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कुरान अब कश्मीरी भाषा में : 75 वर्षीय गुलज़ार अहमद पार्रे ने 42 वर्षों में पूरा किया अनुवाद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

कश्मीर को आतंकवाद के नाम पर बदनाम करने वालों को यह समझना चाहिए कि इस जन्नत समान धरती की असली पहचान इसकी मेहमाननवाज़ी, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कलाकारी में निहित है. सदियों से, कश्मीर ने दुनिया को अद्वितीय कला, साहित्य और आध्यात्मिक योगदान दिए हैं. इसी कड़ी में एक और उल्लेखनीय उपलब्धि जुड़ गई है, जो बिना किसी सरकारी मदद के पूरी हुई है.

गुलज़ार अहमद पार्रे: समर्पण और लगन की मिसाल

75 वर्षीय गुलज़ार अहमद पार्रे ने अविश्वसनीय समर्पण का परिचय देते हुए पवित्र कुरान का कश्मीरी भाषा में अनुवाद पूरा कर लिया है. कश्मीरी में मास्टर डिग्री और बी.एड. करने वाले पार्रे एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं. उन्होंने कई दशक पहले यह यात्रा शुरू की थी, ताकि पवित्र कुरान को कश्मीरी भाषी लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाया जा सके.

चार दशकों की अथक मेहनत

अपनी इस अनोखी यात्रा के दौरान, पार्रे ने पहले कुरान के पाँच भागों (अलगा) का अनुवाद और प्रकाशन किया, जिन्हें उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों और धार्मिक संगठनों में वितरित किया. अब, 42 वर्षों की मेहनत के बाद, उन्होंने कुरान के सभी 30 अध्यायों का अनुवाद पूरा कर लिया है और इसके संपूर्ण प्रकाशन की तैयारी में जुटे हुए हैं.

पार्रे ने कहा, “ऐसे क्षण भी आए जब मुझे यह जिम्मेदारी बहुत भारी लगने लगी, लेकिन यह सोचकर कि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी मातृभाषा में कुरान पढ़ेंगी और समझेंगी, मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही.”

धार्मिक और साहित्यिक समुदाय की सराहना

कश्मीर के धार्मिक विद्वानों ने पार्रे के इस प्रयास को ऐतिहासिक योगदान करार दिया है. अनंतनाग के प्रसिद्ध मौलवी मौलाना रमीज ने कहा, “यह केवल भाषाई अनुवाद नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक सेवा भी है. पार्रे साहब का काम उन लोगों के लिए सेतु का कार्य करेगा जो अरबी भाषा से पूरी तरह परिचित नहीं हैं.”

पार्रे के इस काम को कश्मीरी साहित्य में भी एक मील का पत्थर माना जा रहा है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि पवित्र कुरान की शिक्षाएँ हर घर तक पहुँचें. उनके इस प्रयास से न केवल धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि कश्मीरी भाषा और संस्कृति को भी नया जीवन मिलेगा.

प्रकाशन की तैयारी और भविष्य की उम्मीदें

अब जब अनुवाद पूरा हो चुका है, तो पार्रे इसके पूर्ण प्रकाशन की तैयारी में हैं. उनका लक्ष्य इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने विश्वास और भाषा से गहरे जुड़ सकें.

कई लोग इस ऐतिहासिक अनुवाद की आधिकारिक रिलीज़ का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. पार्रे की चार दशक लंबी तपस्या आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी और यह प्रयास कश्मीर की समृद्ध विरासत में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ेगा.

गुलज़ार अहमद पार्रे का यह कार्य न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह प्रयास कश्मीरी भाषा और विरासत को सहेजने के साथ-साथ, पवित्र कुरान को आमजन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाएगा. यह अनुवाद आने वाले समय में कश्मीरी समाज के लिए एक मूल्यवान धरोहर साबित होगा.