Pellet gun कश्मीर में मुहर्रम जुलूस पर इसके इस्तेमाल पर उठ रहे गंभीर सवाल
कश्मीर में मुहर्रम जुलूस पर सुरक्षा बलों के पेलेट गन के इस्तेमाल से एक नई बहस छिड़ गई है। क्या उग्र भीड़ को नियंत्रित करने का यह तरीका उचित है ? ऐसे उपाय देश के अन्य हिस्सों में क्यों नहीं आजमाए जा रहे ? कश्मीर में एक दिन पहले मुहर्रम जुलूस पर पेलेट गन के इस्तेमाल से कई युवकों की आंखों की रोशनी खतरे में पड़ गई है। ऐसी घटनाएँ पहले ही कतिपय युवाओं की जिंदगी तबाह कर चुकी है।
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के चलते देश में धार्मिक जलसा-जुलूस प्रतिबंधित है। कुछ दिनों पहले पुरी में जगन्नाथ यात्रा निकालने की इजाज़त सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ दी थी। देश का मुस्लिम वर्ग चाहता था कि जहां स्थिति सामान्य है, वहां उन्हें भी मुहर्रम के अलम व ताजिए जुलूस निकालने दिए जाएं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस नसीहत के साथ उनकी अपील खारिज कर दी कि जगन्नाथ रथयात्रा एक शहर तक सीमित थी। मुहर्रम का जुलूस देशभर में निकलता है। ऐसे में कोरोना के फैलाव के लिए उनकी बदनामी होगी। आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट की बंदिश के बावजूद श्रीनगर में मुसलमानों के शिया समुदाय ने मुहर्रम के आशूरा पर शनिवार को जुलूस निकाला। सुरक्षा बलों ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो वे कथित तौर पर उग्र हो उठे। सेना पर पथराव किया। जवाबी कार्रवाई में मुहर्रम जुलूस पर पेलेट गन का इस्तेमाल किया गया, जिसमें कई लोग बुरी तरह घायल हो गए।What is a pellet gun?
सुरक्षा एजेंसियाँ क्या सो रही थीं
इसमें दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने जब मुहर्रम जुलूस पर पाबंदी लगा दी है तो शिया समुदाय को ऐसा नहीं करना चाहिए था। जब उन्हें रोका गया तो उनका सुरक्षा बलों पर कथित हमला भी उचित नहीं। बावजूद इसके यहां कुछ गंभीर सवाल उठने भी लाजमी हैं। क्या उन्हें रोकने का एकमात्र विकल्प पेलेट गन ही था ? जब लोग जुलूस के लिए इकट्ठा हो रहे थे, कश्मीर के चप्पे-चप्पे में फैली सुरक्षा एजेंसियाँ क्या सो रही थीं ? उन्हें तभी एकत्रित होने से क्यों नहीं रोका गया ? घटना को लेकर सोशल मीडिया में शनिवार से जिस तरह की तस्वीरें चल रही हैं, उसमें दावा किया गया है कि पेलेट गन के छर्रे चेहरे पर लगने से कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। वे दृष्टिहीन हो गए। यदि यह सही है तो सवाल उठता है कि किसी जुलूस में शामिल होने की सजा आंखों की रोशनी छीन कर दी जा सकती है क्या ? लोग पूछ रहे हैं कि पेलेट गन के इस्तेमाल में फ्राखदिली केवल कश्मीर में क्यों, देश के अन्य हिस्से में क्यों नहीं ?
पेलेट गन का इस्तेमाल कहीं और क्यों नहीं
अंग्रेजी पत्रिका ‘इंडिया टुडे’ के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक गौरव सी सावंत के घटना को लेकर ट्वीट करने पर कि ‘‘पेलेट गन की सीमा होती है। सीमा से बाहर रहें। सुरक्षित रहें। पथराव जन्मसिद्ध अधिकार नहीं। न ही यह विरोध का स्वीकार्य लोकतांत्रिक स्वरूप है। यदि कोई काननू तोड़ता है तो कानून लागू करने वाली एजेंसियों की पूरी ताकत से सामना करने को तैयार रहें।’’

विरोध में ट्वीट्स की बौछार हो गई । कश्मीर में पेलेट गन के इस्तेमाल पर सवाल उठाते हुए कश्मीर इंटल ट्वीटर हैंडल से कहा गया-‘‘दुनिया में अन्य जगहों पर पक्षियों का शिकार करने के लिए पेलेट गन उपयोग में लाया जाता है। कश्मीर में हमारी सेनाएं आंखों की रोशनी छीनने के लिए कर रही हैं। 2010 से एक पीढ़ी को इस गैर घातक भीड़ नियंत्रण बंदूक द्वारा अंधा बनाया जा रहा है।’’

इंडिया टुडे के संपादक सावंत को जवाब देते हुए के मलमरूगन कहते हैं-‘‘एक दिन आपका बच्चा इससे भी बुरे अंत का सामना करेगा।’’ राजनीतिक विश्लेषक कमर चीमा ने ट्वीट किया-‘‘ क्या अन्य भारतीयों पर पेलेट गन का उपयोग किया जा रहा है। दिल्ली या मुंबई में ? या सिर्फ कश्मीर में ? सेना के साथ कश्मीरियों को वश में करने के लिए भारत की यह स्पष्ट नीति है।’’ अधिवक्ता नवदीप सिंह घटना पर प्रतिक्रिया में ट्वीट करते हैं-‘‘ अगर कोई कानून तोड़ता है, उसे कानून की मजबूत प्रक्रिया का सामना करना चाहिए। यहां तक कि गिरफ्तारी,मुकदमा चलाया और सजा सुनाई जाए। लेकिन दुनिया में इस तरह की छवि क्यों ? क्या इस तरीके का कहीं और इस्तेमाल हो रहा है ? केवल एक विशेष बल द्वारा ही क्यों ?

प्रो. हलधर बलराम तो गाली की हद तक पेलेट गन के इस्तेमाल का विरोध करते हैं। पलाश अग्रवाल अंबेडकर के हवाले से पूछते हैं-‘‘ सविनय अवज्ञा संसदीय लोकतंत्र में विरोध का एक लोकतांत्रिक स्वरूप था। क्या आप इस बात से सहमत होंगे कि यूपीए को अन्ना हजार के आंदोलन से निपटने के लिए पेलेट गन का इस्तेमाल करना चाहिए था ?’’

इस देश ने गुर्जर, जाट, किसान आदि ऐसे हजारांें आंदोलन देखे हैं जिसमें भारी जान-माल का नुक्सान हुआ। करोड़ों रूपये की संपत्तियों फूंक दी गईं। देश ने सांप्रदायिक दंगों एवं अयोध्या आंदोलन के समय भी ऐसे नज़ारे देखे हैं। इस संदर्भ में मेरा भारत महान है ट्वीटर हैंडल से सवाल उठाया गया-‘‘पूरे देश में समान नियम है। कुछ साल पहले गुर्जर आरक्षण की मांग करते हुए ट्रेन-रेलवे को भारी नुक्सान पहुंचाया था। पुलिस पर पथराव भी हुआ था। तब पेलेट गन का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया ?
कश्मीरियों का विश्वास जीतने की जरूरत
हालांकि सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग भी सक्रिय हैं जो कश्मीर में मुहर्रम के जुलूस पर पेलेट गन के इस्तेमाल को सही ठहरा रहे। गौरव पंत ट्वीट कर याद दिलाते हैं-‘‘राम रहीम के अनुयायियों, हरियाणा के जाट आंदोलन और अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थीं।’’

सिद्धनाथ कहते हैं, मानवाधिकार के नाम पर देश की छवि खराब न करें। रामचंद्रण महेश ने ट्वीट कर पत्थरबाजों को आतंकवादी करार दिया। बावजूद इस वाद-विवाद के ये सवाल अपनी जगह कायम हैं कि भीड़ नियंत्रण के नाम पर आँख की रोशनी छीनना कितना उचित है ? क्यों नहीं इसका विकल्प ढूूंढा जा रहा ? यदि भीड़ नियंत्रण की यह कार्रवाई उचित है तो देश के अन्य हिस्से में उग्र भीड़ पर इसका इस्तेमाल तो बनता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेलेट गन मारती नहीं जिंदा लाश बना देती है। रिपोर्ट में कई कश्मीरियों की उजड़ी जिंदगी की दास्तां भी बताई गई है। कश्मीरियों का विश्वास जीतने के लिए इसके इस्तेमाल पर रोक जरूरी है।
मलिक असगर हाशमी
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