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युवा पीढ़ी को भड़काने की राजनीति: ऑपरेशन सिंदूर विवाद और शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी

मुस्लिम नाउ विशेष

देश में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर नफरत फैलाने की सियासत ने सबसे बड़ा नुकसान युवाओं को पहुँचाया है। सत्ता की कुर्सी पर जमे रहने की इस रणनीति ने युवाओं को अपने लक्ष्य और भविष्य से भटका दिया है। कई युवा सोशल मीडिया के जरिए धार्मिक मुद्दों पर टिप्पणी कर चर्चा में आ रहे हैं, लेकिन कई बार यह चर्चा उन्हें जेल की सलाखों तक भी पहुँचा देती है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया है।

पुणे की सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट शर्मिष्ठा पनोली को कोलकाता पुलिस ने गुरुग्राम से गिरफ्तार किया है। पनोली पर आरोप है कि उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी। इसके बाद उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गईं और पुलिस ने उन्हें पश्चिम बंगाल लाकर न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

वायरल वीडियो और विरोध की लहर

पनोली के इंस्टाग्राम और एक्स पर करीब 1.75 लाख फॉलोअर्स हैं। उनके वीडियो अक्सर आक्रामक भाषा और गाली-गलौज वाले होते हैं, जो युवा वर्ग में लोकप्रिय भी हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर किए गए एक वीडियो में उन्होंने कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक एक यूज़र को जवाब देते हुए देशद्रोही भाषा का प्रयोग किया और धार्मिक समुदाय विशेष के साथ पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक शब्द कहे, जिसे लेकर देशभर में नाराजगी जताई गई।

AIMIM प्रवक्ता वारिस पठान ने इस वीडियो को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर साझा करते हुए इसे इस्लाम और पैगंबर का अपमान बताते हुए केंद्रीय गृह मंत्री से उनकी गिरफ्तारी की मांग की। इसी के बाद मामला गंभीर हो गया।

माफ़ी और गिरफ्तारी के बीच टकराव

पनोली ने अगले दिन वीडियो डिलीट कर सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगी। उन्होंने लिखा,

“मैं बिना शर्त माफ़ी मांगती हूं। मेरी मंशा किसी को ठेस पहुँचाने की नहीं थी। अब से मैं अपने बयानों में अधिक सतर्क रहूंगी।”

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कोलकाता पुलिस ने 30 मई को उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के मुताबिक, कई बार नोटिस भेजे जाने के बावजूद पनोली पेश नहीं हुईं और फरार रहीं, जिसके बाद गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ।

कानूनी प्रक्रिया और पुलिस की सफाई

कोलकाता पुलिस ने सोशल मीडिया पर जारी बयान में कहा,

“गार्डन रीच थाने में दर्ज मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया अपनाई गई है। अभियुक्त को कानूनी नोटिस भेजे गए लेकिन वह हर बार गायब रही। इसलिए उसे कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट के तहत पकड़ा गया और कानून के अनुसार ट्रांजिट रिमांड में कोलकाता लाया गया।”

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या नफरत फैलाना?

पनोली की गिरफ्तारी पर बहस छिड़ गई है। डच सांसद गीर्ट वाइल्डर्स ने इस मामले में पनोली का समर्थन किया और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि पनोली को तुरंत रिहा किया जाए।

वहीं, समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी ने कहा कि

“धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के लिए सख्त कानून बनना चाहिए जिसमें कम से कम 10 साल की सज़ा हो।”

बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने भी पनोली का समर्थन करते हुए इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा,

“उसने माफ़ी मांग ली है, उसे और सज़ा देना गलत है। आजकल के युवा इसी भाषा में बोलते हैं, इसे मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।”

बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस गिरफ्तारी को हिंदू आवाज़ों को दबाने की साजिश बताया और ममता सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया।


ताकि सनद रहे

यह मामला केवल एक सोशल मीडिया पोस्ट का नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हमारे युवा धार्मिक असहिष्णुता का हथियार बनते जा रहे हैं? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धार्मिक समुदायों का अपमान करना स्वीकार्य है? और क्या राजनीतिक दल ऐसे मामलों को अपने एजेंडे के लिए भुनाते रहेंगे?

देश को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि युवाओं को सोचने, समझने और संयम से बोलने की तालीम दी जाए — क्योंकि एक भटकी हुई सोच न केवल उनका बल्कि पूरे समाज का भविष्य अंधेरे में धकेल सकती है।

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