NewsTOP STORIES

बारामूला में आतंकियों की गोली से पुलिस अधिकारी शहीद, काबू में नहीं आ रहे आतंकवादी

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, कश्मीर

कश्मीर में आतंकवादियों की गतिविधियांे को लेकर सरकार की तरफ चाहे जितने दावे किए जाएं, पर हकीकत यह है कि स्थिति अभी भी नियंत्रण से बाहर है. आतंकवादियों की कार्यशैली को देखकर लगता है कि पत्थरबाजी से सहित उन्हांेने अपनी कई पुरानी हरकतें छोड़ दीं हैं, पर सुरक्षा बलों की नाक मंे दम करने की रणनीति नहीं छोड़ी है. नए तरीके से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं. कभी मजदूरों को निशाना बनाकर तो कभी कश्मीरी पंडितांे और सुरक्षाकर्मियों की हत्याकर दहशत फैलाने का उनका काम आज भी बदस्तूर जारी है.

इस क्रम मंे मंगलवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी की बारामूला में उनके आवास पर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी.मृतक हेड कांस्टेबल की पहचान गुलाम मोहम्मद डार के रूप में हुई है.एक्स पर एक पोस्ट में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा, घायल पुलिस कर्मियों ने अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया और शहीद हो गए. हम शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और इस महत्वपूर्ण समय में उनके परिवार के साथ खड़े हैं. इलाके की घेराबंदी कर दी गई है.ष्ऑपरेशन चल रहा है.

पुलिस के अनुसार, अधिकारी को इलाज के लिए एसडीएच तंगमर्ग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया. इस तरह एक दिन पहले आतंकवादियों ने एक बिहारी मजदूर और क्रिकेट खेलते हुए एक पुलिस कर्मी को मौत के घाट उतार दिया था.

19 अगस्त 23 में एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर के दो जिलों में आतंकवादियों का जोर किसी भी तरह कम नहीं हो रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा एजेंसियों ने राजौरी और पुंछ घाटी के साथ नियंत्रण रेखा यस्वब्द्ध पर गतिविधि में वृद्धि के बारे में चिंता जताई है, जिसके परिणामस्वरूप घुसपैठ की कोशिशों के स्तर में वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा,इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इनक्षेत्र से घुसपैठ हो रही है.

एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यदि सुरक्षा बलों द्वारा प्रयासों को विफल कर दिया जा रहा है तो किसी अन्य समूह का पता न चल पाने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक ह. हालांकि, इस साल अब तक घुसपैठ का स्तर सबसे कम है.अधिकारी के मुताबिक, पाकिस्तान की रणनीति साफ है कि भले ही 20.30 फीसदी घुसपैठिए मुठभेड़ों में मार गिराए जाएं, लेकिन और आतंकियों को भेजते रहें.

सेना इन क्षेत्रों में पिछले दो वर्षों से झेल रही परेशानी

उन्होंने आगे कहा, यह सभी मौसमों के लिए उपयुक्त मार्ग है, जिससे उन्हें भी फायदा होता है और वे आसानी से घाटी पार कर सकते हैं. लेकिन जो तथ्य अब एजेंसियों को इन इलाकों में फेरबदल करने के लिए मजबूर कर रहा है. वह हताहतों की संख्या है, जो सेना इन क्षेत्रों में पिछले दो वर्षों से झेल रही है.

एजेंसियों ने सुरक्षा बलों को दी चेतावनी

एनडीटीवी की रिपोर्ट में सरकार के हवाले से कहा गया है कि 21 अक्टूबर से इन क्षेत्रों में तीन अधिकारियों और पांच पैराट्रूपर्स और सात नागरिकों सहित कुल 26 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं. एजेंसियों ने जमीन स्तर पर काम कर रहे सुरक्षा बलों को भी चेतावनी दी है. इनपुट से यह भी पता चलता है कि आने वाले दिनों में घुसपैठ की कोशिशें बढ़ सकती हैं.इसको लेकर डंगरी गांव के सरपंच धीरज शर्मा ने कहा,घेराबंदी और तलाशी अभियान अब हर दिन का मामला है. हम मुठभेड़ों और हताहतों के बारे में सुनते रहते है.

आतंकवादी राजौरी-पुंछ बेल्ट को बना रहे निशाना

1990 के दशक के बीच में उग्रवाद का केंद्र होने के बाद, 2000 के दशक के मध्य से यह क्षेत्र अपेक्षाकृत शांत था.् लेकिन हाल ही में इन दोनों क्षेत्र में फिदायीन से लेकर सेना पर घात लगाकर हमले तक सभी प्रकार की हिंसा देखी गई है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा करते हुए कहा, गलवान के बाद इस क्षेत्र में सेनाएं कम हो गई थीं. लेकिन अब इसपर फिर से काम किया जा रहा है. उनके अनुसार आतंकवादी अब कश्मीर में असफलताओं के बाद पीर पंजाल क्षेत्र में राजौरी-पुंछ बेल्ट को निशाना बना रहे है.

शांति बहाल करने में जुटी सुरक्षा और खुफिया एजेंसी

उन्होंने आगे कहा,अब अधिक आक्रामक इंटेलिजेंस आधारित ऑपरेशनों को अंजाम दिया जा रहा है. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने वास्तव में यह भी संकेत दिया कि राजौरी और पुंछ क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों द्वारा नई रणनीति अपनाई जा रही है.

दिलचस्प बात यह है कि जम्मू और कश्मीर के लिए जारी हालिया मानवाधिकार रिपोर्ट में भी इस बात पर प्रकाश डाला गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, दशकों की शांति के बाद, जम्मू संभाग में पुंछ और राजौरी जिलों के सीमावर्ती इलाके पूर्व राज्य के पाकिस्तानी कब्जे वाले क्षेत्रों से सीमा पार समर्थन के साथ आतंकवाद के ठिकाने के रूप में फिर से उभर रहे हैं.