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मौलाना मदनी और ओवैसी की सियासी खींचतान: मुस्लिम नेतृत्व पर सवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

सोशल मीडिया पर जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना महमूद मदनी का एक बयान तेजी से वायरल हो रहा है. एक वीडियो में वह एआईएमआईएम के सदर ओवैसी को अपनी मुस्लिम सियासत हैदराबाद और तेलंगाना तक सीमित रखने की सलाह देते दिखाई दे रहे हैं.

अपने बयान में वह यह भी कहते दिखाई दे रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर उनकी यानी ओवैसी की मुस्लिम सियासत बर्दास्त नहीं की जाएगी. वैसे तो मौलाना मदनी के इस बयान को सोशल मीडिया के कई हैंडल से हटा दिया गया है और इसकी वास्तविकता को लेकर मुस्लिम नाउ गारेंटी भी नहीं लेता.वेबसाइट न्यूज लेटर का दावा है कि मदनी का यह बयान 2018 का है. पर इसके साथ ही जमीयत द्वारा कांग्रेस को समर्थन और ओवैसी के देश की विभिन्न सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार देने को लेकर एक बार फिर गरमागरम बहस छिड़ गई है.

ओवैसी पर पिछले कई चुनावों से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से एआईएमआईएम के मुस्लिम उम्मीदवार देकर भाजपा को लाभ पहुंचाने का आरोप लगता रहा है. उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही किया. आरोप है कि यदि ओवैसी ने अपने उम्मीदवार नहीं दिए होते तो कई और सीटों पर एनडीए को करारी शिकस्त मिल सकती थी और आज केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार होती.

दूसरी तरफ जमीयत उलेमा ए हिंद पर भी आरोप लग रहे हैं कि उसने कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की मुसमानों से अपील क्यों की ? यहां तक कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद से चुनाव लड़ रहे आईएमआईएम के सीटिंग एमपी इम्तियाज जलील को भी तरजीह नहीं दी गई, जिसकी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

अपने तरह के इस अनोेखे विवाद पर तबसिरा करते हुए महाराष्ट्र मुस्लिम कान्फ्रेंस के नेशनल कन्वीनर जुबैर मेमन ने एक्स पर एक लंबा चैड़ा लेख लिखा है, जिसमंे वह कहते हंै-‘‘ जमीयत ने तेलंगाना की सभी सीटों पर इंडिया एलायंस का साथ दिया. तेलंगाना के हैदराबाद सेट से असदुद्दीन ओवैसी साहब इलेक्शन लड़ रहे थे. कुछ मुस्लिम युवाओं को इस बात से परेशानी थी की जमीयत ने औरंगाबाद महाराष्ट्र में मुस्लिम सांसद का साथ ना देते हुए बाबरी मस्जिद को शहीद करने मंे और उस पर फख्र करने वाले बाल ठाकरे की पार्टी का कांग्रेस के साथ समर्थन किया.

इसमें आगे कहा गया है-जमीयत का किसी भी पार्टी को समर्थन करना यह उनका संवैधानिक हक है.पर जो लोग जमीयत के इस काम का विरोध कर रहे हैं उनको समझना होगा कि जमीयत ने असम के अंदर अपने प्रदेश अध्यक्ष को ही हरा दिया, जमीयत ने उत्तर प्रदेश में मुसलमानांे द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल और पीस पार्टी जैसी पार्टी का कभी साथ नहीं दिया, बल्कि हमेशा उनके खिलाफ रही.

ऐसे में इसमें क्या नई बात है कि महाराष्ट्र में जमीयत ने इम्तियाज जलील का साथ नहीं दिया. आपको और हमको यह समझने की जरूरत है कि जमीयत एक बहुत बड़ा संगठन है, और उनका मुस्लिम समाज में स्वयंसेवा का एक बहुत बड़ा योगदान है. यह काम करते वक्त उनको हिकमतन कुछ चीज करनी पड़ती है. हमको खुद यह तय करना होगा कि हमारा राजनीतिक लीडर कौन बनेगा.

मेमन आगे लिखते हैं-‘‘भारत भर में मुस्लिम युवाओं द्वारा विरोध करने पर, चुनाव समाप्त होने के बाद जमीयत ने सोशल मीडिया पर कवर-अप करने की कोशिश की है. मेरा मुस्लिम युवाओं से सवाल है क्या उनका विरोध करने से चुनाव परिणाम बदल जाएंगे?

मैं सभी मुस्लिम युवाओं से अपील करूंगा कि वे जमीयत को बुरा भला कहने से बेहतर है, जमीनी स्तर पर आवाम में इस फिक्र को आम करें कि हमारा लीडर अपने में से ही चुनना होगा. अगर हमने यह कर लिया तो जमीयत या किसी और तंजीम की अपील को आवाम कबूल नहीं करेगी.

हमारे सामने उदाहरण है. हैदराबाद सीट पर मुस्लिम नुमाइंदे की जीत, और औरंगाबाद सीट पर जमीयत सपोर्टेड कैंडिडेट बाल ठाकरे की पार्टी के चंद्रकांत खैरे तीसरे स्थान पर रहे और इम्तियाज जलील दूसरे पर, जबकि तेलंगाना और महाराष्ट्र में जमीयत ने ओपन अपील की थी सभी सीटों पर इंडिया एलियांज के सपोर्ट किया जाए.’’

इस नई बहस के साथ मौलाना मदनी सहित संघ के पाले में खड़े नजर आने वाले मुस्लिम रहनुमाओं की प्रासंगिता पर भी सवाल उठने लगे हैं. मदनी को कई बार संघ और संघ समर्थकों के साथ मंच साधा करते देखा गया है. ऐसे में जमीयत द्वारा कांग्रेस का समर्थन करने की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं. मदनी जैसे लोगों से पूछा जाना चाहिए कि उन्हें किसने कांग्रेस के समर्थन में ऐलान करने की जिम्मेदारी दी थी ? क्या इसके लिए उन्हांेने सर्वाजनिक मंच से रायशुमारी कराई थी या यह दरअसल, बीजेपी को ही लाभ पहुंचाने का हत्थकंडा था ?

हालांकि, तमाम विरोधों के बावजूद चुनाव से पहले सीएए पर कानून बनकर लागू हो चुका है. मगर यह सवाल आज भी अपनी जगह कायम है कि यदि सीएए आंदोलन को सही दिशा दी गई होती तो क्या आज मुसलमानों का नया नेतृत्व सामने नहीं होता ? यह आंदोलन मुसलमानों और सेक्युलर लोगों के इकट्ठा होने के कारण शुरू हुआ था. मगर दिशाहीन होने के कारण लंबे समय तक चलने के बावजूद बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गया. सरकार ने भी आंदोलनकारियों को थकाने के लिए इसे तवज्जो नहीं दी.

उसे डर था कि आंदोलनकारियों को महत्व देने पर देश में एक मजबूत तंजमी खड़ी हो सकती है. इसी डर से ओवैसी हों या मदनी कभी खुलकर सीएए समर्थकों के समर्थन में नहीं आए. उन्हें डर था कि नए संगठन के आगे आने से उनकी दुकानों पर ताला लग सकता है. आंदोलन को कहीं से मर्थन नहीं मिलने का नतीजा है कि आज भी सीएए आंदोलन के दिनों के कई आंदोलनकारी गंभीर आरोपों मंे जेल में बंद हैं.

मुख्य बिंदु:

मौलाना महमूद मदनी ने असदुद्दीन ओवैसी को सलाह दी कि वह अपनी सियासत को हैदराबाद और तेलंगाना तक सीमित रखें.
मदनी ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर ओवैसी की मुस्लिम सियासत बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

  • मदनी के बयान पर सोशल मीडिया पर गरमागरम बहस छिड़ गई.
  • जमीयत द्वारा कांग्रेस को समर्थन देने और ओवैसी के विभिन्न सीटों से मुस्लिम उम्मीदवार देने पर सवाल उठाए गए.
  • ओवैसी पर भाजपा को लाभ पहुंचाने का आरोप, खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में AIMIM के उम्मीदवार देने के कारण.
  • आरोप है कि यदि ओवैसी ने अपने उम्मीदवार नहीं दिए होते तो NDA को करारी शिकस्त मिल सकती थी.

जमीयत उलेमा ए हिंद पर कांग्रेस के पक्ष में वोट करने की अपील करने का आरोप.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में AIMIM के इम्तियाज जलील को समर्थन नहीं देने की आलोचना.

महाराष्ट्र मुस्लिम कांफ्रेंस के नेशनल कन्वीनर जुबैर मेमन ने जमीयत की राजनीति पर सवाल उठाए.
मेमन ने कहा कि जमीयत का किसी भी पार्टी को समर्थन करना उसका संवैधानिक हक है.
मुस्लिम युवाओं को खुद अपना नेता चुनने की अपील.

  • सीएए आंदोलन को सही दिशा न मिलने के कारण मुसलमानों का नया नेतृत्व उभर नहीं सका.
  • ओवैसी और मदनी ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया, जिससे आंदोलनकारियों को मजबूती नहीं मिल सकी.
  • कई आंदोलनकारी आज भी गंभीर आरोपों में जेल में बंद हैं.

मौलाना मदनी को कई बार संघ और संघ समर्थकों के साथ मंच साझा करते देखा गया.
कांग्रेस का समर्थन करने पर जमीयत की मंशा पर सवाल.