकि मुसलमान सड़कों पर थे?”

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