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पाकिस्तानः आर्थिक संकट से उबरने के दिन आए, चार साल बाद एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से हुआ बाहर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,पेरिस

पाकिस्तान के आर्थिक संकट से उबरने के दिन आ गए. इसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने बड़ी राहत देते हुए ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर कर दिया.इसके बाद इसपर लगे कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध हट जाएंगे.ग्रे लिस्ट से बाहर करते हुए वैश्विक निगरानीकर्ता ने कहा है कि एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण (एएमएल- सीएफटी) प्रणाली के तहतइस्लामाबाद ने अच्छा काम किया.

एफएटीएफ ने कहा कि वह पाकिस्तान की महत्वपूर्ण प्रगति का स्वागत करता है. वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण प्रहरी ने यहां अपनी पूर्ण बैठक के बाद कहा कि पाकिस्तान ने अपने एएमएल – सीएफटी शासन की प्रभावशीलता को मजबूत किया है और एफएटीएफ की पहचान की गई रणनीतिक कमियों के संबंध में अपनी कार्य योजनाओं की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तकनीकी कमियों को दूर किया है.

वॉचडॉग ने कहा, पाकिस्तान अब निगरानी प्रक्रिया के अधीन नहीं है. पाकिस्तान जून 2018 से अपने आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण और धन-शोधन रोधी शासनों में कमियों के कारण पेरिस की निगरानी संस्था की ग्रे सूची में था.इस ग्रेलिस्टिंग ने इसके आयात, निर्यात और प्रेषण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और अंतरराष्ट्रीय उधार तक इसकी पहुंच सीमित कर दी है.जून की पूर्ण बैठक में एफएटीएफ ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे सूची में बनाए रखा था. साथ ही कहा था कि सूची से इसे हटाने का अंतिम निर्णय साइट पर सत्यापन यात्रा के बाद लिया जाएगा.

बाद में सितंबर में एफएटीएफ की एक टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया.जून 2018 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखने के बाद 27-सूत्रीय कार्य योजना जारी कर इसमें सुधार करने के निर्देश दिए गए थे. कार्य योजना मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने से संबंधित थी.किसी देश के ग्रे लिस्ट में शामिल होने का मतलब है, एक ऐसी चेतावनी जिसमें उसे कई मामले में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ब्लैकलिस्ट कर देती है.

पाकिस्तान को पहली बार 2008 में ग्रे लिस्ट में डाला गया था, पर 2009 में हटा दिया गया. फिर 2012 से 2015 तक यह इसपर निगरानी रखी गई. पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, इंटरपोल और वित्तीय खुफिया इकाइयों के एग्मोंट समूह सहित वैश्विक नेटवर्क और पर्यवेक्षक संगठनों के 206 सदस्यों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में बैठकों में भाग लिया. इस बैठक में ही म्यांमार को ग्रे लिस्ट में डालने का निर्णय लिया गया.