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प्रधानमंत्री मोदी ने अमीर खुसरो की विरासत को सराहा, योगी आदित्यनाथ की उर्दू पर टिप्पणी से विवाद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, हैदराबाद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित ‘जहान-ए-खुसरो 2025’ कार्यक्रम में हजरत अमीर खुसरो के योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने सूफी परंपरा और अमीर खुसरो द्वारा दी गई सांस्कृतिक विरासत को भारत की साझा धरोहर बताया। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उर्दू भाषा पर की गई टिप्पणी के कारण देशभर में नाराजगी देखी जा रही है। इसको लेकर कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें हैदराबाद स्थित मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) के छात्र भी शामिल हैं।

योगी आदित्यनाथ की उर्दू पर टिप्पणी से मचा बवाल

योगी आदित्यनाथ की हालिया टिप्पणी ने उर्दू भाषी समुदाय को आक्रोशित कर दिया है। विरोध स्वरूप MANUU के छात्रों ने प्रदर्शन किया और सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। इस संदर्भ में, सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करते हुए सादिया शेख ने लिखा:

“प्रतिरोध में एकजुट! हैदराबाद के #MANUU के छात्र योगी आदित्यनाथ की उर्दू पर टिप्पणी के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। हमारी भाषा सिर्फ शब्द नहीं है..यह इतिहास, संस्कृति और पहचान है। उर्दू पर हमला विविधता और सद्भाव पर हमला है। हम भाषाई भेदभाव को खारिज करते हैं और भारत की समृद्ध बहुभाषी विरासत के लिए सम्मान की मांग करते हैं। उर्दू के लिए न्याय, सभी के लिए न्याय!”

जहान-ए-खुसरो 2025: मोदी का अमीर खुसरो को सम्मान

‘जहान-ए-खुसरो’ एक प्रतिष्ठित वार्षिक संगीत और सांस्कृतिक आयोजन है, जो सूफी संगीत और कव्वाली की परंपरा को सहेजने के लिए किया जाता है। इस साल इसका 25वां संस्करण मनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर अमीर खुसरो के योगदान की सराहना करते हुए कहा:

“भारत की धरती पर सूफी परंपरा को नया जीवन देने वाले अमीर खुसरो की कविताएं, उनकी रचनाएं और उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों को छूता है। उन्होंने भारतीय सभ्यता को समृद्ध किया और इसे पूरी दुनिया में पहचान दिलाई।”

मोदी ने अपने भाषण में खुसरो के प्रसिद्ध दोहों और गीतों का भी उल्लेख किया:

“बन के पंछी भए बावरे, ऐसी बीन बजाई सँवारे, तार तार की तान निराली, झूम रही सब वन की डारी।”

उन्होंने आगे कहा कि अमीर खुसरो ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान दी। उनकी कृतियों ने भक्ति और सूफी परंपरा को जोड़ने का काम किया। मोदी ने रमजान के पवित्र महीने की बधाई देते हुए कहा कि भारत की साझी विरासत को संरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

अमीर खुसरो: उर्दू के जनक और सांस्कृतिक सेतु

अमीर खुसरो (1253-1325) को ‘तूती-ए-हिंद’ यानी भारत का तोता कहा जाता है। वे न केवल एक महान कवि थे, बल्कि एक प्रभावशाली संगीतकार और इतिहासकार भी थे। उन्हें उर्दू भाषा का जनक भी माना जाता है। उनके योगदान में शामिल हैं:

  1. उर्दू भाषा का विकास: अमीर खुसरो ने हिंदी और फारसी के मेल से एक नई भाषा विकसित की, जिसे बाद में उर्दू कहा गया।
  2. कव्वाली की शुरुआत: उन्होंने कव्वाली की परंपरा को स्थापित किया और संगीत को सूफी परंपरा से जोड़ा।
  3. भारतीय संगीत को नया आयाम: उन्होंने सितार और तबले के विकास में योगदान दिया।
  4. हिंदवी भाषा का प्रयोग: उन्होंने अपनी कविताओं में ‘हिंदवी’ भाषा का उपयोग किया, जिससे आम जनता उनके करीब आई।

अमीर खुसरो की रचनाओं में भारत की खूबसूरती और विविधता की झलक मिलती है। उन्होंने भारत की प्रशंसा करते हुए लिखा था:

“अगर फिरदौस बर रू-ए-ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो।”

अर्थात, “अगर धरती पर कहीं जन्नत है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।”

मोदी सरकार और सूफी परंपरा

मोदी सरकार ने सूफी परंपरा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में गुजरात के प्रसिद्ध सूफी केंद्र सरखेज रोज़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में वहां के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए गए थे।

उन्होंने भारत की बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक विरासत को संजोने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि सूफी संतों ने हमेशा प्रेम, भाईचारे और शांति का संदेश दिया है। उन्होंने कहा:

“सूफी संगीत और साहित्य ने भारत की आत्मा को समृद्ध किया है। अमीर खुसरो, बाबा फरीद, बुल्ले शाह, कबीर और रसखान जैसे संतों ने भारतीय समाज को एकजुट किया है।”

अंत में

जहान-ए-खुसरो 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमीर खुसरो के योगदान को सराहा और भारतीय संस्कृति में उनके योगदान को महत्वपूर्ण बताया। वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उर्दू पर टिप्पणी ने विवाद को जन्म दिया है, जिससे देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। यह घटनाक्रम भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के महत्व को उजागर करता है।

क्या उर्दू को लेकर चल रही यह बहस भारत की साझा विरासत को प्रभावित करेगी? यह देखना दिलचस्प होगा।

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