पाकिस्तान उच्चायोग ने चढ़ाई चादर, हजरत निजामुद्दीन के प्रति जताई श्रद्धा,आखिरी दिन कुरान ए पाक से उर्स का आगाज
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
हजरत निजामुद्दीन औलिया के 721वें उर्स के चौथे दिन, दरगाह पर देश के विभिन्न कोर्ट के मौजूदा और पूर्व न्यायाधीशों के साथ पाकिस्तान के 75 जायरीन ने चादरपोशी की और अमन के लिए दुआ मांगी. उर्स की शुरुआत फातिहा ख्वानी से हुई, इसके बाद महफिल ए कव्वाली का आयोजन किया गया, जिसमें सूफी संगीत की रूहानी धुनों ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस पांच दिवसीय उर्स कार्यक्रम में हर साल लाखों श्रद्धालु दरगाह पर पहुंचते हैं.
पाकिस्तानी जायरीन का दरगाह पर आगमन
इस वर्ष 721वें उर्स में 75 पाकिस्तानी जायरीन शामिल हुए, जिनमें पाकिस्तान उच्चायोग, नई दिल्ली के प्रबंधक साद अहमद वाराइच शामिल थे. उन्होंने पाकिस्तान सरकार की ओर से पारंपरिक चादर चढ़ाई. सज्जादानशीं दीवान ताहिर निजामी ने दरगाह पर पहुंचने पर प्रबंधन और पाकिस्तानी जायरीन का स्वागत किया.
उन्होंने सूफी संतों के माध्यम से इस्लाम के मूल सिद्धांतों—सार्वभौमिक भाईचारे, प्रेम और सहिष्णुता—को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया.
1974 के पाकिस्तान-भारत प्रोटोकॉल के अंतर्गत यात्रा
पाकिस्तानी तीर्थयात्री 19 से 25 अक्टूबर, 2024 तक हजरत निजामुद्दीन औलिया के वार्षिक उर्स मुबारक में भाग लेने के लिए नई दिल्ली आए हैं. यह यात्रा धार्मिक स्थलों की यात्रा के लिए 1974 के पाकिस्तान-भारत प्रोटोकॉल के तहत की गई है. दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद, जायरीन ने पाकिस्तान की विकास और समृद्धि के लिए दुआ की. इसके साथ ही, उन्होंने परिसर में स्थित हजरत अमीर खुसरो की दरगाह का भी दौरा किया.
अमन और शांति का संदेश
इस अवसर पर सैयद अफसर निजामी ने कहा कि हजरत निजामुद्दीन औलिया के दरगाह पर केवल एक धर्म के लोग ही नहीं, बल्कि विभिन्न सामाजिक और धार्मिक नेता भी पहुंचते हैं. यह स्थान न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में अमन और शांति का संदेश फैलाता है.
लंगर की व्यवस्था
पीरजादा अल्तमश निजामी ने बताया कि दरगाह पर प्रतिदिन हजारों लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती है. कोई भी व्यक्ति जो दरगाह पर आता है, उसे लंगर दिया जाता है. हर साल उर्स के मौके पर विशेष लंगर की व्यवस्था की जाती है. उन्होंने बताया कि जो भी व्यक्ति चादर चढ़ाने आता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, यदि वह लंगर बांटना चाहता है, तो वह अपनी इच्छा से बांट सकता है. उनके अनुसार, प्रतिदिन हजारों जायरीन लंगर का आनंद लेते हैं.
उर्स का समापन और आगे की गतिविधियाँ
उर्स के आखिरी दिन, सुबह ग्यारह बजे कुरान ए पाक से उर्स का आगाज होगा. इसके बाद कुल शरीफ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देश और दुनिया के लिए दुआ, लंगर का वितरण और तबर्रुक पेश किया जाएगा.
हजरत निजामुद्दीन औलिया का परिचय
हजरत निजामुद्दीन औलिया का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 1238 में हुआ था. उन्होंने चिश्ती सूफी परंपरा का प्रचार-प्रसार किया और प्रेम, शांति, और मानवता का संदेश फैलाया. दिल्ली आकर उन्होंने ग्यारसपुर को अपना निवास बनाया, जहां उनका दरबार एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र बन गया। उनके जीवनकाल में, उन्होंने मानवता और प्रेम का पाठ पढ़ाने का कार्य किया.
इस उर्स के आयोजन ने एक बार फिर हजरत निजामुद्दीन औलिया के संदेश और उनकी सूफी परंपरा को जीवंत कर दिया है.